बीजेपी फिलहाल यही मैसेज दे रही है वरुण गांधी कुछ भी कर लें, उनकी दाल नहीं गलने वाली. खबरें भी अंदर से वैसी ही निकल कर आ रही हैं - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चलते अमित शाह खफा हैं और इसलिए केशव मौर्या भी.
तमाम अटकलों के बीच इलाहाबाद में वरुण गांधी की धमाकेदार एंट्री प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह के टक्कर की रही या उससे थोड़ी ही कम. वो भी तब जब कुछ ही दिन पहले उन्हें सुल्तान न बनने और सुल्तानपुर की हद में ही बने रहने की हिदायत दी गई थी.
क्या वरुण गांधी जो कुछ कर रहे हैं वो ताकत दिखाने की उनकी खुद की कोशिश है, या फिर यूपी में बीजेपी के प्लान ए, बी या सी या किसी खास रणनीति का हिस्सा?
द वरुण गांधी
कोई पसंद करे या नापसंद, पर वरुण गांधी को नजरअंदाज करने की हिमाकत इस वक्त मुश्किल है. ये बात बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही समझते होंगे. वरुण के समर्थक फिलहाल उन्हें यूपी का सीएम बनाने की मुहिम चला रहे हैं. ये समर्थक बीजेपी में तो हैं ही - अब कांग्रेस में भी नजर आने लगे हैं.
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यूपी कांग्रेस के महासचिव उमेश पंडित ने तो यहां तक कह डाला है कि 'एक अच्छा आदमी गलत पार्टी में है.' इंडियन एक्सतप्रेस के पूछने पर उमेश पंडित बताते हैं, "मेरा कहना था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस मुक्तम भारत की बात करते हैं और भाजपा नेता गांधी-नेहरु परिवार के निशानों को हटाने की बात करते हैं, लेकिन गांधी-नेहरु परिवार को सबसे बड़ा निशान उनके पास है. अब समय है कि वे कांग्रेस में आ जाएं और दोनों भाई (राहुल और वरुण) मिलकर देश को बचाने के लिए कांग्रेस को मजबूत करें.” सही बात है, लोकतंत्र बचाओ मार्च में वरुण भी होते तो बात और होती.
कांग्रेस के भीतर प्रियंका वाड्रा के समर्थन में अक्सर कुछ कार्यकर्ता बैनर पोस्टर लेकर आ जाते हैं, लेकिन वरुण को लेकर पहली बार किसी पदाधिकारी ने इतने मजबूत तरीके से से और चुनाव के ऐन मौके पर पहली बार ऐसी बात कही है.
फेवरेट च्वाइस क्यों?
तमाम सर्वे में वरुण गांधी के भारी पड़ने के कारण साफ हैं. वरुण गांधी को इसलिए तरजीह मिलती है क्योंकि वो यूपी के हैं और स्मृति ईरानी बाहरी हो जाती हैं. स्मृति ईरानी अमेठी से राहुल के खिलाफ काफी अच्छा लड़ी थीं, लेकिन वो नरेंद्र मोदी तो हैं नहीं कि जहां गईं वहीं की हो जाएंगी. वैसे भी बनारस और अमेठी में बड़ा फर्क है, हर हिसाब से. तुलना जब राजनाथ सिंह से होती है तो वरुण का युवा होना उन्हें आगे कर देता है.
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यूपी की राजनीति में जाति की ज्यादा ही अहमियत है. राजनाथ सिंह इस खांचे में फिट तो हो जाते हैं लेकिन उनका नंबर काफी कम है जो जीत के लिए कतई काफी नहीं है. वरुण गांधी जातीय फॉर्मूले से ऊपर हो जाते हैं, गांधी टाइटल जो है.
बीजेपी में मिसफिट क्यों?
वरुण गांधी की छवि साफ सुथरी है - और लोगों से कनेक्ट होने की खूबी भी है. पहले पीलीभीत और फिर सुल्तानपुर, दो बार सांसद होने के साथ साथ उनके समर्थकों की अच्छी तादाद है.
2009 में अपने विवादित बयान के कारण वरुण को जेल जाना पड़ा और रासुका भी लगाया गया, लेकिन 2013 में वो अदालत से बरी हो गये.
जहां तक हिंदूवादी और कट्टर विचारों की बात है तो बीजेपी में वरुण के अलावा योगी आदित्यनाथ भी हैं. दोनों की ही अपनी अपनी मजबूत फॉलोविंग है - और दोनों अपने अपने हिसाब से चलते हैं. लेकिन क्या बीजेपी अपने ही एजेंडे पर किसी नई ताकत को उभरने का मौका देगी? बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि देश के किसी और हिस्से में कोई ऐसी ताकत उभरे जो शिवसेना की तरह उसे कदम कदम पर चैलेंज करता फिरे.
योगी आदित्यनाथ को अलग रख कर देखें तो क्या बीजेपी को वरुण गांधी के कट्टर हिंदूवादी विचार से आपत्ति है?
बीजेपी अब आपत्ति होने लगी है, कुछ हद तक. अब बीजेपी कट्टर हिंदूवाद से आगे बढ़ कर अपनी छवि पेश करना चाहती है. कुछ इस तरह जो प्रधानमंत्री मोदी के 'सबका साथ, सबका विकास' के पैमाने में फिट बैठता हो. यानी बीजेपी ये तो चाहती है कि उसके नेता संघ की विचारधारा को आगे बढ़ाएं, लेकिन उसमें कट्टरपन की झलक उतनी ही हो कि स्वीकार्यता में बाधा न बने.
आखिर वो कौन सी बात है जिसके चलते बीजेपी आलाकमान की वरुण से नाराजगी की बात कही जाती है?
बात तब की है जब वरुण गांधी पश्चिम बंगाल के प्रभारी थे - फरवरी, 2014. कोलकाता में नरेंद्र मोदी की एक रैली हुई. रैली में भीड़ को लेकर वरुण गांधी का कहना रहा - 'ठीक-ठाक'. बस, तभी से अमित शाह नाराज बताए जाते हैं. कुछ बीजेपी नेता बातचीत में इसे स्वीकार करते हैं. चूंकि माना ये जाता है कि एक बार जो मोदी की आंख की किरकिरी बन जाए उसकी तो खैर नहीं. भला संजय जोशी से बेहतर इसे कौन जानता होगा. हालांकि, वरुण के मामले में ऐसा कभी देखने को नहीं मिला है.
तो क्या वरुण गांधी को बीजेपी में तवज्जो न मिलने की बस इतनी ही वजह है? शायद, नहीं!
ट्रंप कार्ड तो नहीं?
फर्ज कीजिए कांग्रेस प्रियंका गांधी वाड्रा को यूपी में आगे करती है, तो क्या वरुण गांधी काउंटर अटैक के लिए असरदार हथियार नहीं साबित होंगे?
निश्चित रूप से वरुण गांधी काउंटर के लिए बेस्ट वेपन हैं, बशर्ते वो इस काम के लिए राजी हों, राजी सीएम कैंडिडेट बनने के लिए नहीं, राहुल, प्रियंका और सोनिया पर अटैक करने के लिए. असल में बीजेपी वरुण से यही अपेक्षा रखती है.
बीजेपी में अब तक यही राय है कि वरुण गांधी कभी भी अपने चचेरे भाई बहनों या सोनिया पर सीधे हमले नहीं करते. प्रियंका की ओर से भी वरुण ठीक से गीता पढ़ने की सलाह देते ही सुना गया है. वैसे भी प्रियंका बड़ी बहन हैं और दोनों का बचपन बेहद आत्मीय बताया जाता है.
ये जानती हुए भी कि वरुण के मन में राहुल, प्रियंका और सोनिया को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर है, बीजेपी को पता है कि उनकी कमजोर कड़ी मेनका गांधी भी बीजेपी में ही हैं. वरुण के बीजेपी छोड़ने की स्थिति में मेनका की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं.
हो सकता है कि बीजेपी वरुण गांधी को ट्रंप कार्ड के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती हो, लेकिन वो तो ऐन मौके पर ही सामने आता है. मगर, जो भी हो फिलहाल वरुण गांधी के दोनों हाथों में लड्डू हैं - बाकी उनकी मर्जी और किस्मत कनेक्शन.
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