शोर तकरीबन उतना ही हुआ जितना 29 साल पहले सुना गया था. हंगामा इस बार भी हद दर्जे का ही रहा - और कार्यवाही की सीक्रेसी तो ऐसी जिसकी मिसाल कम ही मिलती है.
नतीजा भी वैसा ही रहा जैसा जनवरी 1988 में दर्ज किया गया था. फर्क था तो बस इतना कि स्पीकर और मुख्यमंत्री के नाम अलग अलग थे. तमिलनाडु विधानसभा में हंगामा कर रहे विपक्षी विधायक जबरन खदेड़ दिये गये और दो बार सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी.
आखिरकार, घोषणा हुई कि मुख्यमंत्री ईके पलानीसामी ने विश्वास मत हासिल कर लिया है जिन्हें 122 विधायकों का समर्थन हासिल रहा.
सीक्रेट वोटिंग को लेकर बवाल
शुरू से ही ओ पनीरसेल्वम चाहते थे कि सीक्रेट वोटिंग हो और सदन में भी उनकी मांग यही रही. विपक्षी पार्टी डीएमके ने पनीरसेल्वम की मांग का समर्थन भी किया, लेकिन स्पीकर पी धनपाल ने उनकी मांग ठुकरा दी.
फिर क्या था. डीएमके विधायक आपे से बाहर हो गये. हंगामा करते करते कागज फाड़ दिया और कुर्सियां फेंकने लगे. वेल में पहुंच कर खूब बवाल किया. स्पीकर का माइक तोड़ डाला.
विधायकों का ये रूप देख कर स्पीकर अपने चेंबर में चले गये. कुछ विधायक नारेबाजी करते हुए बेंच पर चढ़ गये जबकि एक विधायक तो स्पीकर की कुर्सी पर ही बैठ गये.
अंत में विधायकों को बाहर भगाने के लिए सुरक्षाकर्मियों को बुलाना पड़ा - सुरक्षा कर्मियों ने ही स्पीकर को भी सुरक्षित निकाला.
29 साल पहले
पीछे लौटें तो - 28 जनवरी 1988 को भी बिलकुल ऐसा ही नजारा था. वो पहला मौका था जब विधानसभा में पुलिस बुलानी पड़ी थी. तब पुलिस को भी विधायकों पर काबू पाने के लिए लाठियां बरसानी पड़ी थी.
1987 में एमजी रामचंद्रन की मौत के बाद उनकी पत्नी जानकी...
शोर तकरीबन उतना ही हुआ जितना 29 साल पहले सुना गया था. हंगामा इस बार भी हद दर्जे का ही रहा - और कार्यवाही की सीक्रेसी तो ऐसी जिसकी मिसाल कम ही मिलती है.
नतीजा भी वैसा ही रहा जैसा जनवरी 1988 में दर्ज किया गया था. फर्क था तो बस इतना कि स्पीकर और मुख्यमंत्री के नाम अलग अलग थे. तमिलनाडु विधानसभा में हंगामा कर रहे विपक्षी विधायक जबरन खदेड़ दिये गये और दो बार सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी.
आखिरकार, घोषणा हुई कि मुख्यमंत्री ईके पलानीसामी ने विश्वास मत हासिल कर लिया है जिन्हें 122 विधायकों का समर्थन हासिल रहा.
सीक्रेट वोटिंग को लेकर बवाल
शुरू से ही ओ पनीरसेल्वम चाहते थे कि सीक्रेट वोटिंग हो और सदन में भी उनकी मांग यही रही. विपक्षी पार्टी डीएमके ने पनीरसेल्वम की मांग का समर्थन भी किया, लेकिन स्पीकर पी धनपाल ने उनकी मांग ठुकरा दी.
फिर क्या था. डीएमके विधायक आपे से बाहर हो गये. हंगामा करते करते कागज फाड़ दिया और कुर्सियां फेंकने लगे. वेल में पहुंच कर खूब बवाल किया. स्पीकर का माइक तोड़ डाला.
विधायकों का ये रूप देख कर स्पीकर अपने चेंबर में चले गये. कुछ विधायक नारेबाजी करते हुए बेंच पर चढ़ गये जबकि एक विधायक तो स्पीकर की कुर्सी पर ही बैठ गये.
अंत में विधायकों को बाहर भगाने के लिए सुरक्षाकर्मियों को बुलाना पड़ा - सुरक्षा कर्मियों ने ही स्पीकर को भी सुरक्षित निकाला.
29 साल पहले
पीछे लौटें तो - 28 जनवरी 1988 को भी बिलकुल ऐसा ही नजारा था. वो पहला मौका था जब विधानसभा में पुलिस बुलानी पड़ी थी. तब पुलिस को भी विधायकों पर काबू पाने के लिए लाठियां बरसानी पड़ी थी.
1987 में एमजी रामचंद्रन की मौत के बाद उनकी पत्नी जानकी रामचंद्रन को 7 जनवरी 1988 को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी गयी. 28 जनवरी को उन्हें विधानसभा में विश्वास मत प्राप्त करना था.
भारी शोर शराबे के बीच तत्कालीन स्पीकर पीएच पंडियन ने जानकी के विश्वास मत जीत लेने की घोषणा की. ठीक वैसे ही माहौल में मौजूदा स्पीकर पी धनपाल ने ईके पलानीसामी की जीत की घोषणा की.
उस वक्त बागी जयललिता ने गवर्नर के पास जाकर अपनी शिकायत दर्ज करायी थी, इस बार डीएमके नेता एमके स्टालिन ने राजभवन जाकर आंखों देखा हाल सुनाया.
तब जयललिता ने इसे लोकतंत्र की हत्या बताते हुए गवर्नर से जानकी की सरकार को बर्खास्त करने की मांग की थी. मालूम नहीं शशिकला या पनीरसेल्वम ने उनकी आत्मा की आवाज को किस रूप में सुना होगा.
वैस उस वक्त गवर्नर ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की और जानकी की सरकार को बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.
स्पीकर का अपमान
स्पीकर ने बताया कि उनके साथ विधायकों ने हाथापाई की और उनकी कमीज फाड़ भी दी गयी. हालांकि, डीएमके नेता स्टालिन का दावा था कि स्पीकर ने अपनी शर्ट खुद ही फाड़ ली.
विधानसभा के बाहर स्टालिन भी फटी शर्ट के साथ ही मीडिया के सामने आए. वैसे स्टालिन ने स्पीकर के साथ हुई घटना पर खेद भी जताया.
ऐसी सीक्रेसी...
विश्वास मत प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान ऐसी सीक्रेसी क्यों बरती गयी, समझ से परे रहा. वोटिंग शुरू होने से पहले सदन के सारे दरवाजे बंद करा दिए गए. सदन की कार्यवाही पर प्रेस ब्रीफिंग रूम में लगे स्पीकर भी बंद कर दिये गये.
आखिर में बताया गया कि पलानीसामी ने विश्वास मत जीत लिया है तो लगा जैसे स्पीकर चालू हो गया हो और आवाज आ रही हो - 'अश्वत्थामा मरो, नरो वा कुंजरो!'
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