9 जुलाई 2015 की बात है. तारीख भले ही मुकर्रर नहीं हुई थी, मगर हर कोई इलेक्शन मोड में आ चुका था. पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में नीतीश कुमार पहुंचे, भाषण दिया और फिर अपनी जगह बैठ गए.
तभी एक महिला की आवाज ने उनका ध्यान खींचा: "मुख्यमंत्री जी, शराब बंद कराइए. घर बर्बाद हो रहा है." देखते ही देखते सारी मौजूद सारी महिलाओं ने सुर में सुर मिला दिया.
कोरस के बीच नीतीश कुर्सी से उठे और माइक पर जाकर एलान कर दिया - 'अगली बार सत्ता में आने पर शराब पर पूरी तरह से रोक लगा दूंगा'. फौरी फैसला मुश्किल होता है, खासकर जब मामला और मौका दोनों नाजुक हों.
कोरस की तासीर बदल चुकी थी, और तालियां भी उसमें शामिल हो चुकी थीं.
तीन साल में आई तब्दीली
तीन साल के भीतर नीतीश के नजरिये में बड़ा बदलाव देखने को मिला है. कभी विवाद और आलोचनाओं को दरकिनार कर नीतीश खुलेआम शराब का सपोर्ट किया करते थे, लेकिन अब वैसा बिलकुल नहीं है.
2012 में नीतीश ने कहा था, "अगर आप पीना चाहते हैं तो पीजिए और टैक्स पे कीजिए. मुझे क्या? इससे फंड इकट्ठा होगा और उससे छात्राओं के लिए मुफ्त साइकल की स्कीम जारी रहेगी."
2015 में नीतीश ने कहा, "शराब से परिवार में अशांति पैदा होती है. परिवार में नशे की लत के कारण सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को झेलनी पड़ती है. हम बिहार में महिलाओं का दर्द समझ सकते हैं. उन्होंने कहा कि सरकार का यह प्रयास होगा कि नशा सेवन के कारण तबाह परिवारों में खुशी लौटे, उन परिवारों की आमदनी की राशि शिक्षा, पोषणयुक्त भोजन पर खर्च हो न कि नशा सेवन पर. इससे परिवार की महिलाओं को भी शराबबंदी से खुशी मिलेगी और परिवार का विकास तेजी से होगा."
2010 में नीतीश की सत्ता में वापसी में महिलाओं की बड़ी भूमिका रही. इस बार भी नीतीश ने समय रहते इसे भांप लिया था. वोट डालने में इस बार भी महिलाएं आगे रहीं - अब गेंद नीतीश के पाले में थी - और वो जरा भी पीछे नहीं हटे.
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9 जुलाई 2015 की बात है. तारीख भले ही मुकर्रर नहीं हुई थी, मगर हर कोई इलेक्शन मोड में आ चुका था. पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में नीतीश कुमार पहुंचे, भाषण दिया और फिर अपनी जगह बैठ गए.
तभी एक महिला की आवाज ने उनका ध्यान खींचा: "मुख्यमंत्री जी, शराब बंद कराइए. घर बर्बाद हो रहा है." देखते ही देखते सारी मौजूद सारी महिलाओं ने सुर में सुर मिला दिया.
कोरस के बीच नीतीश कुर्सी से उठे और माइक पर जाकर एलान कर दिया - 'अगली बार सत्ता में आने पर शराब पर पूरी तरह से रोक लगा दूंगा'. फौरी फैसला मुश्किल होता है, खासकर जब मामला और मौका दोनों नाजुक हों.
कोरस की तासीर बदल चुकी थी, और तालियां भी उसमें शामिल हो चुकी थीं.
तीन साल में आई तब्दीली
तीन साल के भीतर नीतीश के नजरिये में बड़ा बदलाव देखने को मिला है. कभी विवाद और आलोचनाओं को दरकिनार कर नीतीश खुलेआम शराब का सपोर्ट किया करते थे, लेकिन अब वैसा बिलकुल नहीं है.
2012 में नीतीश ने कहा था, "अगर आप पीना चाहते हैं तो पीजिए और टैक्स पे कीजिए. मुझे क्या? इससे फंड इकट्ठा होगा और उससे छात्राओं के लिए मुफ्त साइकल की स्कीम जारी रहेगी."
2015 में नीतीश ने कहा, "शराब से परिवार में अशांति पैदा होती है. परिवार में नशे की लत के कारण सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को झेलनी पड़ती है. हम बिहार में महिलाओं का दर्द समझ सकते हैं. उन्होंने कहा कि सरकार का यह प्रयास होगा कि नशा सेवन के कारण तबाह परिवारों में खुशी लौटे, उन परिवारों की आमदनी की राशि शिक्षा, पोषणयुक्त भोजन पर खर्च हो न कि नशा सेवन पर. इससे परिवार की महिलाओं को भी शराबबंदी से खुशी मिलेगी और परिवार का विकास तेजी से होगा."
2010 में नीतीश की सत्ता में वापसी में महिलाओं की बड़ी भूमिका रही. इस बार भी नीतीश ने समय रहते इसे भांप लिया था. वोट डालने में इस बार भी महिलाएं आगे रहीं - अब गेंद नीतीश के पाले में थी - और वो जरा भी पीछे नहीं हटे.
26 नवंबर को मद्यनिषेध दिवस के मौके पर नीतीश ने कहा, "हम लोगों ने 1977-78 में भी शराब पर पाबंदी लगाने का प्रयास किया था लेकिन उस समय ये नहीं हो पाया था. शराब के कारण महिलाएं दूसरों से कहीं अधिक पीड़ित हैं... मैंने अपने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे शराबबंदी पर काम करना शुरू कर दें और इसे आने वाले वित्तीय वर्ष में लागू करें."
नीतीश ने जिस दौर का हवाला दिया उस वक्त जनता पार्टी के ही कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री थे. करीब डेढ़ साल बाद नेतृत्व बदला और जनता पार्टी के ही राम सुंदर दास ने कुर्सी संभाली तो राजनीतिक कारणों से रोक हटानी पड़ी.
शराबबंदी का असर
विपक्ष के हो हल्ले से बेपरवाह नीतीश ने पीने वालों के लिए सूबे में करीब 6,000 दुकानें खुलवा दी थी. ऐसा लगता जैसे हर नुक्कड़ पर दुकानें सज गईं हों. लोग छक कर पीने भी लगे. मालूम हुआ कि बिहार के लोग हर साल 1410 लाख लीटर शराब पी जाते हैं. इसमें करीब 1000 लीटर देशी और 420 लाख लीटर विदेशी शराब शामिल है. WHO के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 30 फीसदी लोग शराब पीते हैं जिनमें 13 फीसदी तो इसका नियमित सेवन करते हैं. इतना ही नहीं पीने वाले ग्रामीण अपनी आमदनी का 45 फीसदी हिस्सा शराब पर खर्च कर देते हैं - और 20 फीसदी मौतें शराब पीकर गाड़ी चलाने से होती हैं. शराब की खपत के मामले में भारत दुनिया का तीसरा बड़ा देश है.
पूरे बिहार में शराब की करीब 6 हजार दुकानें हैं. शराब के चलते राज्य के राजस्व में 10 साल में 10 गुणा उछाल आया है. शराब की बिक्री से 2005-06 में जो कमाई 320 करोड़ रुपये रही वो 2014-15 में बढ़कर 3,665 करोड़ हो गई.
शराबबंदी की हालत में इस तरह करीब चार हजार करोड़ रुपये का सालाना नुकसान होगा. नीतीश कुमार की इस घोषणा के दिन शराब कंपनियों के शेयरों में जोरदार गिरावट भी दर्ज की जा चुकी है.
गुजरात मॉडल
गुजरात में 1960 से शराबबंदी लागू है. नगालैंड और लक्षद्वीप के अलावा मणिपुर के कुछ हिस्सों में शराब पर प्रतिबंध है. केरल में 30 मई 2014 के बाद से शराब की दुकानों के लिए लाइसेंस मिलने बंद हो गए हैं. पाबंदी तो आंध्र प्रदेश, हरियाणा और मिजोरम में भी लगी थी - लेकिन कारगर न हो सकी. शराब बेचने के एवज में केंद्र सरकार हर साल राज्य सरकार को 100 करोड़ रुपए देती है. लेकिन अवैध रूप से इसका कारोबार कोई 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का है. नीतीश सरकार को भी ऐसी चुनौतियों से दो चार होना पड़ेगा.
शराबबंदी लागू होने से गुजरात में लोगों को दवा के नाम पर पीने का परमिट दिया जाता है. ये परमिट राज्य सरकार के प्रॉहिबिशन एंड एक्साइज विभाग से मिलता है. पूरे गुजरात में 61 हजार से ज्यादा लोगों को ऐसा परमिट मिला हुआ है.
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