गुजरात चुनाव से पहले कांग्रेस और शंकर सिंह वाघेला का तलाक आगामी गुजरात चुनाव के परिणाम को साफ कर रहा है. वाघेला को हमेशा इस बात का मलाल रहा कि जनसंघ से होने की वजह से कांग्रेस ने कभी उन्हें कांग्रेसी माना ही नहीं.
वाघेला ने महज़ 16 साल की उम्र में ही आरएसएस जॉइन किया था ओर 1970 से वो जनसंघ के साथ जुड़े. जनसंघ के जरिए गुजरात में भाजपा कि नींव रखने वाले नेताओं में से हैं वाघेला. जो कि 1996 तक भाजपा के साथ रहे. वाघेला हमेशा कहते हैं कि संघ में काम करते हुए कभी उन्होंने किसी पद का मोह नहीं रखा. हालांकि मैनें अपनी ज़िंदगी में सभी तरह के पद के पावर देखे हैं.
1996 में राष्ट्रीय जनता पार्टी के जरिये वाघेला पहेली पार मुख्यमंत्री बने, एक साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद 1997 में वे कांग्रेस से जुड़ गए. जिस के बाद से गुजरात में कभी कांग्रेस सत्ता पर क़ाबिज़ नहीं हो पायी.
2004 से लेकर 2009 तक जब केन्द्र में मनमोहन सिंह कि सरकार बनी, तब वे बतौर कपड़ा मंत्री रहे. हालांकि 2009 के चुनाव में बापू लोकसभा चुनाव गोधरा की सीट से हार ने के बाद 2012 में वाघेला ने कपंडवज सीट से चुनाव जीत गुजरात कांग्रेस में विधानसभा में विपक्ष के नेता बने.
शंकरसिंह वाघेला ओर नरेन्द्र मोदी दोनों की कार्यशैली में काफ़ी समानता है, दोनों का ही ये स्वाभाव रहा है कि जो साथ नहीं वो हमेशा उनके सामने रहते हैं, मतलब निशाने पर रहते हैं. दोनों कि महत्वकांक्षा आसमान पर रहती हैं. दोनों कोई भी निर्णय करने में काफ़ी तेज़ हैं. दोनों ही दोस्ती ओर दुश्मनी बख़ूबी निभाते हैं. नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली जाने के बाद वाघेला के सामने कोई नहीं है. ना बीजेपी में, और ना कांग्रेस में.
कांग्रेस को वाघेला से नुक़सान
वाघेला के कांग्रेस छोड़ने से कांग्रेस को बड़ा जटका लगेगा.. पिछले 25 साल से सत्ता के बहार कांग्रेस को इस बार उम्मीद थी कि नरेन्द्र मोदी ओर अमित शाह की गैर मौजूदगी इस बार कांग्रेस को बड़ा फ़ायदा करवा सकती है, साथ ही गुजरात में आज कि विजय रुपानी की सरकार भी ज़्यादा कुछ नहीं कर पा रही है, ऐसे में शंकरसिंह वाघेला कांग्रेस के लिये एक बड़ी उम्मीद के तौर पर थे.
शंकरसिंह वाघेला को लोक नेता माना जाता है, गुजरात में ना सिर्फ़ एक समाज या जाति पर उनका प्रभुत्व है बल्कि गुजरात कि ज़्यादातर जाति ओर समाज उनके साथ जुड़े हुए हैं ओर सोशल फेब्रिक भी अच्छी तरह जानते हैं. शंकरसिंह वाघेला अपनी भाषा, लहजा ओर भाषण के जरिये भीड़ जुटाने में माहिर माने जाते हैं, कांग्रेस में वाघेला कि तुलना में एसा कोई बड़ा नेता नहीं है.
जनसंघ और आरएसएस में होने की वजह से प्रधानमंत्री मोदी ओर अमित शाह के काम करने के तरीक़ों से अच्छी तरह वाक़िफ़ थे. बीजेपी की रणनीति जो समझ कर उसके ख़िलाफ़ तुरंत कार्यवाई करते थे. जो कि कांग्रेस के लिये एक बड़ा नुक़सान है.
शंकरसिंह वाघेला के साथ-साथ उनके 11 से ज़्यादा विधायक समर्थक भी हैं, जो शंकरसिंह वाघेला के कहने पर कांग्रेस छोड़ सकते हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिये ये भी एक बड़ा झटका है. क्योंकि कांग्रेस पहले ही मौजूदा सभी विधायकों को चुनाव में टिकट देने का ऐलान कर चुकी है.
कांग्रेस को सबसे बड़ा नुक़सान 8 अगस्त को राज्यसभा में होगा. वाघेला अपने समर्थक विधायक के साथ कांग्रेस छोड़ देंगे तो कांग्रेस को गुजरात की राज्यसभा सीट से हाथ धोना पड़ेगा. और ये सीट इसलिये भी अहम है क्योंकि इस राज्यसभा की सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सलाहकार अहमद पटेल चुनाव लड़ते हैं.
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