मोदी सरकार के सत्ता में आने के कुछ समय बाद से ही उसपर पाकिस्तान को लेकर नीतिहीनता का आरोप विपक्षियों द्वारा लगाया जाता रहा है. कुछेक कूटनीतिज्ञों द्वारा यह भी कहा जाता रहा है कि ये सरकार भी पिछली मनमोहन सरकार की ही तरह पाकिस्तान को लेकर भ्रमपूर्ण स्थिति में है और इसीलिए रूठने-मनाने की नीतिहीनता का शिकार है.
पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सर्वदलीय बैठक में जिस तरह से पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर मामले में हस्तक्षेप करने पर अत्यंत कठोर रुख अपनाते हुए कहा गया कि अब पाकिस्तान से सिर्फ उसके द्वारा अवैध रूप से हथियाए गए कश्मीर यानी पीओके को लेकर बात होगी. जिस तरह से इस बयान के बाद मोदी के समर्थन में बलूचिस्तान में नारेबाजी हुई, उसने पाकिस्तान की हालत ऐसी लाचार कर दी है कि उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा है कि इन चीजों को लेकर भारत का कैसे प्रतिवाद करे. इस असमंजस और हताशा की स्थिति में उसके नेताओं आदि की तरफ से अनर्गल और अर्थहीन बयानबाजियां की जा रही हैं. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के द्वारा पाकिस्तान के कथित स्वतंत्रता दिवस पर यह कहना कि वो ये आज़ादी जम्मू-कश्मीर के नाम करते हैं. और फिर भारत में पाकिस्तानी राजदूत अब्दुल बासित का इसके समर्थन में बयान देना पाकिस्तान की असमंजस और हताशा से युक्त बौखलाहट का ही परिणाम है.
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प्रधानमंत्री के उक्त बयान के बाद भारत का रुख पाकिस्तान को लेकर पूरी तरह से कड़ा हो गया है. ये बात हम पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में राहत भेजने के प्रस्ताव पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरुप की इस कठोर प्रतिक्रिया के जरिये समझ सकते हैं कि पाकिस्तान से भारत समेत इस क्षेत्र के अन्य देशों को आतंकवाद, घुसपैठ, नकली नोट आदि बहुत कुछ मिल चुका है, अब उससे और कुछ नहीं चाहिए.
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बलूचिस्तान में पाकिस्तानी दमन का अमेरिका में विरोध |
ये प्रतिक्रिया वाकई में कड़ी है, क्योंकि इसमें कोई इशारा नहीं किया गया है बल्कि एकदम सीधे तौर पर खुलकर पाकिस्तान की कारिस्तानियों को उजागर किया गया है. कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर भेजे गए बातचीत के न्यौते पर भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज की तरफ से भी आई है. स्वराज ने कहा कि अगर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद जैसे प्रासंगिक विषय पर चर्चा करना चाहे तो उसका स्वागत है, लेकिन बिना आतंक के विरुद्ध कार्रवाई के कोई बातचीत नहीं की जाएगी.
उधर सीमा पर पाकिस्तान रेंजर्स ने भारतीय सीमा सुरक्षा बलों को मिठाई आदि देकर कड़वाहट कम करने की कोशिश की है. अबसे पहले ये काम भारतीय फौजें ही करते आईं थीं. हम देख सकते हैं कि एक तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और राजदूत भारत को लेकर आक्रामक रुख दिखाते हैं तो दूसरी ओर बातचीत का प्रस्ताव भेजने से लेकर विविध प्रकारों से भारत से कड़वाहट दूर करने की कोशिश करते हुए भी नज़र आते हैं. यहाँ यह भी उल्लेखनीय होगा कि पहले पाकिस्तान का भारत के प्रति अत्यंत आक्रामक रुख रहा करता था. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के पीओके और बलूचिस्तान पर उक्त कड़े और आक्रामक रुख के बाद पाकिस्तान बेहद मतिभ्रम और असमंजस की स्थिति में आ गया है.
प्रधानमंत्री ने यह बात स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से भी पूरी मुखरता के साथ दुहरा दी है. यह लगभग पहली बार हो रहा है कि पाकिस्तान को उसी के ढंग से, उसी की भाषा में एकदम खुलकर जवाब मिल रहा है. भारत से इस तरह से जवाब सुनने की उसे कभी आदत नहीं रही है, इसीलिए भारत का ये रुख उसके लिए एकदम अप्रत्याशित है. अबतक तो सिर्फ वही भारत के जम्मू-कश्मीर पर दावा पेश करता रहा था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी समेत विदेश मंत्रालय तक सभी ने अब जब पीओके तथा पाकिस्तान की अन्य कारिस्तानियों पर खुलकर बोलना शुरू कर दिया है, ये पाकिस्तान के लिए एकदम असहज करने वाली बात है. अभी उसकी गतिविधियों से स्पष्ट है कि वो घोर असमंजस में है कि भारत को कैसे जवाब दे.
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ऐसी स्थितियों में पाकिस्तान की एक शरणस्थली अमेरिका था, लेकिन भारत से मिलने वाले व्यापारिक लाभ के लोभ के कारण ही अब वो भी पाकिस्तान से कन्नी काटता नज़र आ रहा है. लड़ाकू विमानों के सौदे से लेकर आतंकवाद के विरुद्ध पाकिस्तान को फटकारने तक स्पष्ट हो गया है कि अब अमेरिका पाकिस्तान का मददगार बनकर भारत की नाराज़गी और उससे पैदा होने वाली संभावित व्यापारिक हानि के लिए कतई तैयार नहीं है. इसलिए अब वो भारत सम्बन्धी मामलों में पाक का पक्ष लेने से बच रहा है.
पाकिस्तान की दूसरी शरणस्थली चीन है जो भारत के विरुद्ध पाक का साथ दे सकता है. लेकिन वो भी फिलहाल एनएसजी में भारत का विरोध करने के कारण अंतर्राष्ट्रीय तौर पर अलग-थलग पड़ गया है. साथ ही वह दक्षिणी चीन सागर मामले पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में हारने से पस्त पड़ चुका है. कुल मिलाकर वो अपनी ही समस्याओं में उलझा है और फिलहाल शायद ही पाकिस्तान के साथ भारत के विरुद्ध खड़ा होने का जोखिम उठाए. इस प्रकार स्पष्ट है कि फिलवक्त पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों के अभाव में भी है और उसका कोई ऐसा मददगार नहीं है, जो भारत के खिलाफ किसी भी तरह की गतिविधि में उसका साथ दे सके.
मोदी सरकार ने अपने शुरुआती दौर में जरूर पाकिस्तान से सम्बन्ध बेहतर करना चाहा और इसके लिए अपनी सीमा से बढ़कर प्रयास भी किए. ये चीज इस नाते ठीक भी थी कि मोदी सरकार पर भविष्य में यह आरोप न लगे कि शांति और सौहार्द के लिए प्रयास नहीं किया. लेकिन अंततः पाकिस्तान जैसे चिकने घड़े पर जब मित्रता की मिटटी चढ़ती नहीं दिखाई दी, तो मोदी सरकार ने अब उसको लेकर अपनी नीति में परिवर्तन कर दिया. प्रधानमंत्री का सर्वदलीय बैठक में दिया गया पीओके-बलूचिस्तान सम्बन्धी बयान एक तरह से उसी नीति-परिवर्तन का उद्घोषक था. सरकार इस नीति को किस तरह से आगे बढ़ाती है, ये तो आगे पता चलेगा लेकिन, फिलहाल तो इसने पाकिस्तान को दीन-हीन अवस्था में ला दिया है, जो कि इसकी प्राथमिक सफलता को प्रमाणित करता है.
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