अपने घृणित बयानों से सुर्खियों में रहने वाले हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी इनदिनों फिर से चर्चा में हैं. बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए ओवैसी बंधु आए दिन घटिया बयान देते रहते हैं. लेकिन इस बार तो ओवैसी ने सारी हदें पार कर दीं. ओवैसी ने कहा कि 'हमारे संविधान में कहीं नहीं लिखा की भारत माता की जय बोलना जरूरी है, चाहें तो मेरे गले पर चाकू लगा दीजिये, पर मैं भारत माता की जय नही बोलूँगा.' ऐसे शर्मनाक बयानों की जितनी निंदा की जाए कम है. इसप्रकार के बयानों से ने केवल देश की एकता व अखंडता को चोट पहुँचती है बल्कि देश की आजादी के लिए अपने होंठों पर भारत मां की जय बोलते हुए शहीद हुए उन सभी शूरवीरों का भी अपमान है, भारत माता की जय कहना अपनेआप में गर्व की बात है. इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि अपने सियासी हितों की पूर्ति के लिए इस हद तक गिर जाएँ कि देशभक्ति की परिभाषा अपने अनुसार तय करने लगें.
इस पूरे मसले पर गौर करें तो कुछ दिनों पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक बयान दिया था जिसमें कहा था कि नई पीढ़ी को देशभक्ति की बातें सिखाई जानी चाहिए. जाहिर है कि यह बयान भागवत ने जेएनयू में हुए देश विरोधी गतिविधियों को लेकर दिया था, संघ प्रमुख के बयानके विरोध के लिए ओवैसी ने विरोध की सारी सीमाएं लांघते हुए भारत माता की जय कहनें से इनकार कर दिया. वहीँ दूसरी ओर महाराष्ट्र में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के विधायक युसुफ पठान भी अपने आका के पद चिन्हों पर चलने की कोशिश की इसके बाद सभी दलों ने मिलकर स्पीकर से निलंबन की मांग की, नतीजा उन्हें विधानसभा के मौजूदा सत्र से निलंबित कर दिया गया.
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अपने घृणित बयानों से सुर्खियों में रहने वाले हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी इनदिनों फिर से चर्चा में हैं. बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए ओवैसी बंधु आए दिन घटिया बयान देते रहते हैं. लेकिन इस बार तो ओवैसी ने सारी हदें पार कर दीं. ओवैसी ने कहा कि 'हमारे संविधान में कहीं नहीं लिखा की भारत माता की जय बोलना जरूरी है, चाहें तो मेरे गले पर चाकू लगा दीजिये, पर मैं भारत माता की जय नही बोलूँगा.' ऐसे शर्मनाक बयानों की जितनी निंदा की जाए कम है. इसप्रकार के बयानों से ने केवल देश की एकता व अखंडता को चोट पहुँचती है बल्कि देश की आजादी के लिए अपने होंठों पर भारत मां की जय बोलते हुए शहीद हुए उन सभी शूरवीरों का भी अपमान है, भारत माता की जय कहना अपनेआप में गर्व की बात है. इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि अपने सियासी हितों की पूर्ति के लिए इस हद तक गिर जाएँ कि देशभक्ति की परिभाषा अपने अनुसार तय करने लगें.
इस पूरे मसले पर गौर करें तो कुछ दिनों पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक बयान दिया था जिसमें कहा था कि नई पीढ़ी को देशभक्ति की बातें सिखाई जानी चाहिए. जाहिर है कि यह बयान भागवत ने जेएनयू में हुए देश विरोधी गतिविधियों को लेकर दिया था, संघ प्रमुख के बयानके विरोध के लिए ओवैसी ने विरोध की सारी सीमाएं लांघते हुए भारत माता की जय कहनें से इनकार कर दिया. वहीँ दूसरी ओर महाराष्ट्र में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के विधायक युसुफ पठान भी अपने आका के पद चिन्हों पर चलने की कोशिश की इसके बाद सभी दलों ने मिलकर स्पीकर से निलंबन की मांग की, नतीजा उन्हें विधानसभा के मौजूदा सत्र से निलंबित कर दिया गया.
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इन सबके बीच सवाल उठता है कि ओवैसी इस बयान के द्वारा देश को क्या संदेश देना चाहते हैं? भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की राजनीति आज देशद्रोह और देशभक्ति में उलझ कर रह गई है. एक तरफ देशभक्ति का प्रमाणपत्र दिया जा रहा है, तो दूसरी तरफ देशद्रोही कहलाने का फैशन चल पड़ा है. इसमें कोई दोराय नहीं कि, भारत माता की जय कहने से कोई देश प्रेमी हो जायेगा या भारत माता की जय नहीं बोलने वाला कोई देशविरोधी लेकिन, जिस देश की आजादी के लिए लाखों करोड़ो लोग भारत माता की जय के उद्घोष के साथ अंग्रेजो की बर्बता को झेला है उस नारे की मुखालफत करना कतई उचित नहीं है.
ऐसे बयानों के द्वारा ओवैसी किस समुदाय को खुश करना चाहतें हैं? जाहिर है कि भारत के किसी भी समुदाय का नागरिक ओवैसी के इस बयान से इस्तेफाक नहीं रखते, आमजन को पता है कि इसी नारे ने हमें स्वतंत्र कराया. उस नारे का विरोध करना ओवैसी की मंशा पर सवालिया निशान खड़े करता है. एक बुनियादी सवाल उठता है कि भारत माता की जय नारे से ओवैसी को आपत्ति क्यों है? इस सवाल की तह में जाएं तो यह नारा किसी धर्म विशेष से भी ताल्लुक नहीं रखता है. यह भारतीयता का प्रतीक है हर भारतीय को भारत माता की जय कहने में गर्व की अनुभूति होती है, अब इस नारे पर बेतुकी बातें करना एक ओछी मानसिकता का परिचायक है. भारत माता की जय के नारे हर समुदाय के लोग लगाते हैं, इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है. ओवैसी इस बयान के द्वारा मुस्लिमों को रिझाने का कुत्सित प्रयास कर रहें है तो कहीं न कहीं वो गफलत में हैं. ऐसे बयानों से हमारे देश का कोई समुदाय अपनी स्वीकार्यता प्रदान नहीं करेगा.
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हमारे सामने कई ऐसे मामले आयें है. जब मुस्लिम झंडाबरदारों ने देश के राष्ट्रगीत से लेकर राष्ट्रगान तक पर सवाल उठायें है लेकिन मुस्लिम समुदाय ने उसका पुरजोर विरोध किया है. जाहिर है कि ओवैसी के इस बयान के बाद से कई मुस्लिम संगठनों से इस बयान की भर्त्सना की है, जो काबिलेतारीफ है. बहरहाल, हमें उन सभी बयानों का बहिष्कार करना चाहिए जो देश की एकता अखंडता तथा समाज को बाटनें का काम करें, देश के प्रति सबकी आस्था है. उसके प्रदर्शन का तरीका सबका अलग-अलग हो सकता है. किसी के देशभक्ति पर सवाल खड़ें करना भी अनुचित होगा. बहरहाल, इस प्रकार के घटिया बयान के जरिये ओवैसी सस्ती लोकप्रियता बटोरने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं.
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