बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन फिलहाल सिर्फ EVM के नाम पर हो रहा है - ज्यादातर पार्टियां न तो सांप्रदायिकता के खिलाफ एकजुट होने की बात कर रही हैं, न आरएसएस के आरक्षण खत्म करने की मंशा को लेकर.
फिलहाल EVM ही वो मसला है जिसको लेकर ये पार्टियां एक जैसी पीड़ा महसूस कर रही हैं और इसी वजह से लामबंद हो रही हैं. इसीलिए सवाल उठता है कि ये महागठबंधन कितना टिकाऊ होगा?
EVM पीड़ितों का फोरम
मोदी विरोध के नाम पर खड़े होने जा रहे संभावित महागठबंधन के टिकाऊ होने के अभी सिर्फ तीन कारण सामने आये हैं - EVM, EVM और EVM. बिहार चुनाव के बाद से ही विपक्षी दल बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं. हर बार कोई एक नेता आपसी मुलाकात की पहल करता है और सब हामी भी भर देते हैं. जैसे ही कोई मीटिंग रखी जाती है कोई एक धड़ा किसी और की वजह से दूरी बना लेता है. काफी पहले ममता बनर्जी ने दिल्ली में इसी मकसद से एक मीटिंग रखी थी. मीटिंग के ऐन पहले पता चला कि अरविंद केजरीवाल इसलिए नहीं पहुंचे क्योंकि मीटिंग में शरद पवार भी शामिल थे. एक अन्य मीटिंग को लेकर अखिलेश यादव के बारे में भी ऐसी ही चर्चा थी. अब हालात बदलने लगे हैं.
यूपी चुनाव के नतीजों के बाद अखिलेश यादव और मायावती - और राजौरी गार्डन के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपनी रणनीतियां बदलने के संकेत दिये हैं. पता चला है कि एमसीडी चुनावों में केजरीवाल की पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे सीधे टारगेट नहीं करने जा रही. मायावती और अखिलेश यादव ने भी एक दूसरे के साथ हाथ मिलाने की बारी बारी घोषणा कर दी है.
मायावती ने कहा कि EVM की गड़बड़ी के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी - और इसके लिए वो हर किसी की मदद लेने को तैयार हैं जो बीजेपी के खिलाफ खड़ा नजर...
बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन फिलहाल सिर्फ EVM के नाम पर हो रहा है - ज्यादातर पार्टियां न तो सांप्रदायिकता के खिलाफ एकजुट होने की बात कर रही हैं, न आरएसएस के आरक्षण खत्म करने की मंशा को लेकर.
फिलहाल EVM ही वो मसला है जिसको लेकर ये पार्टियां एक जैसी पीड़ा महसूस कर रही हैं और इसी वजह से लामबंद हो रही हैं. इसीलिए सवाल उठता है कि ये महागठबंधन कितना टिकाऊ होगा?
EVM पीड़ितों का फोरम
मोदी विरोध के नाम पर खड़े होने जा रहे संभावित महागठबंधन के टिकाऊ होने के अभी सिर्फ तीन कारण सामने आये हैं - EVM, EVM और EVM. बिहार चुनाव के बाद से ही विपक्षी दल बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं. हर बार कोई एक नेता आपसी मुलाकात की पहल करता है और सब हामी भी भर देते हैं. जैसे ही कोई मीटिंग रखी जाती है कोई एक धड़ा किसी और की वजह से दूरी बना लेता है. काफी पहले ममता बनर्जी ने दिल्ली में इसी मकसद से एक मीटिंग रखी थी. मीटिंग के ऐन पहले पता चला कि अरविंद केजरीवाल इसलिए नहीं पहुंचे क्योंकि मीटिंग में शरद पवार भी शामिल थे. एक अन्य मीटिंग को लेकर अखिलेश यादव के बारे में भी ऐसी ही चर्चा थी. अब हालात बदलने लगे हैं.
यूपी चुनाव के नतीजों के बाद अखिलेश यादव और मायावती - और राजौरी गार्डन के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपनी रणनीतियां बदलने के संकेत दिये हैं. पता चला है कि एमसीडी चुनावों में केजरीवाल की पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे सीधे टारगेट नहीं करने जा रही. मायावती और अखिलेश यादव ने भी एक दूसरे के साथ हाथ मिलाने की बारी बारी घोषणा कर दी है.
मायावती ने कहा कि EVM की गड़बड़ी के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी - और इसके लिए वो हर किसी की मदद लेने को तैयार हैं जो बीजेपी के खिलाफ खड़ा नजर आएगा. मायावती के बाद अखिलेश यादव का भी मिलता जुलता बयान आया है और उन्होंने भी EVM पर फिर से उंगली उठाई है. वैसे अखिलेश यूपी चुनाव के नतीजे आने से पहले ही मायावती के साथ हाथ मिलाने के लिए रजामंदी जाहिर कर चुके थे.
मामला EVM का है इसलिए अरविंद केजरीवाल को भी इस फोरम में साथ होने से परहेज की गुंजाइश कम दिखती है. हालांकि, आम आदमी पार्टी की तरफ से अभी ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है.
मामला EVM का है इसलिए अरविंद केजरीवाल को भी इस फोरम में साथ होने से परहेज की गुंजाइश कम दिखती है. हालांकि, आम आदमी पार्टी की तरफ से अभी ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है.
...लेकिन ये चुनौतियां
सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ या मुख्य विपक्षी दल से भी अलग अगर कोई मोर्चा बनता है तो सिर्फ एक ही बात का संकट होता है - नेता कौन होगा? पिछले कई बरसों में हुई कोशिशों पर गौर करें तो पाएंगे कि तीसरे मोर्चे पहली और कभी कभी दूसरी मीटिंग से आगे नहीं बढ़ पाया क्योंकि पीएम कैंडिडेट तय ही नहीं हो पाया. अगर बिहार के महागठबंधन की बात करें तो वो इसीलिए बन पाया या फिर टिका हुआ भी है क्योंकि उसका एक नेता चुना गया. अगर यूपी की तरह वहां भी छह छह महीने की सरकार की शर्त होती तो सारे मोती कब के टूट कर बिखर चुके होते.
ताजातरीन प्रस्तावित गठबंधन के सामने भी ऐसी कई चुनौतियां हैं. अगर महागठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर होगा तो कौन नेता होगा? राज्य के स्तर पर होगा तो कौन अगुवाई करेगा? अगर राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी कोशिश होती है और कांग्रेस भी उसका हिस्सा बनती है तो क्या उसे राहुल गांधी के अलावा कोई और नाम मंजूर होगा? वैसे कांग्रेस भी विपक्ष के साथ फिलहाल EVM के नाम पर ही साथ हुई है - और कांग्रेस के अंदर से ही इसके विरोध में आवाज भी उठने लगी है. सीनियर कांग्रेस नेता एम वीरप्पा मोइली ने कांग्रेस के EVM विरोध को हार का बहाना खोजने का तरीका बताया है.
फर्ज कीजिए हालात से मजबूर कांग्रेस राहुल गांधी के अलावा अगर किसी और नाम पर तैयार भी होती है तो उस स्थिति में नेता कौन होगा? महागठबंधन की ताजा पहल में ममता बनर्जी, नीतीश कुमार और शरद पवार इन दिनों ज्यादा सक्रिय हैं. जिस तरह कांग्रेस में राहुल को लेकर रिजर्वेशन है ठीक वैसा ही केजरीवाल को खुद के लिए है.
विपक्षी पार्टियों के तेवर को देखते हुए चुनाव आयोग भी EVM पर एक बार फिर टेस्ट के लिए तैयार है. सुना है आयोग सवाल उठाने वालों को EVM हैक करने के लिए खुला चैलेंज देने वाला है. इस चैलेंज में किसी ने हैक कर EVM में छेड़छाड़ की बात साबित कर दिया, फिर तो कोई बात ही नहीं. अगर EVM को हैक करने में हर कोई नाकाम रहा फिर क्या होगा? क्या EVM का मसला खत्म हो जाने के बाद भी महागठबंधन टिका रहेगा? महागठबंधन के टिके होने पर सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि उसके पास मोदी विरोध के अलावा कोई अहम मुद्दा या ठोस कार्यक्रम नहीं है.
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