8 जुलाई 2016 को हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहान वानी को अर्धसैनिक बलों ने एनकाउंटर में मार गिराया. यह अर्धसैनिक बलों की बड़ी कामयाबी मानी गयी. हालांकि वानी के मौत के बाद जिस प्रकार की भीड़ उसके जनाजे में जुटी वह सुरक्षाबलों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं थी. इसके बाद अगले कई महीनों तक घाटी के हालत काफी बुरे रहें, आये दिन पुलिस और पत्थरबाजों के बीच झड़प में करीब 100 लोगों को जान गंवानी पड़ी. यही नहीं घाटी के करीब 100 युवाओं ने भी इस दौरान बन्दुक थामना ही बेहतर समझा. खैर अब स्थिति पूरी तरह बदल गयी है.
दरअसल सुरक्षाबलों ने 2017 के शुरुआत में ही आतंकियों से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर ऑपरेशन की शुरुआत कर दी थी. और इस ऑपरेशन को नाम दिया गया था ऑपरेशन आल आउट. ऑपरेशन ऑल आउट के अंतर्गत पहले तो लश्कर ए तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन और जैश ए मोहम्मद के करीब 258 आतंकियों की एक लिस्ट तैयार की गयी. इस ऑपरेशन में इंटेलीजेंस एजेंसियों की मदद से एक विस्तृत रूपरेखा तैयार की गयी और आतंकवादियों से कड़ाई से निपटने की योजना पर काम किया गया. इस ऑपरेशन के बाद जहां कई आतंवादी मौत के मुंह में समा गए हैं, तो वहीं जिन्दा बचने वाले आतंकवादियों में भी इसका जबरदस्त खौफ है. खबरों की माने तो इस वक़्त लश्कर-ए-तैयबा की कमान संभालने वाला भी कोई नहीं मिल रहा है. बता दें कि 14 सितम्बर को ही लश्कर का ऑपरेशनल कमांडर अबू इस्माइल मारा गया था.
8 जुलाई 2016 को हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहान वानी को अर्धसैनिक बलों ने एनकाउंटर में मार गिराया. यह अर्धसैनिक बलों की बड़ी कामयाबी मानी गयी. हालांकि वानी के मौत के बाद जिस प्रकार की भीड़ उसके जनाजे में जुटी वह सुरक्षाबलों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं थी. इसके बाद अगले कई महीनों तक घाटी के हालत काफी बुरे रहें, आये दिन पुलिस और पत्थरबाजों के बीच झड़प में करीब 100 लोगों को जान गंवानी पड़ी. यही नहीं घाटी के करीब 100 युवाओं ने भी इस दौरान बन्दुक थामना ही बेहतर समझा. खैर अब स्थिति पूरी तरह बदल गयी है.
दरअसल सुरक्षाबलों ने 2017 के शुरुआत में ही आतंकियों से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर ऑपरेशन की शुरुआत कर दी थी. और इस ऑपरेशन को नाम दिया गया था ऑपरेशन आल आउट. ऑपरेशन ऑल आउट के अंतर्गत पहले तो लश्कर ए तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन और जैश ए मोहम्मद के करीब 258 आतंकियों की एक लिस्ट तैयार की गयी. इस ऑपरेशन में इंटेलीजेंस एजेंसियों की मदद से एक विस्तृत रूपरेखा तैयार की गयी और आतंकवादियों से कड़ाई से निपटने की योजना पर काम किया गया. इस ऑपरेशन के बाद जहां कई आतंवादी मौत के मुंह में समा गए हैं, तो वहीं जिन्दा बचने वाले आतंकवादियों में भी इसका जबरदस्त खौफ है. खबरों की माने तो इस वक़्त लश्कर-ए-तैयबा की कमान संभालने वाला भी कोई नहीं मिल रहा है. बता दें कि 14 सितम्बर को ही लश्कर का ऑपरेशनल कमांडर अबू इस्माइल मारा गया था.
कश्मीर से आतंकवाद का खात्मे की खबर निश्चित रूप से सुकून देने वाला है. क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में कई आतंवादी संघटनों ने घाटी में अपने पैर पसारना शुरू कर दिया था. इस दौरान पाकिस्तान समर्थित कई आतंकवादी समूह कश्मीर के भटके युवाओं को बन्दूक थमाने में भी कामयाब रहे थे. हालांकि अब सेना ने घाटी में जिस आक्रामक तरीके से कमान संभाली है, उससे आतंकवादियों की कमर टूट गई है. एक तरफ जहां आतंकवादियों का सफाया किया जा रहा है, तो वहीं दूसरी ओर आतंकवादी समूहों से सहानुभूति रखने वालों और उन तक फंड पहुंचाने वालों के खिलाफ भी कारवाई की जा रही है. ऐसे में ये उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले दिनों में घाटी में हो रही आतंकवादी गतिविधियों में कमी देखने को मिलेगी और साथ ही वो युवा भी मुख्य धारा से जुड़ेंगे जो अब तक बुरहान वानी और अबु दुजाना को अपना आदर्श मानते आ रहे थे.
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