उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की नाव पार लगाने की प्रबल कोशिश में जुटे राहुल गांधी अब पार्टी के लिए जाति समीकरण बैठाने में लगे हैं. 2012 के यूपी चुनाव में धूल चाट चुके राहुल जोड़-तोड़ की गणित से अति पिछड़े वर्ग को अपने पाले में घसीटने की फिराक में दिख रहे हैं.
इसके साफ संकेत शनिवार को राहुल की कांग्रेस मुख्यालय में हुई बैठक के बाद मिल गए. कांग्रेस पार्टी ने यूपी के रण में आरक्षण का जिन्न दोबारा खड़ा कर दिया है. अपने घोषणा पत्र में कांग्रेस ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण कोटे के भीतर ही अति पिछड़ों को सब कोटा देने का वादा करेगी.
आरक्षण के भीतर आरक्षण और कहां है लागू?
ये पहली बार नहीं है जब अति पिछड़े वर्ग को रिझाने के लिए सब कोटा की चर्चा हुई हो. कांग्रेस ने खुद महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और हरियाणा में ये फॉर्मूला अपनाया. दूसरी पर्टियों ने बिहार, तमिलनाडु और पॉन्डिचेरी में अति पिछड़ों को आरक्षण के भीतर आरक्षण देकर चुनावी सफलता हासिल की है. इसके संबंध में सुप्रीम कोर्ट की भी एक 1990 की जजमेंट है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया में कहा है कि संविधान के आर्टिकल 18(4) के तहत पिछड़ी जातियों को पिछड़ी और अति पिछड़ी की श्रेणी में बाटने में कोई हर्ज नहीं है.
यह भी पढ़ें- देवरिया-दिल्ली रूट पर राहुल का जंक्शन बनेगा लखनऊ या महज हाल्ट
यूपी में कांग्रेस की 'आरक्षण... उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की नाव पार लगाने की प्रबल कोशिश में जुटे राहुल गांधी अब पार्टी के लिए जाति समीकरण बैठाने में लगे हैं. 2012 के यूपी चुनाव में धूल चाट चुके राहुल जोड़-तोड़ की गणित से अति पिछड़े वर्ग को अपने पाले में घसीटने की फिराक में दिख रहे हैं. इसके साफ संकेत शनिवार को राहुल की कांग्रेस मुख्यालय में हुई बैठक के बाद मिल गए. कांग्रेस पार्टी ने यूपी के रण में आरक्षण का जिन्न दोबारा खड़ा कर दिया है. अपने घोषणा पत्र में कांग्रेस ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण कोटे के भीतर ही अति पिछड़ों को सब कोटा देने का वादा करेगी. आरक्षण के भीतर आरक्षण और कहां है लागू? ये पहली बार नहीं है जब अति पिछड़े वर्ग को रिझाने के लिए सब कोटा की चर्चा हुई हो. कांग्रेस ने खुद महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और हरियाणा में ये फॉर्मूला अपनाया. दूसरी पर्टियों ने बिहार, तमिलनाडु और पॉन्डिचेरी में अति पिछड़ों को आरक्षण के भीतर आरक्षण देकर चुनावी सफलता हासिल की है. इसके संबंध में सुप्रीम कोर्ट की भी एक 1990 की जजमेंट है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया में कहा है कि संविधान के आर्टिकल 18(4) के तहत पिछड़ी जातियों को पिछड़ी और अति पिछड़ी की श्रेणी में बाटने में कोई हर्ज नहीं है. यह भी पढ़ें- देवरिया-दिल्ली रूट पर राहुल का जंक्शन बनेगा लखनऊ या महज हाल्ट
यूपी में अति पिछड़ों पर सियासत नई नहीं दरअसल इसका सफल प्रयोग नीतीश कुमार ने बिहार के चुनावी रण में 2010 में किया था, जिससे एनडीए गठबंधन को अति पिछड़े वर्गों ने जमकर वोट किया. उत्तर प्रदेश में इस चुनावी स्टंट का मतलब यह है कि कांग्रेस की नजर पिछड़े वर्ग के 60 फीसदी वोट पर है जिसमें निषाद, राजभर, मौर्या, लोध, और कुशवाहा शामिल हैं. यह भी पढ़ें- महागठबंधन: बिहार में एक, यूपी में अनेक पिछले विधानसभा चुनाव में इनका वोट हासिल करने के लिए बीजेपी कांग्रेस और बीएसपी में काफी खींचातन मची थी. हालांकी इससे पहले बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने 2007 में कुशवाहा समुदाय को अपने पाले में लाने के लिए अति पिछड़ा कार्ड खेला था. दरअसल, कुशवाहा समुदाय की संख्या ओबीसी में 4 प्रतिशत है और 2007 में मौर्या , शाक्या, और सैनी को टिकेट देकर ही मायावती सत्ता पर काबिज हुईं. अति पिछड़ा कार्ड की गणित यूपी की 20 करोड़ की आबादी में लगभग 9 करोड़ पिछड़ी जाति से हैं. अति पिछड़ी जातियों का मानना है की 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ पिछड़ों में दबंग यादव और कुर्मीयों को ही मिलता रहा. सियासी दल ने अक्सर चुनाव के मौसम में इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश की है. यूपी में अति पिछड़ी जातियों के वोट किसी भी पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं. यही वजह है की कांग्रेस ही नहीं बल्कि सबकी नजर इन 7 करोड़ अति पिछड़े वोटरों पर है. कांग्रेस की रणनीति शनिवार को कांग्रेस के यूपी इंचार्ज गुलाम नबी आज़ाद ने इसका श्रेय कांग्रेस उपाध्यक्ष तो देते हुए कहा 'उत्तरप्रदेश के अति बैकवार्ड, मोस्ट बैकवार्ड की मांग को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस पार्टी ने यह निर्णय लिया कि यदि यूपी में कांग्रेस सत्ता में आएगी, तो हम इसको लागू करेंगे और अपने मैनिफेस्टो में हम इसे रखेंगे. इलेक्शन मैनिफेस्टो में Reservation within Reservation बैकवार्ड्स में अति बैकवॉर्ड्स के लिए लिए रखेंगे.' इस घोषणा के साथ ही अति पिछड़ों के लिए उत्तर प्रदेश के रण में कांग्रेस ने भी अपना खूंटा गाड़ दिया है. बताया जा रहा है कि राहुल गांधी ने इस समुदाय के प्रतिनिधियों से सलाह मशवरा करके ही ये फ़ैसला लिया है. यह भी पढ़ें- दलाली की बहस कांग्रेस को कलंकित करने वाली है राहुल जी! इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |