संजीव भट्ट की तरह शिवकुमार पाठक को भी बर्खास्त कर दिया गया है. संजीव भट्ट को सभी लोग जानते हैं. शिव कुमार को कम लोग जानते होंगे. दोनों में एक ही बात कॉमन है - दोनों ही सरकारी नौकरी में रहे - और दोनों की ही सरकार से ठन गई. आखिरकार दोनों को नौकरी गंवानी पड़ी. आइए, एक एक करके दोनों की बात करते हैं. पहले उस शिक्षक की जिसे एक मामले में हाई कोर्ट के आदेश के बाद दूसरे मामले में उसे बर्खास्त कर दिया गया है.
एक शिक्षक
समाज के लिए कुछ करना चाहिए. राष्ट्र निर्माण में कुछ न कुछ कंट्रीब्यूट तो करना ही होगा. शिक्षक का दायित्व संभालते वक्त ऐसी बातें शिव कुमार के मन में जरूर आई होंगी. हकीकत सामने आते ही नजरिया बदल गया होगा - और शायद इसीलिए उन्होंने दूसरा रास्ता अख्तियार करने का पैसला किया होगा. फिर उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया होगा.
शिवकुमार की याचिका पर ही इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य के सभी सरकारी अफसरों को अपने बच्चों को प्राथमिक सरकारी स्कूलों में अनिवार्य रूप से पढ़ाने की हिदायत दी है. ऐसा न करने वालों के खिलाफ कोर्ट ने कार्रवाई करने की भी बात कही. कोर्ट ने व्यवस्था दी कि कोई कान्वेंट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजे तो स्कूल की फीस के बराबर रकम हर महीने सरकारी खजाने में भी जमा कराई जाए.
वैसे ये फैसला आने से पहले ही शिव कुमार अपने अफसरों की नजर पर चढ़ गए थे. इसलिए निगरानी जारी थी. आरोप है कि ट्रेनिंग के दौरान शिव कुमार 12 दिनों तक गैरहाजिर रहे. बर्खास्त करने के लिए इतना काफी थी. शिव कुमार का ये दावा कि वो पैरवी के लिए बाकायदा छुट्टी लेकर गए थे, दरकिनार कर दिया गया. एक सरकारी कागज थमाते हुए नौकरी से निकाल दिया गया.
एक अफसर
19 अगस्त को संजीव भट्ट ने ट्वीट कर बताया कि इंडियन पुलिस सर्विस में 27 साल की सेवा के बाद उन्हें हटा दिया गया है. एक बार फिर नौकरी योग्य हूं. कोई देने वाला है क्या?
अगले ही दिन, भट्ट के बेटे संजीव ने लंदन से मैसेज भेजा, "मैं...
संजीव भट्ट की तरह शिवकुमार पाठक को भी बर्खास्त कर दिया गया है. संजीव भट्ट को सभी लोग जानते हैं. शिव कुमार को कम लोग जानते होंगे. दोनों में एक ही बात कॉमन है - दोनों ही सरकारी नौकरी में रहे - और दोनों की ही सरकार से ठन गई. आखिरकार दोनों को नौकरी गंवानी पड़ी. आइए, एक एक करके दोनों की बात करते हैं. पहले उस शिक्षक की जिसे एक मामले में हाई कोर्ट के आदेश के बाद दूसरे मामले में उसे बर्खास्त कर दिया गया है.
एक शिक्षक
समाज के लिए कुछ करना चाहिए. राष्ट्र निर्माण में कुछ न कुछ कंट्रीब्यूट तो करना ही होगा. शिक्षक का दायित्व संभालते वक्त ऐसी बातें शिव कुमार के मन में जरूर आई होंगी. हकीकत सामने आते ही नजरिया बदल गया होगा - और शायद इसीलिए उन्होंने दूसरा रास्ता अख्तियार करने का पैसला किया होगा. फिर उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया होगा.
शिवकुमार की याचिका पर ही इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य के सभी सरकारी अफसरों को अपने बच्चों को प्राथमिक सरकारी स्कूलों में अनिवार्य रूप से पढ़ाने की हिदायत दी है. ऐसा न करने वालों के खिलाफ कोर्ट ने कार्रवाई करने की भी बात कही. कोर्ट ने व्यवस्था दी कि कोई कान्वेंट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजे तो स्कूल की फीस के बराबर रकम हर महीने सरकारी खजाने में भी जमा कराई जाए.
वैसे ये फैसला आने से पहले ही शिव कुमार अपने अफसरों की नजर पर चढ़ गए थे. इसलिए निगरानी जारी थी. आरोप है कि ट्रेनिंग के दौरान शिव कुमार 12 दिनों तक गैरहाजिर रहे. बर्खास्त करने के लिए इतना काफी थी. शिव कुमार का ये दावा कि वो पैरवी के लिए बाकायदा छुट्टी लेकर गए थे, दरकिनार कर दिया गया. एक सरकारी कागज थमाते हुए नौकरी से निकाल दिया गया.
एक अफसर
19 अगस्त को संजीव भट्ट ने ट्वीट कर बताया कि इंडियन पुलिस सर्विस में 27 साल की सेवा के बाद उन्हें हटा दिया गया है. एक बार फिर नौकरी योग्य हूं. कोई देने वाला है क्या?
अगले ही दिन, भट्ट के बेटे संजीव ने लंदन से मैसेज भेजा, "मैं आपका बेटा और इस दुनिया के एक शिक्षित, जागरूक और जिम्मेदार नागरिक के तौर पर आपका शुक्रिया अदा करना चाहता हूं क्योंकि आपने बगैर ये सोचे कि आप पर और भारतीय पुलिस सेवा के आपके कॅरियर पर क्या असर पड़ेगा, वह किया जो करना सही था. मैं आपका शुक्रिया अदा करना चाहता हूं क्योंकि आप उन लोगों के लिए खड़े हुए जिनकी मदद मांगती चीख-पुकार और जिनका विरोध अनसुना कर दिया गया था. मैं आज आपसे कहना चाहता हूं कि मुझे आप पर कितना गर्व महसूस हो रहा है."
भट्ट ने ये मैसेज अपने फेसबुक पेज पर शेयर किया है.
फेसबुक पर अमिष श्रीवास्तव लिखते हैं, "आईआईटी मुंबई के पास-आउट संजीव की कहानी अगर गूगल कर के 15 मिनट पढ़ ली जाए तो एक फिल्म बन सकती है. गुजरात दंगों के साथ साथ, हरेन पांड्या, सोहराबुद्दीन शेख, तुलसीराम प्रजापति, कौसर बी, इशरत जहां, डीजी वंजारा, अमित शाह और नरेंद्र मोदी जैसे नाम उनकी कहानी में बार बार आते हैं."
फेसबुक पर ही सलीम अख्तर सिद्दीकी संजीव भट्ट के रेफरेंस में अहमदाबाद के कलेक्टर रहे हर्ष मंदर की एक बात का हवाला देते हैं. किसी कार्यक्रम में जब एक शख्स ने हर्ष मंदर से कहा, "आप मुसलमानों के लिए इतना कर रहे हैं, इसके लिए हम आपके शुक्रगुजार हैं."
इस पर हर्ष मंदर का जवाब था, "आप गलत सोच रहे हैं. हम मुसलमानों के साथ नहीं हैं, मजलूमों के साथ हैं और जालिमों के विरोध में हैं." सलीम लिखते हैं, "हर्ष मंदर, तीस्ता सीतलवाड़ या संजीव भट्ट सरीखे लोग जुल्म के विरोध में होते हैं और मजलूमों के पक्ष में."
भट्ट के समर्थन में कुछ मुस्लिमों द्वारा अपने प्रोफाइल में भट्ट का फोटो लगाए जाने का जिक्र करते हुए सलीम कहते हैं, "जालिम और मजलूम में सेलेक्टिव होना ही बहुत बड़ी समस्या है."
एक आईपीएस अफसर, दूसरा प्राइमरी स्कूल शिक्षक. एक गुजरात से, दूसरा उत्तर प्रदेश से. दोनों से बिलकुल एक जैसा व्यवहार. सरकारें किसी के साथ भेदभाव नहीं करतीं. सभी के साथ एक जैसा सलूक करती हैं. शर्त सिर्फ इतनी होती है - अगला व्यवस्था के खिलाफ दूसरी छोर से आवाज उठा रहा हो.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.