भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी (कांग्रेसी इतिहासकारों द्वारा घोषित) और देशभक्त सुल्तान टीपू की जयंती मना रही कर्नाटक सरकार के कार्यक्रम में असहिष्णु हिन्दुओं ने खलल डाल दी. दरअसल टीपू जी, हमारे हृदय में विराजते हैं, क्योंकि वो देशभक्त होने के साथ-साथ बड़े सेकुलर भी थे. कर्नाटक के बड़े प्रसिद्ध लेखक और विचारक एस.एल. भैरप्पा ने उन पर किताब लिखी है - आवरण. इस किताब में उन्होंने ऐतिहासिक साक्ष्यों को सिलसिलेवार पेश करते हुए साबित किया है कि माननीय टीपू जी परले दर्जे के धर्मांध थे, जिन्होंने अपनी हिन्दू प्रजा पर तमाम अत्याचार किए थे. केरल के अधिकांश मुसलमान उनके ही धर्मांतरण के अथक प्रयासों के परिणाम हैं. कर्नाटक के कुछ सेकुलर लेखकों ने भैरप्पा का बड़ा विरोध किया था. जिनमें नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत छोड़कर जाने की घोषणा करने वाले अनन्तमूर्ति भी थे और गिरीश कर्नाड भी. बहरहाल ये एक क्रूर ऐतिहासिक सत्य है कि टीपू निहायत ही कट्टर था. जिसने अपनी तलवार पर कभी खुदवाया था - या अल्लाह मैं इस दुनिया को काफिरों से आजाद कर सकूं...
खैर महान टीपू सुल्तान के बहाने इतिहास लेखन की बात चली. एक दो छोटा सा उदाहरण देखिए. 11वीं-12वीं की एनसीईआरटी का इतिहास लिखने वाले उद्भट विद्वान रामशरण शर्मा और सतीश चंद्र लिखते हैं -
'सम्राट अशोक के समय सभी धर्मों का आदर किया जाता था. सम्राट ने ब्राह्मणों का भी सम्मान करने को कहा था. लेकिन बौद्ध धर्म में यज्ञ मना था. इसलिए बलि बंद हो गई और प्रकारांतर में ब्राह्मणों की दक्षिणा भी जाती रही. लेकिन जब अशोक का निधन हुआ तो आक्रोशित ब्राह्मणों ने वहां आधिपत्य जमा लिया और यही बौद्ध धर्म के विनाश का कारण बना.'
कितना हास्यास्पद और दयनीय तर्क है. जो बौद्ध धर्म पूरे भारत में फैला था, वो सिर्फ इसलिए खत्म हो गया कि ब्राह्मण नाराज थे, उनकी दक्षिणा बंद हो गई थी. सच यह है कि अशोक के बाद की शक्तियों तक बौद्ध धर्म फलता-फूलता रहा. क्योंकि सारे महान बौद्ध मठ या विहार गुप्त काल और उसके बाद निर्मित हुए हैं और...
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी (कांग्रेसी इतिहासकारों द्वारा घोषित) और देशभक्त सुल्तान टीपू की जयंती मना रही कर्नाटक सरकार के कार्यक्रम में असहिष्णु हिन्दुओं ने खलल डाल दी. दरअसल टीपू जी, हमारे हृदय में विराजते हैं, क्योंकि वो देशभक्त होने के साथ-साथ बड़े सेकुलर भी थे. कर्नाटक के बड़े प्रसिद्ध लेखक और विचारक एस.एल. भैरप्पा ने उन पर किताब लिखी है - आवरण. इस किताब में उन्होंने ऐतिहासिक साक्ष्यों को सिलसिलेवार पेश करते हुए साबित किया है कि माननीय टीपू जी परले दर्जे के धर्मांध थे, जिन्होंने अपनी हिन्दू प्रजा पर तमाम अत्याचार किए थे. केरल के अधिकांश मुसलमान उनके ही धर्मांतरण के अथक प्रयासों के परिणाम हैं. कर्नाटक के कुछ सेकुलर लेखकों ने भैरप्पा का बड़ा विरोध किया था. जिनमें नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत छोड़कर जाने की घोषणा करने वाले अनन्तमूर्ति भी थे और गिरीश कर्नाड भी. बहरहाल ये एक क्रूर ऐतिहासिक सत्य है कि टीपू निहायत ही कट्टर था. जिसने अपनी तलवार पर कभी खुदवाया था - या अल्लाह मैं इस दुनिया को काफिरों से आजाद कर सकूं...
खैर महान टीपू सुल्तान के बहाने इतिहास लेखन की बात चली. एक दो छोटा सा उदाहरण देखिए. 11वीं-12वीं की एनसीईआरटी का इतिहास लिखने वाले उद्भट विद्वान रामशरण शर्मा और सतीश चंद्र लिखते हैं -
'सम्राट अशोक के समय सभी धर्मों का आदर किया जाता था. सम्राट ने ब्राह्मणों का भी सम्मान करने को कहा था. लेकिन बौद्ध धर्म में यज्ञ मना था. इसलिए बलि बंद हो गई और प्रकारांतर में ब्राह्मणों की दक्षिणा भी जाती रही. लेकिन जब अशोक का निधन हुआ तो आक्रोशित ब्राह्मणों ने वहां आधिपत्य जमा लिया और यही बौद्ध धर्म के विनाश का कारण बना.'
कितना हास्यास्पद और दयनीय तर्क है. जो बौद्ध धर्म पूरे भारत में फैला था, वो सिर्फ इसलिए खत्म हो गया कि ब्राह्मण नाराज थे, उनकी दक्षिणा बंद हो गई थी. सच यह है कि अशोक के बाद की शक्तियों तक बौद्ध धर्म फलता-फूलता रहा. क्योंकि सारे महान बौद्ध मठ या विहार गुप्त काल और उसके बाद निर्मित हुए हैं और उनका पतन मुस्लिम आक्रमणकारियों और मुगलों के भयंकर आक्रमण के बाद हुआ. नालंदा से विक्रमशिला, ओदांतपुरी सब ध्वस्त कर दिए गए. हजारों बौद्धों का कत्ल किया गया. दिलचस्प है हिन्दू धर्म से दुखी और बौद्ध धर्म अंगीकार करने वाले अंबेडकर लिखते हैं -
After Muslim invaders destroyed the universities of Nalanda, Vikramasheela, Jagaddala, Odanthapura etc., followed by brutal killings of the Buddhist monks, forced the survivors to escape to Nepal, Tibet and other neighbouring countries to save their lives. The roots of Buddhism were axed. Islam killed Buddhism by killing priestly class of Buddhism. This is the worst catastrophe suffered by Buddhism in India.
(Writings and Speeches volume III, Government of Maharashtra 1987 pp 229-38)
वहीं मार्क्सवादी इतिहासकार शर्मा जी लिखते हैं कि इस्लामी आक्रांताओं ने बौद्ध विहारों को लूटा क्योंकि उन्हें वहां से धन हासिल होने की उम्मीद रहती थी. बौद्ध भिक्षुओं के मठ से धन!! वाह क्या इंटलेक्ट है... जिस इंटलेक्ट की बात हबीब साहब करते हैं. कांग्रेसी सरकार में साफ निर्देश था कि इतिहास के सभी कटु सत्यों को तरीके से बदल दिया जाए. यही इतिहास हमने पढ़ा है, इसलिए आज टीपू महान देशभक्त हो जाते हैं और ब्राह्मण बौद्धों को मारने वाले!
PS: दिलचस्प बात ये है कि जब शंकर कुमारिल भट्ट के पास शास्त्रार्थ के लिए आए थे तो कुमारिल खुद को आत्मदाह कर खत्म कर रहे थे, तभी उन्होंने शंकर से मण्डन मिश्र के पास जाने को कहा था... लेकिन वो आत्मदाह क्यों कर रहे थे? क्योंकि कुमारिल ने शास्त्रार्थ में अपने बौद्ध गुरु को पराजित कर दिया था और उन्हें पश्चाताप था कि गुरु उनके हाथों हार गए. लेकिन इन महान इतिहासकारों के मुताबिक भारत में सब कुछ गंध था!!!
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