जो सच हो वही खबर भी बने ऐसा बिलकुल जरुरी नहीं है. कई बार जो खबरों में छाई बात होती है वो सच नहीं होती. पिछले डेढ़-दो महीनों में एक बड़ी अफवाह जो फैलाई गयी है वो ये है कि हैदराबाद यूनिवर्सिटी में आत्महत्या करने वाला स्टूडेंट एसोसिएशन का कार्यकर्ता रोहित वेमुला दलित था. खैर, पहले तेलंगाना पुलिस और अब तेलंगाना के गृहमंत्री नयनि नरसिम्हा रेड्डी ने साफ कर दिया है कि रोहित वेमुला 'दलित' नहीं था. हैदराबाद विश्वविद्यालय में दलित कोई मुद्दा नहीं है. गृहमंत्री का यह बयान विधानसभा में 'ऑन-रिकॉर्ड' दिया गया है.
आश्चर्य की बात है कि रोहित वेमुला मुद्दे पर पैनी नजर लगाए बैठी मुख्यधारा की मीडिया की नजर इस महत्वपूर्ण बयान पर नहीं गई अथवा गई भी तो इसे क्यों दिखाया नहीं गया, यह समझ से परे है. गूगल पर इस खबर से जुड़े 'की-वर्ड' को सर्च करने पर स्थिति नदारद ही नजर आती है. कहीं ऐसा तो नहीं कि रोहित वेमुला मामले में एक झूठ को सच साबित करने और उस अफवाह को हवा देने को लेकर एका की स्थिति मीडिया में भी है. वरना जिस मुद्दे पर मीडिया की 'पैनी-नजर' लगी हो उससे जुडी एक तथ्यात्मक खबर कैसे छूट जाती?
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अब बड़ा सवाल है कि आखिर जिस छात्र की आत्महत्या को इस देश में 'दलित' शोषण का इतना बड़ा मुद्दा बनाया गया, क्या वो एक अफवाह फैलाने की साजिश मात्र थी? निश्चित तौर पर रोहित वेमुला की आत्महत्या पर सियासत हुई है मगर मीडिया क्या कर रही है?
यह किसी से छुपा नहीं है कि रोहित वेमुला की आत्महत्या के पहले दिन से ही खबरों में रोहित वेमुला को दलित छात्र के रूप में स्थापित किया जा रहा है. बीच-बहस में अगर रोहित के दलित न होने की बात भी उठी तो मीडिया के एक पक्ष ने उसे एक बयान अथवा दावे के रूप में दिखाकर...
जो सच हो वही खबर भी बने ऐसा बिलकुल जरुरी नहीं है. कई बार जो खबरों में छाई बात होती है वो सच नहीं होती. पिछले डेढ़-दो महीनों में एक बड़ी अफवाह जो फैलाई गयी है वो ये है कि हैदराबाद यूनिवर्सिटी में आत्महत्या करने वाला स्टूडेंट एसोसिएशन का कार्यकर्ता रोहित वेमुला दलित था. खैर, पहले तेलंगाना पुलिस और अब तेलंगाना के गृहमंत्री नयनि नरसिम्हा रेड्डी ने साफ कर दिया है कि रोहित वेमुला 'दलित' नहीं था. हैदराबाद विश्वविद्यालय में दलित कोई मुद्दा नहीं है. गृहमंत्री का यह बयान विधानसभा में 'ऑन-रिकॉर्ड' दिया गया है.
आश्चर्य की बात है कि रोहित वेमुला मुद्दे पर पैनी नजर लगाए बैठी मुख्यधारा की मीडिया की नजर इस महत्वपूर्ण बयान पर नहीं गई अथवा गई भी तो इसे क्यों दिखाया नहीं गया, यह समझ से परे है. गूगल पर इस खबर से जुड़े 'की-वर्ड' को सर्च करने पर स्थिति नदारद ही नजर आती है. कहीं ऐसा तो नहीं कि रोहित वेमुला मामले में एक झूठ को सच साबित करने और उस अफवाह को हवा देने को लेकर एका की स्थिति मीडिया में भी है. वरना जिस मुद्दे पर मीडिया की 'पैनी-नजर' लगी हो उससे जुडी एक तथ्यात्मक खबर कैसे छूट जाती?
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अब बड़ा सवाल है कि आखिर जिस छात्र की आत्महत्या को इस देश में 'दलित' शोषण का इतना बड़ा मुद्दा बनाया गया, क्या वो एक अफवाह फैलाने की साजिश मात्र थी? निश्चित तौर पर रोहित वेमुला की आत्महत्या पर सियासत हुई है मगर मीडिया क्या कर रही है?
यह किसी से छुपा नहीं है कि रोहित वेमुला की आत्महत्या के पहले दिन से ही खबरों में रोहित वेमुला को दलित छात्र के रूप में स्थापित किया जा रहा है. बीच-बहस में अगर रोहित के दलित न होने की बात भी उठी तो मीडिया के एक पक्ष ने उसे एक बयान अथवा दावे के रूप में दिखाकर अपना पक्ष रखते हुए रोहित को दलित ही बताया. जबकि तथ्यात्मक पहलू देखें तो जब पुलिस ने हाईकोर्ट में जो रिपोर्ट दाखिल की थी उसी दौरान यह साफ हो गया था कि रोहित वेमुला दलित नहीं था. ऐसे में बड़ा सवाल है कि बिना तथ्यों को जाने रोहित को 'दलित' छात्र के रूप में प्रचारित करने की अफवाह में नेताओं का साथ देने वाली मीडिया को किस श्रेणी में रखा जाय? सबकुछ स्पष्ट होने के बाद भी मीडिया का एक बड़ा धड़ा आज भी रोहित वेमुला के नाम के साथ दलित शब्द का प्रयोग कर रहा है, जो नहीं बोल रहे हैं वे चुप्पी साधे हुए हैं.
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क्या उन मीडिया समूहों ने यह तय कर रखा है कि वे हर हाल में इस झूठ को सौ बार बोलकर सच साबित करके ही रहेंगे! मीडिया का यह दायित्व है कि वो तथ्यों के आधार पर बताये कि रोहित वेमुला के दलित होने की खबर गलत है. चूंकि रोहित की मां को दलित प्रमाण-पत्र देने वाले गंटूर जिले के स्थानीय प्रशासन से जब इस बाबत पूछताछ हुई तो उन्होंने भी अपनी गलती स्वीकार करते हुए यह मान लिया है कि रोहित वेमुला दलित परिवार से नहीं आता है. अब इस अफवाह पर लगाम लगाते हुए जनता को सच बताने की जरुरत है. गृहमंत्री के बयान को भी उतनी ही प्रमुखता से दिखाना चाहिए जिस तरह से इस झूठ को फैलाया गया.
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