मनमोहन सिंह पर पत्रकार संजय बारू के संस्मरणों की खूब चर्चा रही जो एक किताब के जरिये सामने आये - 'द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर'. बारू ने अपने ऑब्जर्वेशन के जरिये संकेत देने की कोशिश की कि किस तरह मनमोहन सरकार को सोनिया गांधी रिमोट कंट्रोल से चलाती रहीं. दिल्ली की सियासत के बीते दिनों को याद करते हुए जरा चेन्नई का रुख कीजिए. मनमोहन के दस साल के शासन की हकीकत जो भी हो लेकिन फिलहाल तमिलनाडु की सियासत कुछ वैसे ही हालात के इर्द गिर्द घूमती नजर आ रही है.
पुरानी रस्मों को आगे बढ़ाते हुए एक बार फिर ओपी यानी ओ पन्नीरसेल्वम को सूबे की कमान सौंप दी गयी है - और जयललिता की दोस्त शशिकला नटराजन के AIADMK की महा सचिव बनने की चर्चा है.
सिर्फ सोच कर देखिये. क्षेत्रीय राजनीति की गहराइयों को बहुत समझने की जरूरत नहीं है - काफी कुछ ऊपर से ही दिल्ली जैसा प्रतीत हो रहा है.
ऐक्सीडेंटल सीएम
तमिलनाडु में सत्ता की चाबी किसके हाथ होगी - और कौन चाबुक चलाएगा? इसे भी भविष्य के हवाले कर दीजिए. सबसे बड़ा सवाल क्या ओपी एक ऐक्सीडेंटल सीएम से ज्यादा बड़ी भूमिका निभा पाएंगे ?
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तस्वीरें गवाह ही नहीं होतीं - हमेशा ही शब्दों से ज्यादा बयान करती हैं. तमिलनाडु की मौजूदा राजनीति को समझने के लिए महज एक तस्वीर काफी होगी जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिलखते पनीरसेल्वम को सीने से लगा कर ढाढ़स बंधा रहे हैं - और बगल में खड़ी शशिकला बड़े गौर से सब देख रही हैं. जो पनीरसेल्वम जयललिता को जेल होने पर ही आंसू नहीं रोक पाते थे - अम्मा के चले जाने के बाद उनका क्या हाल हो रहा होगा आसानी से समझा जा सकता है.
यही तमिलनाडु की मौजूदा सियासत की असली तस्वीर है... |
अब तक देखा यही गया है कि जब भी जयललिता को कुर्सी छोड़ने की नौबत आई, पनीरसेल्वम पूरी शिद्दत से दूर से बैठे बैठे उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करते रहे. कभी भी उनके अंदर बिहार के जीतनराम मांझी जैसी सोच नहीं उपजी. लेकिन ऐसा तब होता रहा जब जयललिता जिंदा थीं. पनीरसेल्वम को पता होता था कि अम्मा जल्द ही लौट कर आ जाएंगी और उन्हें चुपचाप कुर्सी की जिम्मेदारी से निवृत होना पड़ेगा. बल्कि पिछले चुनाव में तो जयललिता उनसे खफा भी रहीं. इतनी खफा कि चुनाव से जुड़े मुख्य फैसलों से उन्हें दूर ही रखा. मुख्यधारा में वो तभी शामिल हो पाये जब फिर से सरकार बनी.
हाल के करीब दो महीनों को देखें तो तमिलनाडु की शासन व्यवस्था में अब फर्क सिर्फ इतना आया है कि पहले जयललिता के इंतजार में सब चल रहा था अब उनकी यादों के साये में चला जा रहा है. बस औपचारिक तौर पर पनीरसेल्वम को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई है - और अब उन्हें पता है कि आगे से सीएम की कुर्सी उन्हें अम्मा के लिए नहीं खाली करनी है.
अब तो चिन्ना अम्मा
पनीरसेल्वम और शशिकला दोनों ही थेवर समुदाय से आते हैं. दोनों का अपना कोई जनाधार नहीं है, लेकिन पार्टी पर शशिकला की पकड़ ओपी के मुकाबले ज्यादा मजबूत मानी जाती है. जयललिता के दौर में भी वो खुद अम्मा तो शशिकला चिन्ना अम्मा कही जाती रहीं.
22 सितंबर से, जिस दिन जयललिता को अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया, शशिकला ही वो पावर सेंटर रहीं जिनके आगे पीछे तमिलनाडु की सत्ता और AIADMK की राजनीति घूमती रही. महज गिनती के लोग थे जिनकी आईसीयू तक पहुंच थी, वरना सारे मेहमान चाहे वो कितनी बड़ी सियासी हस्ती क्यों न हो, सब दूर से ही लौटा दिये जाते रहे. जयललिता की भतीजी दीपा को तो अस्पताल के गेट से ही बैरंग लौटा दिया गया.
अस्पताल ले जाने से लेकर अंतिम संस्कार तक सारी जिम्मेदारी शशिकला ने ही संभाली और इसी बात से पार्टी में इस वक्त उनकी हैसियत सबसे बड़ी मानी जा रही है. यहां तक कि प्रधानमंत्री ने भी उन्हीं से बात की. यानी कल को अगर बीजेपी और AIADMK में कोई संवाद होता है तो उधर से रिस्पॉन्ड करने के साथ साथ उस पर फैसला भी शशिकला ही लेंगी. फिर तो हर पत्ता शशिकला की ही मर्जी से हिलेगा. बड़ी बात ये होगी कि उन पत्तों में पनीरसेल्वम खुद शामिल होते हैं या नहीं.
अब तक ओपी अम्मा की तस्वीर रख कर शासन किया करते रहे - आगे भी करते रहेंगे लेकिन फिर काफी कुछ बदला बदला भी होगा. ओपी अपनी अम्मा के प्रति निष्ठावान रहे. शशिकला के प्रति भी उनका वही रवैया रहे जरूरी तो नहीं.
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हो सकता है अब तक पनीरसेल्वम अब तक जो कुछ भी होता हो, होने देते रहे हों. कुछ गलत भी लगता हो तो चुप रह जाते रहे हों. लेकिन आगे भी क्या ऐसे ही चलता रहेगा. पनीरसेल्वम की बात करें तो वो अम्मा की नीतियों और सिद्धांतों के प्रति जरूर सख्त रहेंगे, लेकिन अगर कुछ ऊंच-नीच नजर आया तो उनका क्या रवैया होगा, ये देखना होगा.
शशिकला कदम कदम पर सहयोगी की भूमिका में रही हैं - अभी तक वो एआईएडीएमके की सदस्य नहीं हैं. तमिलनाडु की राजनीति, खासकर जयललिता की राजनीति को उन्होंने बेहद करीब से देखा है. मुमकिन है जयललिता के कुछ फैसलों में भी शशिकला की भूमिका रही हो - लेकिन इसका अंदाजा भी तभी लगाया जा सकेगा जब आगे वो ऐसा कुछ करके दिखाएं.
AIADMK में नेतृत्व अभी कोई बड़ा मसला नहीं है इसलिए विपक्षी डीएमके को तत्काल ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है. चुनाव अभी अभी हुए हैं. अगले चुनाव में चार साल से ज्यादा देर है इसलिए चेहरे को लेकर भी कोई बड़ी मुश्किल तत्काल नहीं आने वाली है. हो सकता है तब तक कोई न कोई भीड़ खींचने वाला नया चेहरा उभर आये. तब तक तो रिमोट शशिकला के ही पास है - बशर्ते पनीरसेल्वम ऐक्सीडेंटल सीएम को नियति और 'हजार जवाबों से अच्छी मेरी खामोशी' को ही सत्ता संचालन का मूल मंत्र न मान बैठें!
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