भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़े कुछ हिंदू संगठनों ने नौ जून को जयपुर में दो घंटे का चक्का जाम रखा. इन संगठनों का विरोध जयपुर में पिछले एक साल में तोड़े गए कई मंदिरों को लेकर है.
इन दिनों कई मुश्किलों से जूझ रहीं राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खुद बेहद धार्मिक हैं. पिछले ही दिनों आठ और नौ जुलाई को मध्य प्रदेश के दतिया के पितांबर पीठ में उन्होंने लबां अनुष्ठान आयोजित कराया. वह अक्सर इस मंदिर में आती रहती हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों से राजे जिस प्रकार कई विवादों में घिरी हैं, माना जा सकता है उससे छुटकारा पाने के लिए ही उन्होंने इस मंदिर का रूख किया होगा.
बहरहाल, यह सवाल भी उठता है कि राजस्थान में वसुंधरा राजे के खिलाफ जो लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, उनके विरोध की क्या एक वजह धर्म के प्रति आस्था ही है? साथ ही, अगर इतना व्यापक विरोध हो ही रहा है फिर क्यों अधिकारी मंदिरों को हटाने के अभियान में लगे हुए हैं? क्या कोई और रास्ता नहीं हो सकता था? यह है इसके 10 कारण...
1) कुछ असंतुष्ट BJP नेताओं को लगता है कि ललित मोदी प्रकरण के बाद वसुंधरा राजे कमजोर पड़ गई हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि मंदिर मुद्दे के बहाने खुद को मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए इस समय मुख्यमंत्री पर दबाव बनाया जा सकता है.
2) कुछ मंत्रियों का मानना है कि इस मुद्दे का इस्तेमाल वैसे अधिकारियों को हटाने के लिए किया जा सकता है जो उनका साथ नहीं देते. इन अधिकारियों की जगह वे अपने करीबी लोगों को वहां बैठा सकते हैं.
3) अनाधिकृत धार्मिक स्थानों को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद से हटाया जा रहा है. इसकी शुरुआत दो साल पहले हुई थी. अधिकारियों के जरिए कोर्ट इस पूरी प्रक्रिया पर सीधी नजर रखे हुए है.
4) कांग्रेस के शासन में हुए एक सर्वे के अनुसार कुल 58,000 अनाधिकृत धार्मिक स्थल हैं. इसमें 900 केवल जयपुर में ही हैं. एक औसत के मुताबिक इसमें कुल तीन प्रतिशत इस्लामिक धर्म स्थल हैं.
5) कांग्रेस के काल में 27 धार्मिक स्थलों को हटाया गया. BJP ने पिछले साल...
भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़े कुछ हिंदू संगठनों ने नौ जून को जयपुर में दो घंटे का चक्का जाम रखा. इन संगठनों का विरोध जयपुर में पिछले एक साल में तोड़े गए कई मंदिरों को लेकर है.
इन दिनों कई मुश्किलों से जूझ रहीं राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खुद बेहद धार्मिक हैं. पिछले ही दिनों आठ और नौ जुलाई को मध्य प्रदेश के दतिया के पितांबर पीठ में उन्होंने लबां अनुष्ठान आयोजित कराया. वह अक्सर इस मंदिर में आती रहती हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों से राजे जिस प्रकार कई विवादों में घिरी हैं, माना जा सकता है उससे छुटकारा पाने के लिए ही उन्होंने इस मंदिर का रूख किया होगा.
बहरहाल, यह सवाल भी उठता है कि राजस्थान में वसुंधरा राजे के खिलाफ जो लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, उनके विरोध की क्या एक वजह धर्म के प्रति आस्था ही है? साथ ही, अगर इतना व्यापक विरोध हो ही रहा है फिर क्यों अधिकारी मंदिरों को हटाने के अभियान में लगे हुए हैं? क्या कोई और रास्ता नहीं हो सकता था? यह है इसके 10 कारण...
1) कुछ असंतुष्ट BJP नेताओं को लगता है कि ललित मोदी प्रकरण के बाद वसुंधरा राजे कमजोर पड़ गई हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि मंदिर मुद्दे के बहाने खुद को मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए इस समय मुख्यमंत्री पर दबाव बनाया जा सकता है.
2) कुछ मंत्रियों का मानना है कि इस मुद्दे का इस्तेमाल वैसे अधिकारियों को हटाने के लिए किया जा सकता है जो उनका साथ नहीं देते. इन अधिकारियों की जगह वे अपने करीबी लोगों को वहां बैठा सकते हैं.
3) अनाधिकृत धार्मिक स्थानों को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद से हटाया जा रहा है. इसकी शुरुआत दो साल पहले हुई थी. अधिकारियों के जरिए कोर्ट इस पूरी प्रक्रिया पर सीधी नजर रखे हुए है.
4) कांग्रेस के शासन में हुए एक सर्वे के अनुसार कुल 58,000 अनाधिकृत धार्मिक स्थल हैं. इसमें 900 केवल जयपुर में ही हैं. एक औसत के मुताबिक इसमें कुल तीन प्रतिशत इस्लामिक धर्म स्थल हैं.
5) कांग्रेस के काल में 27 धार्मिक स्थलों को हटाया गया. BJP ने पिछले साल रिंग रोड बनाने के दौरान 73 को हटाया था. इसमें आठ इस्लाम धर्म से जुड़े हुए थे. साथ ही इसमें से ज्यादातर 50 साल पुराने भी नहीं थे. इन सभी को दोबारा निर्माण के लिए दूसरी जगह जमीन दी गई. कुछ धार्मिक स्थलों का नई जगह पर दोबारा निर्माण हो भी चुका है.
6) जून में छह प्राचीन मंदिरों को हटाया गया. यह सभी जयपुर मेट्रो के प्रस्तावित रास्ते में आ रहे थे. इन मंदिरों को हूबहू छोटे आकार में दूसरे जगह बनाया गया और मूर्तियों को वहां स्थापित किया गया. इनमें से कुछ जैसे रोजगारेश्वर महादेव में बड़ी संख्या में लोग आते हैं.
7) इस बीच 30 जून को राजस्थान हाई कोर्ट ने कड़ा रूख अपनाते हुए राजा पार्क के पास बेहद व्यस्त रोड पर पड़ने वाले एक मंदिर पर पांच लाख का जुर्माना लगा दिया. साथ ही अदालत ने उस मंदिर को गिराने का भी आदेश दे दिया. राज्य सरकार द्वारा मंदिर को दूसरी जमीन देने संबंधी प्रस्ताव को भी कोर्ट ने मानने से इंकार कर दिया. BJP के लिए इस मंदिर को बचाना अब एक प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है.
8) कुछ मौकों पर राज्य सरकार ने कहा कि प्रस्तावित रास्तों के बीच में कोई मंदिर आता है तो वह रास्तों का नक्शा बदलने के लिए तैयार है. लेकिन हाई कोर्ट ने सरकार की इस दलील को हास्यास्पद बताया. दूसरी ओर हिंदू संगठनों का कहना है कि पुराने मंदिरों को अतिक्रमण के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. साथ ही, कुछ मंदिरों का निर्माण सरकार को फिर से करवाना चाहिए. उनकी मांग है कि रोजगारेश्वर मंदिर को उसी स्थान पर दोबारा बनाया जाना चाहिए.
9) हाई कोर्ट ने सरकार को उन सभी के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज करने को कहा है, जिन्होंने सरकारी जमीन पर कोई धार्मिक स्थल बना रखा है.
10) ऐसे में BJP और हिंदू संगठनों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वे कैसे ज्यादा से ज्यादा मंदिरों को बचाएं. इनमें विभिन्न पार्कों में बने मंदिर भी शामिल हैं. साथ ही इन मंदिरों के प्रबंधन समीतियों को क्रिमिनल केस से बचाने की चुनौती भी हिंदू संगठनों पर है.
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