कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मुझसे घबराए हुए हैं. मेरे पास उनके भ्रष्टाचार की निजी जानकारी है. पीएम डरकर लोकसभा में नहीं बोलने दे रहे. राहुल के अनुसार प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार के सबूत भी उनके पास मौजूद हैं. भारतीय राजनीति की त्रासदी भी यही है, यहां लगभग हर बड़े नेता पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं और इससे भी बड़ी बात कि इन भ्रष्टाचार के सबूत भी विपक्ष के नेताओं के पास मौजूद होते हैं, मगर आज तक इन सबूतों को जनता के सामने लाने की हिम्मत किसी ने नहीं की.
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर लगाया भ्रष्टाचार का आरोप |
अगर थोड़ा पीछे जाएं तो सबूतों के आधार पर भ्रष्टाचार के आरोप की शुरुआत भारत के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने की थी, या यूं कहें की वी.पी सिंह ने इस तरीके को बखूबी भुनाया था. राजीव गांधी की सरकार से इस्तीफा देकर कांग्रेस से बाहर हुए सिंह ने उस दौर में राजीव गांधी के खिलाफ काफी गंभीर आरोप लगाए, सिंह ने राजीव गांधी को बोफोर्स घोटाले में दलाली खाने का आरोप लगाया था और इस बात के सबूत के तौर पर अक्सर अपने जेब से कागज का टुकड़ा निकल करते थे. सिंह के अनुसार उस कागज के टुकड़े पर राजीव गांधी के भ्रष्टाचार के तमाम कच्चे चिट्टे थे. हालांकि उन पर्चियों में क्या जानकारी थी यह जानने का सौभाग्य भारतीय जनता को नसीब नहीं हुआ, क्योंकि सिंह ने उन सबूतों को सार्वजनिक करने की जहमत नहीं उठायी. अब उनके पास सबूत थे या नहीं ये तो वो ही जाने मगर इन आरोपों के बल पर विश्वनाथ प्रताप सिंह सत्ता के सर्वोच्च पद प्रधानमंत्री बनने में जरूर सफल रहे.
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मुझसे घबराए हुए हैं. मेरे पास उनके भ्रष्टाचार की निजी जानकारी है. पीएम डरकर लोकसभा में नहीं बोलने दे रहे. राहुल के अनुसार प्रधानमंत्री के भ्रष्टाचार के सबूत भी उनके पास मौजूद हैं. भारतीय राजनीति की त्रासदी भी यही है, यहां लगभग हर बड़े नेता पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं और इससे भी बड़ी बात कि इन भ्रष्टाचार के सबूत भी विपक्ष के नेताओं के पास मौजूद होते हैं, मगर आज तक इन सबूतों को जनता के सामने लाने की हिम्मत किसी ने नहीं की.
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर लगाया भ्रष्टाचार का आरोप |
अगर थोड़ा पीछे जाएं तो सबूतों के आधार पर भ्रष्टाचार के आरोप की शुरुआत भारत के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने की थी, या यूं कहें की वी.पी सिंह ने इस तरीके को बखूबी भुनाया था. राजीव गांधी की सरकार से इस्तीफा देकर कांग्रेस से बाहर हुए सिंह ने उस दौर में राजीव गांधी के खिलाफ काफी गंभीर आरोप लगाए, सिंह ने राजीव गांधी को बोफोर्स घोटाले में दलाली खाने का आरोप लगाया था और इस बात के सबूत के तौर पर अक्सर अपने जेब से कागज का टुकड़ा निकल करते थे. सिंह के अनुसार उस कागज के टुकड़े पर राजीव गांधी के भ्रष्टाचार के तमाम कच्चे चिट्टे थे. हालांकि उन पर्चियों में क्या जानकारी थी यह जानने का सौभाग्य भारतीय जनता को नसीब नहीं हुआ, क्योंकि सिंह ने उन सबूतों को सार्वजनिक करने की जहमत नहीं उठायी. अब उनके पास सबूत थे या नहीं ये तो वो ही जाने मगर इन आरोपों के बल पर विश्वनाथ प्रताप सिंह सत्ता के सर्वोच्च पद प्रधानमंत्री बनने में जरूर सफल रहे.
ये भी पढ़ें- बोलने को लेकर नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी दोनों की समान राय क्यों हैं?
वी पी सिंह के बाद सही मायनों में किसी ने इसका इस्तेमाल किया तो वो हैं दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल. अरविन्द केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बनने से पूर्व दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, केजरीवाल ने भी अपने आरोपों को सही साबित करने के लिए सबूतों के होने की बात कही, केजरीवाल ने साथ ही ये भी वादा किया की सत्ता में आते ही वो शीला दीक्षित के सारे भ्रष्टाचार उजागर करेंगे, हालांकि इन वादों के बाद केजरीवाल दो बार दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले चुके है, हालांकि सत्ता संभालते ही केजरीवाल ने सबूत पर चुप्पी साध रखी है.
केजरीवाल ने शीला दीक्षित के अलावा सोनिया गांधी के दामाद रोबर्ट वाड्रा, मुकेश अंबानी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, अरुण जेटली, नितिन गडकरी समेत कई नेताओं पर गंभीर आरोप लगा चुके हैं, और मजेदार बात यह रही है हर आरोप की सबूत उनके पास मौजूद होती है (ऐसा कम से कम वो दावा करते हैं). हालांकि केजरीवाल अभी तक किसी भी सबूत को सार्वजनिक नहीं कर सके हैं.
ये भी पढ़ें- राहुल गांधी ने पहले भी बयान दिए थे, पर क्या भूकंप आया था?
इन नेताओं के अलावा भी भारतीय राजनीति में कई ऐसे नेता मिल जायेंगे जो दूसरों के भ्रष्टाचार का दावा करते नजर आएंगे, मगर उसके बाद किसी भी तरह की कार्यवाई से बचते नजर आते हैं. अब ऐसे में सवाल यह उठता है जिस धड़ल्ले से राजनेता किसी पर सबूत के आधार पर गंभीर आरोप लगाते हैं तो फिर सबूत सार्वजनिक करने में क्यों हिचकिचाते हैं ? क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं बनती की सच में सबूत नाम की कोई चीज उनके पास है तो वो इसे सार्वजनिक करें, और अगर उनके पास सबूत जैसी कोई चीज होती तो फिर क्यों जनता को गुमराह करते हैं, क्या ऐसे मामले में उन पर कार्यवाई नहीं होनी चाहिए जो जानबूझ कर जनता को गुमराह करने का काम करते हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.