'मुझे क्यों इस्तीफा देना चाहिए?' पटना में मीडिया से जब बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने ये सवाल पूछा था तो वो किसी भी तरह का ज्ञान नहीं चाहिए था. ये जानते हुए भी कि इस सवाल से कई लोगों की भौंहे तन जाएंगी लेकिन फिर भी उन्होंने ये सवाल किया. इससे ये साफ था कि लालू यादव के सुपुत्र और युवा नेता किसी भी तरह का स्पष्टीकरण ना तो देना चाहते थे ना ही सुनना चाहते थे. हालांकि तेजस्वी यादव से इस मामले पर स्पष्टीकरण की मांग उनके गठबंधन के साथी जेडी (यू) लगातार कर रहे थे.
7 जुलाई को पटना में आरजेडी के नेता लालू यादव के परिवार पर सीबीआई के छापे के बाद से ही जदयू-राजद का गठबंधन खतरे में था और नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद गठबंधन के दो फाड़ हो जाने पर मुहर भी लग गई है. छापे से पहले दर्ज एफआईआर में सीबीआई ने लालू पर रेल मंत्री रहते हुए अपने अधिकारों के गलत इस्तेमाल का आरोप लगाया था. एफआईआर में कहा गया कि 2005 में लालू यादव ने पटना में तीन एकड़ जमीन के बदले रांची और पुरी में दो रेलवे होटल अपने दो करीबी लोगों को लीज पर दे दी थी.
भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी), 120 बी (आपराधिक साजिश) और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अन्य विभागों के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है. इसमें आरोपी के रूप में अन्य लोगों के अलावा लालू, उनकी पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, बेटा तेजस्वी के नाम दर्ज कराए गए हैं. हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तौर पर इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की थी लेकिन ये साफ था कि वो अपने डिप्टी से वो क्या उम्मीद कर रह थे.
जेडी (यू) के प्रवक्ताओं की ओर से पहले ही नीतीश की स्थिति स्पष्ट कर दी गई है. नीतीश किसी भी हाल...
'मुझे क्यों इस्तीफा देना चाहिए?' पटना में मीडिया से जब बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने ये सवाल पूछा था तो वो किसी भी तरह का ज्ञान नहीं चाहिए था. ये जानते हुए भी कि इस सवाल से कई लोगों की भौंहे तन जाएंगी लेकिन फिर भी उन्होंने ये सवाल किया. इससे ये साफ था कि लालू यादव के सुपुत्र और युवा नेता किसी भी तरह का स्पष्टीकरण ना तो देना चाहते थे ना ही सुनना चाहते थे. हालांकि तेजस्वी यादव से इस मामले पर स्पष्टीकरण की मांग उनके गठबंधन के साथी जेडी (यू) लगातार कर रहे थे.
7 जुलाई को पटना में आरजेडी के नेता लालू यादव के परिवार पर सीबीआई के छापे के बाद से ही जदयू-राजद का गठबंधन खतरे में था और नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद गठबंधन के दो फाड़ हो जाने पर मुहर भी लग गई है. छापे से पहले दर्ज एफआईआर में सीबीआई ने लालू पर रेल मंत्री रहते हुए अपने अधिकारों के गलत इस्तेमाल का आरोप लगाया था. एफआईआर में कहा गया कि 2005 में लालू यादव ने पटना में तीन एकड़ जमीन के बदले रांची और पुरी में दो रेलवे होटल अपने दो करीबी लोगों को लीज पर दे दी थी.
भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी), 120 बी (आपराधिक साजिश) और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अन्य विभागों के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है. इसमें आरोपी के रूप में अन्य लोगों के अलावा लालू, उनकी पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, बेटा तेजस्वी के नाम दर्ज कराए गए हैं. हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सार्वजनिक तौर पर इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की थी लेकिन ये साफ था कि वो अपने डिप्टी से वो क्या उम्मीद कर रह थे.
जेडी (यू) के प्रवक्ताओं की ओर से पहले ही नीतीश की स्थिति स्पष्ट कर दी गई है. नीतीश किसी भी हाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने 'जीरो टॉलेरेंस' की अपनी नीति से समझौता के मूड में नहीं थे. हालांकि उन्होंने इस महागठबंधन के साथ बने रहने की बात पर जोर दिया था लेकिन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आंखे बंद नहीं करेंगे ये भी स्पष्ट कर दिया. नीतीश कुमार ने तेजस्वी को उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों पर स्पष्टीकरण देने के लिए कहा था जिसे दबी जुबान में तेजस्वी से इस्तीफे की मांग के रूप में ही देखा जा रहा था.
तो तेजस्वी को क्या करना चाहिए था? अगर पहली बार विधायक बने तेजस्वी यादव अपने राजनीतिक करियर को चमकाने के लिए किसी से प्रेरणा या उदाहरण की तलाश में थे तो उन्हें सरकार में अपने बॉस के अलावा किसी और की तरफ नजर नहीं घुमानी चाहिए थी. नीतीश कुमार पूरे राजनीतिक करियर में अपनी जिम्मेदारियों और साफ छवि के लिए जाने जाते रहे हैं. और इस मामले पर भी अपना इस्तीफा देकर एक बार फिर से उन्होंने ये साबित कर दिया है.
जेडी (यू) के एक प्रवक्ता ने कहा- 'केवल दो रेलवे मंत्री ही हैं जिन्होंने रेल दुर्घटनाओं की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ दिया था. पहला- लाल बहादुर शास्त्री जिन्होंने नवंबर 1956 में अरियालूर ट्रेन दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था. दूसरे नीतीश कुमार हैं. जिन्होंने अगस्त 1999 में गैसल ट्रेन दुर्घटना के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. आखिर राजद के लोग ये नहीं देख सकते?'
लोकसभा चुनाव में पार्टी की निराशाजनक प्रदर्शन के बाद नीतीश ने मई 2014 में बिहार के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. उनके इस्तीफे ने सभी को हैरान कर दिया था. क्योंकि लोकसभा चुनाव के परिणाम का सरकार पर किसी तरह का सीधा असर नहीं था. इसके अलावा इस निर्णय से नीतीश कुमार का पूरा राजनीतिक करियर खतरे में पड़ सकता था, लेकिन नीतीश कुमार ने वो किया जो उन्हें लगा कि करना चाहिए.
विडम्बना ये है कि जो तेजस्वी यादव अपने पिता की तरह चुनौती का सामना कर रहे थे. तेजस्वी की रणनीति साफ थी. एक तरफ तो वो खुद को पीड़ित की तरह दिखाते रहे लेकिन साथ ही उप-मुख्यमंत्री की कुर्सी भी नहीं छोड़ी. इस तरह से वो सीबीआई छापे के पीछे भाजपा की साजिश का खुलासा करना चाहते थे लेकिन हुआ ठीक उल्टा और कुर्सी तो गई ही हाथ से अब पीड़ित की छवि भी नहीं बना पाएंगें.
जेडीयू के नेता ने कहा- 'अगर जिस दिन सीबीआई ने उनके घर पर छापा मारा था उसी दिन तेजस्वी ने इस्तीफा दे दिया होता तो वो जनता को मासूम और पीड़ित की तरह दिखते. लेकिन कुर्सी को पकड़े बैठे रहना उन्हें किसी भी तरह की मदद नहीं करेगा. बल्कि जितना ज्यादा वो कुर्सी से चिपके रहेंगे, उनकी छवि को उतना ही नुकसान होगा.'
एक अन्य जद (यू) नेता कहते हैं- 'तेजस्वी एक क्रिकेटर रह चुके हैं. इसलिए वो इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि जब 1999 में दिल्ली टेस्ट में जवागल श्रीनाथ ने क्या किया था. उनके हाथ में गेंद थी और वो चाहते तो पाकिस्तान के दोनों पुछल्ले बल्लेबाजों को वापस पवेलियन भेज सकते थे. लेकिन उन्होंने अपने ओवर के 6 की 6 गेंदे वाइड ऑफ स्टम्प पर फेंका ताकि वो विकेट नहीं ले पाएं. इसके पीछे उनका मकसद सिर्फ अपनी टीम के साथी अनिल कुंबले को मौका देना था, जो अगला ओवर फेंकने वाले थे और एक पारी में 10 विकेट लेने का रिकॉर्ड बना सकते थे. इस उपलब्धि को हासिल करने वाले वो क्रिकेट के इतिहास में सिर्फ दूसरे गेंदबाज बन गए थे. इसी तरह गेंद अब तेजस्वी के पाले में थी और वो चाहते तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में ग्रैंड एलायंस को कुंबले की तरह रिकॉर्ड बनाने का मौका थमा सकते थे.
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