पाकिस्तान में नवीं-दसवीं के छात्र फिजिक्स और कैमेस्ट्री की किताब में क्या पढ़ रहे हैं, एक नजर डाल लीजिए--
-दोजख (नर्क) का तापमान कितना हो सकता है.
-नमाज से मिलने वाले पुण्य) को कैसे नापा जाए.
-जब पैगंबर मोहम्मद को अल्लाह ने ज्ञान दिया तो उन्हें -सबसे पहले जन्नत (स्वर्ग) के बारे में बताया गया.
-इल्म (ज्ञान) हांसिल करना मर्दों के लिए जरूरी है, क्या ये इस्लाम का बुनियादी उसूल है.
साइंस पढ़ाने के लिए लिखी गई किताबों में इस्लाम की जिन रुहानी बातों को परोसा जा रहा है, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि वहां कौन सी पीढ़ी तैयार की जा रही है. ऐसा किसी गलती से नहीं, बल्कि पाकिस्तान सरकार की एक सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है. पाकिस्तान सरकार द्वारा स्कूल के लिए छपवाई जाने वाली साइंस की किताब के लिए एक कानून है. वह कानून कहता है कि साइंस की हर किताब के पहले चैप्टर में यह बात साफ-साफ लिखी होनी चाहिए कि किस तरह अल्लाह ने इस दुनिया को बनाया है और कैसे मुसलमानों और पाकिस्तानियों ने साइंस का इजात किया है.
पाकिस्तान के मदरसे में पढ़ते बच्चे |
खैर, जहां तक धर्म का सवाल है तो रूहानी बातों में कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन यह सोचने की जरूरत है कि क्यों पाकिस्तान के स्कूलों में इस्लाम के नाम पर सेंधमारी इस कदर हावी है कि वहां विज्ञान पढ़ने वाले विद्यार्थियों को बताया जाता है कि चांद पृथ्वी के इर्द-गिर्द इसलिए घूमता है कि उसे ऐसा करने के लिए अल्लाह ने कहा है. इसी तरह फिजिक्स की किताब दावा करती है कि कुरान में लिखा है कि जिन्नों के पास असीम...
पाकिस्तान में नवीं-दसवीं के छात्र फिजिक्स और कैमेस्ट्री की किताब में क्या पढ़ रहे हैं, एक नजर डाल लीजिए--
-दोजख (नर्क) का तापमान कितना हो सकता है.
-नमाज से मिलने वाले पुण्य) को कैसे नापा जाए.
-जब पैगंबर मोहम्मद को अल्लाह ने ज्ञान दिया तो उन्हें -सबसे पहले जन्नत (स्वर्ग) के बारे में बताया गया.
-इल्म (ज्ञान) हांसिल करना मर्दों के लिए जरूरी है, क्या ये इस्लाम का बुनियादी उसूल है.
साइंस पढ़ाने के लिए लिखी गई किताबों में इस्लाम की जिन रुहानी बातों को परोसा जा रहा है, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि वहां कौन सी पीढ़ी तैयार की जा रही है. ऐसा किसी गलती से नहीं, बल्कि पाकिस्तान सरकार की एक सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है. पाकिस्तान सरकार द्वारा स्कूल के लिए छपवाई जाने वाली साइंस की किताब के लिए एक कानून है. वह कानून कहता है कि साइंस की हर किताब के पहले चैप्टर में यह बात साफ-साफ लिखी होनी चाहिए कि किस तरह अल्लाह ने इस दुनिया को बनाया है और कैसे मुसलमानों और पाकिस्तानियों ने साइंस का इजात किया है.
पाकिस्तान के मदरसे में पढ़ते बच्चे |
खैर, जहां तक धर्म का सवाल है तो रूहानी बातों में कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन यह सोचने की जरूरत है कि क्यों पाकिस्तान के स्कूलों में इस्लाम के नाम पर सेंधमारी इस कदर हावी है कि वहां विज्ञान पढ़ने वाले विद्यार्थियों को बताया जाता है कि चांद पृथ्वी के इर्द-गिर्द इसलिए घूमता है कि उसे ऐसा करने के लिए अल्लाह ने कहा है. इसी तरह फिजिक्स की किताब दावा करती है कि कुरान में लिखा है कि जिन्नों के पास असीम शक्ति रहती है और इस शक्ति का इस्तेमाल कर बिजली पैदा की जा सकती है. इसी तरह विज्ञान की किताबों का एक तर्क कहता है कि इन जिन्नों में मौजूद असीम शक्तियों में से एटम (अणु) निकाला जा सकता है जिसका इस्तेमाल विज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए किया जा सकता है.
जाहिर है विज्ञान की किताबों में दिए ऐसे तर्कों पर आपको हंसी भले न आए लेकिन स्टूडेंट्स के साथ हो रहे भद्दे मजाक पर आप जरूर परेशान हो जाएंगे. पाकिस्तान में यह ऐसी सोच और शिक्षा का ही नतीजा है कि सीमापार से भारत में घुसे आतंकियों से जब सुरक्षाबल ने जानना चाहा कि वह भारत से इतनी नफरत क्यों करते हैं कि अपना सबकुछ गंवा कर वह दहशत फैलाने के लिए सरहद पार चले आए. सवाल के जवाब में एक आतंकी ने कुबूला कि उसे मालूम है कि भारत ने अपनी सीमा से पाकिस्तान जाने वाली सभी नदियों में से बिजली निकाल ली है और इसके चलते पाकिस्तान तरक्की नहीं कर पा रहा है और वहां के गांव अंधकार में डूबे हैं.
अब क्या पाकिस्तान अपनी विफलता पर पर्दा डालने के लिए साइंस के साथ ऐसा खिलवाड़ कर रहा है? काफी हद तक यह सही है और ऐसा पाकिस्तान की युनीवर्सिटी में पढ़ाने वाले जानेमाने वैज्ञानिक परवेज हुडबॉय भी मानते हैं. हुडबॉय के मुताबिक पाकिस्तान में जियाउल हक के सत्ताल संभालने के बाद 70 और 80 के दशक में समाज का इस्लामीकरण किया गया. और इस तरह कट्टरपंथियों का दबदबा कायम हुआ और उसके बाद तमाम अध्यापकों और लेखकों ने सत्ता के इन हुक्मरानों को खुश करने के लिए विज्ञान की किताब के साथ ऐसा खिलवाड़ कर डाला.
इसी का नतीजा है कि जहां 70 और 80 के दशक तक पाकिस्तानी छात्रों मे अमेरिका के टॉप फिजिक्स और बायोलॉजी इंस्टीट्यूट्स में जगह बनाई, वहीं आज के दौर में इन इंस्टीट्यूट्स में पाकिस्तानी छात्रों की एंट्री नामुमकिन हो गई है. अब देखना यह है कि पाकिस्तान कब इतनी हिम्मत जुटा पाएगा कि वह अपनी विज्ञान की किताबों से इस्लामी के तर्कों को बाहर कर पाएगा.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.