राहुल गांधी को को पिता राजीव गांधी के राजनीतिक करियर का आलोचनात्मक अध्ययन भी जरूर करना चाहिए. खासकर, कांग्रेस अध्यक्ष को उन पांच गलतियों को करने से बचना चाहिए, जिसने उनके पिता को सत्ता से बाहर करने में बड़ी भूमिका निभाई.
1. राजीव गांधी अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान बहुत हद तक अपने वैसे दोस्तों पर निर्भर हो गए थे, जिनका राजनीतिक अनुभव बहुत कम था. इसने राजीव को कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं और आम लोगों से भी दूर कर दिया. ऐसे ही राहुल गांधी के सलाहकारों की सूची में भी बड़े नेता शामिल नहीं है. उनकी मां सोनिया गांधी जरूर अपने बेहद विश्वसनीय नेताओं जैसे अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद, जनार्दन द्विवेदी और एके एंटनी की मदद से पार्टी चला रही थीं. राहुल को अपनी मां से इस मामले में सीख लेनी चाहिए.
2. राजीव ने अपने कार्यकाल में धार्मिक तत्वों को खुश करने की कोशिश की. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना के लिए विवादित क्षेत्र के बंद हिस्से को खुलवाया. ऐसे ही उन्होंने शाह बानो तलाक मामले में तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारे के लिए पति द्वारा भत्ता दिए जाने संबंधी फैसले को पलट कर मुस्लिम धर्मगुरुओं को खुश करने की कोशिश की. 2014 के आम चुनाव से पहले राहुल की मां ने जामा मस्जिद के शाही इमाम से मिलकर मुस्लिम वोटरों को खुश करने की कोशिश की थी. लेकिन यह दांव उल्टा पड़ गया. इसलिए, राहुल को ऐसे कदम उठाने होंगे, जिससे कांग्रेस की एक असल धर्मनिरपेक्ष छवि लोगों के सामने आ सके.
3. राजीव गांधी की प्रवृत्ति थी कि वे राजनीतिक भाषणों के दौरान कई बार विवादित बयान देते थे. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव ने कहा था, 'जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है.' इस बयान से लगा कि राजीव ने एक तरह से 1984 में हुए सिख दंगों को वैध ठहरा दिया. एक और मौके पर राजीव ने कहा था, 'हम अपने विरोधियों को उनकी नानी याद दिला देंगे.' ऐसा लगता है कि राहुल ने भी इस आदत को अपना लिया है. इसलिए वह बृहस्पति ग्रह से बाहर जाने के लिए जरूरी वेलोसिटी की बात...
राहुल गांधी को को पिता राजीव गांधी के राजनीतिक करियर का आलोचनात्मक अध्ययन भी जरूर करना चाहिए. खासकर, कांग्रेस अध्यक्ष को उन पांच गलतियों को करने से बचना चाहिए, जिसने उनके पिता को सत्ता से बाहर करने में बड़ी भूमिका निभाई.
1. राजीव गांधी अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान बहुत हद तक अपने वैसे दोस्तों पर निर्भर हो गए थे, जिनका राजनीतिक अनुभव बहुत कम था. इसने राजीव को कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं और आम लोगों से भी दूर कर दिया. ऐसे ही राहुल गांधी के सलाहकारों की सूची में भी बड़े नेता शामिल नहीं है. उनकी मां सोनिया गांधी जरूर अपने बेहद विश्वसनीय नेताओं जैसे अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद, जनार्दन द्विवेदी और एके एंटनी की मदद से पार्टी चला रही थीं. राहुल को अपनी मां से इस मामले में सीख लेनी चाहिए.
2. राजीव ने अपने कार्यकाल में धार्मिक तत्वों को खुश करने की कोशिश की. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना के लिए विवादित क्षेत्र के बंद हिस्से को खुलवाया. ऐसे ही उन्होंने शाह बानो तलाक मामले में तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारे के लिए पति द्वारा भत्ता दिए जाने संबंधी फैसले को पलट कर मुस्लिम धर्मगुरुओं को खुश करने की कोशिश की. 2014 के आम चुनाव से पहले राहुल की मां ने जामा मस्जिद के शाही इमाम से मिलकर मुस्लिम वोटरों को खुश करने की कोशिश की थी. लेकिन यह दांव उल्टा पड़ गया. इसलिए, राहुल को ऐसे कदम उठाने होंगे, जिससे कांग्रेस की एक असल धर्मनिरपेक्ष छवि लोगों के सामने आ सके.
3. राजीव गांधी की प्रवृत्ति थी कि वे राजनीतिक भाषणों के दौरान कई बार विवादित बयान देते थे. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव ने कहा था, 'जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है.' इस बयान से लगा कि राजीव ने एक तरह से 1984 में हुए सिख दंगों को वैध ठहरा दिया. एक और मौके पर राजीव ने कहा था, 'हम अपने विरोधियों को उनकी नानी याद दिला देंगे.' ऐसा लगता है कि राहुल ने भी इस आदत को अपना लिया है. इसलिए वह बृहस्पति ग्रह से बाहर जाने के लिए जरूरी वेलोसिटी की बात समझाते-समझाते अब 'चप्पल की सरकार' जैसे जुमलों का इस्तेमाल करने लगे हैं.
4. राजीव गांधी और दूसरी पार्टियों के नेताओं के बीच हमेशा एक अलगाव रहा. शायद ही ऐसा कोई गैरकांग्रेसी नेता होगा, जिससे राजीव के करीबी संबंध रहे होंगे. जिन दो सरकारों को राजीव के नेतृत्व में कांग्रेस ने 1989 और 1991 में समर्थन दिया, वे संबंध भी बहुत मधुर नहीं रहे. सोनिया गांधी इस मामले में अलग साबित हुईं और वैसी पार्टियों और नेताओं के साथ गईं, जिन्होंने कभी उनके खिलाफ अपमानजनक बातें कही थीं. राहुल हालांकि को यहां भी अपनी मां को ही आदर्श बनाना चाहिए.
5. राजीव गांधी ने राष्ट्रीय स्तर पर तो कई युवा कांग्रेस नेताओं को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया लेकिन राज्य स्तर पर वह पार्टी के नेतृत्व को उस तरह से विकसित नहीं कर सके. यह ट्रेंड एक तरह से उनकी मां इंदिरा गांधी ने शुरू की थी. सोनिया गांधी भी इस ओर ध्यान नहीं दे सकीं. नतीजा यह रहा कि कांग्रेस पार्टी को कई राज्यों में नुकसान उठाना पड़ा. यहां तक कि आंध्र प्रदेश में भी पार्टी को सत्ता से बाहर होना पड़ा. आज हालत यह है कि इतनी पुरानी पार्टी को बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अस्तित्व बनाए रखने के लिए जूझना पड़ रहा है.
गुजरात, जम्मू और कश्मीर, केरल और हरियाणा जैसे राज्यों में भी पार्टी के अंदर कोई लोकप्रिय नेता नहीं है. इसी कमी का असर हाल में मध्य प्रदेश में हुए निकाय चुनाव में दिखा, जहां व्यापम घोटाले में हुई बड़ी बदनामी के बावजूद सत्ताधारी बीजेपी आराम से कांग्रेस को पटखनी देने में कामयाब रही.
मध्य प्रदेश से कांग्रेस के तीन बड़े नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंह आते हैं. लेकिन तीनों दिल्ली की राजनीति में ही व्यस्त हैं. राहुल को इसे बदलना होगा और राज्यों में पार्टी नेतृत्व के विकास के लिए काम करना होगा.
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