कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में वंशवाद के मुद्दे पर जो तर्क दिए वह किसी तरह से सही नहीं है. राहुल ने अखिलेश यादव, स्टालिन, अनुराग ठाकुर को राजनीतिक वंश का हिस्सा बताया. उन्होंने अभिषेक बच्चन, अंबानी परिवार, इन्फ़ोसिस के संस्थापकों की नई पीढ़ी को भी वंशवादी बताया. उनका कहना था कि भारत तो इसी तरह से चलता आ रहा है. इसलिए उनसे और कांग्रेस पार्टी से वंशवाद के विषय में सवाल न पूछे जाएं. राहुल का यह कहना तो सही है कि भारत मैं वंशवाद है. लेकिन वंशवाद का समर्थन करना और उसके पक्ष में बोलना ग़लत है.
भारत में लगभग हर क्षेत्र में भाई-भतीजावाद, वंशवाद की समस्या विद्यमान है. चाहे फिल्म जगत हो या खेल, राजनीति या व्यवसाय, मां-बाप अपने बच्चों को अपने स्थान पर टिकाने में लगे रहते है. क्रिकेटर अपने बेटे को अंडर-19 की टीम में जगह दिलने में प्रयासरत रहते है, गायक चाहता है कि उसका बेटा गायक नहीं तो कम से कम संगीत निर्देशक तो बन ही जाएं. फिल्मस्टार का भांजा, भांजी, भतीजा और न जाने कौन-कौन उसका हाथ पकड़ कर फिल्मों में काम करने की भरपूर कोशिश करते है. ऐसी स्थिति में आपका वंश, आपकी जान-पहचान आपको शुरूआती बढ़त तो दे सकता है लेकिन आपकी सफलता सुनिश्चित नहीं कर सकती है. वंश आपको अनुकूल प्रस्थितियां तो प्रदान कर सकती है. लेकिन सफलता तो आपकी क़ाबलियत पर ही निर्भर होगी.
राहुल गांधीआंध्र प्रदेश में एनटी रामा राव की मृत्यु के बाद यदि तेलुगु देसम पार्टी की कमान उनकी पत्नी लक्ष्मी पार्वती के हाथ में ही रहती तो शायद तेलुगु देसम पार्टी आज आंध्र प्रदेश में सरकार में नहीं होती. वहीं महाराष्ट्र में बाल ठाकरे के निधन के बाद शिव सेना भी अपनी पुराने रुतबे को नहीं कायम नहीं रख सकी है. तमिलनाडु में भी एमजीआर के निधन के बाद एआइएडीएमके ने उनकी पत्नी जानकी रामचंद्रन के ब्ज़ाय जयललिता को चुना.
हालांकि उत्तर प्रदेश में मुलायम-अखिलेश यादव, बिहार में लालू यादव परिवार, हरियाणा में चौटाला परिवार, पंजाब में बादल, महाराष्ट्र में पवार, जम्मू कश्मीर में अब्दुल्लाह और सैयद परिवार भी अलग-अलग समय पर सत्ता में रहें है. यह तो स्पष्ट है कि भारत में वंशवाद का बोलबाला है पर इसका यह कतई मतलब नहीं की क़ाबलियत का कोई स्थान नहीं है. एक विशेष परिवार का होने के कारण जनता किसी राजनेता को एक बार तो चुन लेती है. लेकिन यदि वह काम न करे तो अगले चुनाव में पद से हटा भी देती है. आज की तारीख में जनता समझदार बन चुकी है. वह अपने फ़ायदे और नुकसान को अच्छी तरह समझती है.
राजनीतिक वंशवाद अवश्य किसी युवा व्यक्ति को स्टार्ट दे सकती है. लेकिन बिना क़ाबलियत के वो आगे नहीं बढ़ सकता है. राजनेताओं के लिए भी आज सफलता की कुंजी मेहनत, मेहनत और सिर्फ़ मेहनत है. वंश आपकी की शुरूआती मदद तो कर सकता है, उसके बाद नहीं. अगर लंबे समय का घोड़ा बनना है, तो उसे मेहनत पर ही निर्भर होना होगा.
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