पाकिस्तान के डॉन अखबार के रिपोर्टर सिरिल अलमेडा ने 6 अक्टूबर को एक एक्सक्लूसिव स्टोरी की. इसमें सूत्रों का जिक्र करते हुए कहा गया कि पाकिस्तानी नेतृत्व ने सैन्य-खुफिया एजेंसी को स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि जब तक आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब तक पाकिस्तान को विश्व में अलगाव का सामना करना पड़ेगा.
इस आर्टिकल के छपने के कुछ दिन के बाद पाकिस्तान सरकार ने इस रिपोर्ट को गलत और मनगढ़ंत करार देते हुए इसके लिए जिम्मेदार शख्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आदेश दिया. साथ ही साथ 11 अक्टूबर को अलमेडा को एग्जिट कंट्रोल लिस्ट में डाल दिया जिसका मतलब यह था की वे देश छोड़कर नहीं जा सकते है.
ये स्टोरी तब छपी है जब भारत द्वारा किये गए सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान बौखलाया हुआ है. पाकिस्तान से ऐसे कई रिपोर्ट आ रहे है जो बताते हैं कि वहां पर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है. पाकिस्तानी सेना और सरकार में अनबन है और नॉन स्टेट एक्टर और आतंकवादियो के खिलाफ करवाई करने का दबाव बढ़त जा रहा है.
प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का कार्यालय अलमेडा की इस रिपोर्ट को तीन बार खारिज कर चुका हैं. लेकिन डॉन अखबार अड़ा हुआ है. अखबार का कहना है कि अलमेडा ने जो कुछ लिखा है, वह प्रमाणों के आधार पर लिखा है. इस पूरे घटनाक्रम को देखें तो ये कहने में कहीं से संकोच नहीं करना चाहिए कि अलमेडा की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है. पाकिस्तानी सरकार के इस एक्शन के बाद उनके अंदर इस बात का खौफ बढ़ गया हैं कि नवाज शरीफ सरकार उनके खिलाफ सख्त करवाई कर सकती हैं.
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पाकिस्तान के पत्रकार संघ और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सरकार से अलमेडा पर लगाए यात्रा और अन्य प्रतिबंधों को...
पाकिस्तान के डॉन अखबार के रिपोर्टर सिरिल अलमेडा ने 6 अक्टूबर को एक एक्सक्लूसिव स्टोरी की. इसमें सूत्रों का जिक्र करते हुए कहा गया कि पाकिस्तानी नेतृत्व ने सैन्य-खुफिया एजेंसी को स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि जब तक आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब तक पाकिस्तान को विश्व में अलगाव का सामना करना पड़ेगा.
इस आर्टिकल के छपने के कुछ दिन के बाद पाकिस्तान सरकार ने इस रिपोर्ट को गलत और मनगढ़ंत करार देते हुए इसके लिए जिम्मेदार शख्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आदेश दिया. साथ ही साथ 11 अक्टूबर को अलमेडा को एग्जिट कंट्रोल लिस्ट में डाल दिया जिसका मतलब यह था की वे देश छोड़कर नहीं जा सकते है.
ये स्टोरी तब छपी है जब भारत द्वारा किये गए सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान बौखलाया हुआ है. पाकिस्तान से ऐसे कई रिपोर्ट आ रहे है जो बताते हैं कि वहां पर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है. पाकिस्तानी सेना और सरकार में अनबन है और नॉन स्टेट एक्टर और आतंकवादियो के खिलाफ करवाई करने का दबाव बढ़त जा रहा है.
प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का कार्यालय अलमेडा की इस रिपोर्ट को तीन बार खारिज कर चुका हैं. लेकिन डॉन अखबार अड़ा हुआ है. अखबार का कहना है कि अलमेडा ने जो कुछ लिखा है, वह प्रमाणों के आधार पर लिखा है. इस पूरे घटनाक्रम को देखें तो ये कहने में कहीं से संकोच नहीं करना चाहिए कि अलमेडा की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है. पाकिस्तानी सरकार के इस एक्शन के बाद उनके अंदर इस बात का खौफ बढ़ गया हैं कि नवाज शरीफ सरकार उनके खिलाफ सख्त करवाई कर सकती हैं.
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पाकिस्तान के पत्रकार संघ और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सरकार से अलमेडा पर लगाए यात्रा और अन्य प्रतिबंधों को तत्काल हटाने का आग्रह किया हैं. प्रेस एक स्वतंत्र इकाई हैं और सरकार द्वारा इस तरह से प्रतिबन्ध लगाना बिलकुल निंदनीय हैं.
पाकिस्तान में पत्रकारों की क्या स्थिति हैं किसी से छिपी नहीं हैं. पाकिस्तान के कई अख़बार पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान में प्रेस की दशा को लेकर लिखते रहे हैं. पिछले साल डॉन ने अपने एक संपादकीय में लिखा था कि पाकिस्तान पत्रकारों के लिए बिल्कुल सुरक्षित नहीं है. उसमें नॉन-स्टेट तत्वों और सरकार प्रायोजित तत्वों को पत्रकारों को धमकियों और हमलों के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हुए सरकार पर प्रतिबद्धता नहीं दिखाने का आरोप लगाया गया था.
सिरिल अलमेडा, जिनकी रिपोर्ट पर पाकिस्तान सरकार को देनी पड़ी सफाई |
एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान पूरे विश्व में पत्रकारों के लिए चौथा सबसे खतरनाक देश है. 1990 से लेकर अब तक पाकिस्तान में करीब 115 पत्रकारों की हत्या हुई हैं. फ्रीडम प्रेस इंडेक्स 2016 में पाकिस्तान को 195 देशों की सूची में 147वां स्थान मिला है. साथ ही साथ पाकिस्तान की रेटिंग 'नॉट फ्री' रखी गयी हैं. इस रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया हैं कि पाकिस्तान के पत्रकार ये अनुभव करते हैं की उनकी कोई भी क्रिटिकल रिपोर्ट को सरकार रोकने की कोशिश करती है. ऐसे में उनको स्टेट और नॉन स्टेट एक्टर दोनों का डर हमेशा सताता रहता हैं कि कब उन पर हमला हो जाये.
पकिस्तान का संविधान और कुछ कानून सरकार को ये अधिकार देते हैं जिससे पत्रकार सैन्य बल, न्यायतंत्र, धर्म आदि पर खुल कर नहीं लिख सकते. इस कारण कई बार उनके लिखने की आजादी पर प्रतिबंध लगता रहता है.
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2014 में पाकिस्तान के बड़े पत्रकार हामिद मीर पर जानलेवा हमला हुआ था. इसके जांच में बैठी न्यायिक समिति ने अपनी फाइनल रिपोर्ट में लिखा था की वे इस बात का पता नहीं लगा सके कि हमला किस वजह से हुआ और इसके पीछे कौन से तत्व थे. आप इससे ही अंदाज लगा सकते हैं कि पाकिस्तान में पत्रकार कितने सुरक्षित और स्वतंत्र हैं. पाकिस्तान की सरकार अपने ही पत्रकार को सुरक्षा मुहैया नहीं कर पाती हैं. उन पर हमले होते रहे हैं लेकिन सरकार हाथ पर हाथ धरे रह जाती हैं. वैसे भी, जहां सेना-आतंकी-आईएसआई का गठजोड़ हो वहां सरकार से उम्मीद रखना बेमानी है.
डॉन अख़बार के रिपोर्टर सिरिल अलमेडा से जिस तरह का व्यवहार हुआ हैं, ये पाकिस्तान में कोई पहली घटना नहीं है. पहले भी इस तरह की घटनायें वहां पर हुई हैं. 1999 में नजम सेठी को एक महीने के लिए आईएसआई द्वारा हिरासत में लिया गया था जब उन्होंने सरकारी करप्शन की बात एक इंटरव्यू में की थी.
जिया उल हक के शासन में पत्रकारों के साथ क्या हुआ था...(साभार- दि डॉन, 1979 की एक तस्वीर) |
उसी तरह 2002 में एक पत्रकार रशीद आज़म को राजद्रोह के मामले में गिरफ्तार किया गया था जब उन्होंने एक फोटोग्राफ छापा था जिसमे पाकिस्तानी सेना के जवान को एक बलूची युवक को मारते हुए दिखाया गया था. 2003 में कई बार कई पत्रकारों को मुशर्रफ सरकार की चेतावनी झेलनी पड़ी थी कि वे सरकारी विरोधी लेख नहीं लिखे. 2007 में भी मुशर्रफ ने प्रेस के खिलाफ दमनकारी आर्डिनेंस लाया था.
साफ हैं की पाकिस्तान में पत्रकारिता डर के साये में होती हैं. प्रेस की आजादी सुरक्षित रखनी है तो पत्रकार सुरक्षित रहना चाहिए और यही कथन पाकिस्तान पर भी लागू होता है.
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