'पहले भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था. क्या आपको लगता है कि इसकी वजह मेक इन इंडिया थी? तब कोई उद्योग नहीं हुआ करता था. भारत गायों की वजह से सुरक्षित रहेगा, न कि मेक इन इंडिया से'. खेमचंद के श्रीमुख से निकली इन बातों को जानकर आपके मन में क्या भाव आते हैं नहीं मालूम लेकिन मेरी छोटी बुद्धि में जो आया वो यही कि ऐसी ही उलजूलुल बातें अगर होती रहीं तो 'सोने की चिड़िया' वाला सपना जो आज तक परोसा जाता रहा है, वो ऐसी ही अगले और 500 साल तक परोसा जाता रहेगा.
अब आप पूछेंगे कि खेमचंद कौन है! तो साहब ऐसा है कि गाय पर कोई एक लाइन बोल दीजिए. पूरा देश आपके बारे में पूछने लगेगा. रविवार को पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ब्रज क्षेत्र और उत्तराखंड के 'शीर्ष' गोरक्षकों की बैठक हुई. ये वो गोरक्षक हैं, जो विश्व हिंदू परिषद (VHP) से जुड़े हैं.
बहरहाल, वहां गहन चिंतन-मनन हुआ कि गायों की रक्षा कैसे हो. उसी में खेमचंद भी थे, जो VHP के गोरक्षा विभाग के सदस्य हैं. बताया- जो गाय की तस्करी या उनकी हत्या करने का काम करते हैं, गोरक्षक उन लोगों को पीटें लेकिन हड्डियां न तोड़े. 'मैं अपने साथ काम करने वाले लोगों से अक्सर यही कहता हूं कि अगर तुम किसी की हड्डी तोड़ते हो तो पुलिस के साथ मुश्किल में फंस सकते हो.'
गोरक्षा के नाम पर ढोंग कब तक? |
खेमचंद ने ये भी समझाया कि गोरक्षकों को गाय की तस्करी करने वालों की पिटाई करने का वीडियो नहीं बनाना चाहिए. कुछ उत्साही युवा ऐसा करते हैं. ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं. टाइम्स ऑफ इंडिया ने जब इनसे बात की तो खेमचंद सफाई देने लगे कि उनकी कोशिश केवल यह बताने की थी कि गोरक्षक कठिन परिस्थितियों में खुद को कैसे बचाएं क्योंकि कई बार गोरक्षकों का...
'पहले भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था. क्या आपको लगता है कि इसकी वजह मेक इन इंडिया थी? तब कोई उद्योग नहीं हुआ करता था. भारत गायों की वजह से सुरक्षित रहेगा, न कि मेक इन इंडिया से'. खेमचंद के श्रीमुख से निकली इन बातों को जानकर आपके मन में क्या भाव आते हैं नहीं मालूम लेकिन मेरी छोटी बुद्धि में जो आया वो यही कि ऐसी ही उलजूलुल बातें अगर होती रहीं तो 'सोने की चिड़िया' वाला सपना जो आज तक परोसा जाता रहा है, वो ऐसी ही अगले और 500 साल तक परोसा जाता रहेगा.
अब आप पूछेंगे कि खेमचंद कौन है! तो साहब ऐसा है कि गाय पर कोई एक लाइन बोल दीजिए. पूरा देश आपके बारे में पूछने लगेगा. रविवार को पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ब्रज क्षेत्र और उत्तराखंड के 'शीर्ष' गोरक्षकों की बैठक हुई. ये वो गोरक्षक हैं, जो विश्व हिंदू परिषद (VHP) से जुड़े हैं.
बहरहाल, वहां गहन चिंतन-मनन हुआ कि गायों की रक्षा कैसे हो. उसी में खेमचंद भी थे, जो VHP के गोरक्षा विभाग के सदस्य हैं. बताया- जो गाय की तस्करी या उनकी हत्या करने का काम करते हैं, गोरक्षक उन लोगों को पीटें लेकिन हड्डियां न तोड़े. 'मैं अपने साथ काम करने वाले लोगों से अक्सर यही कहता हूं कि अगर तुम किसी की हड्डी तोड़ते हो तो पुलिस के साथ मुश्किल में फंस सकते हो.'
गोरक्षा के नाम पर ढोंग कब तक? |
खेमचंद ने ये भी समझाया कि गोरक्षकों को गाय की तस्करी करने वालों की पिटाई करने का वीडियो नहीं बनाना चाहिए. कुछ उत्साही युवा ऐसा करते हैं. ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं. टाइम्स ऑफ इंडिया ने जब इनसे बात की तो खेमचंद सफाई देने लगे कि उनकी कोशिश केवल यह बताने की थी कि गोरक्षक कठिन परिस्थितियों में खुद को कैसे बचाएं क्योंकि कई बार गोरक्षकों का सामना ऐसे तस्करों से होता है जिनके पास घातक हथियार होते हैं.
पिछले साल के आखिर में इस्लामिक स्टेट (ISIS) की बलात्कार पर गाइडलाइन आई थी. इस्लाम के उन ठेकेदारों को लगा कि बीते कुछ दिनों में बलात्कार की कुछ घटनाएं शरियत कानून के खिलाफ रही हैं. लिहाजा, नया फतवा आया जिससे भविष्य में आतंकी बलात्कार को अंजाम देने में शरियत कानून की हद को न लांघें. यानी बलात्कार करने के लिए गाइडलाइंस को ध्यान में रखना होगा! अब गोरक्षा पर विश्व हिंदू परिषद के इस 'फतवे' और ISIS के फतवों का अंतर आप स्वयं खोजिए.
वैसे, गाय पर कभी आपने निबंध लिखा है- हिंदी में! स्कूल में जरूर लिखा होगा. गाय पर निबंध दरअसल हमारे लिए एक तरह से निबंध की एबीसीडी है. अमेरिका या ब्रिटेन का तो पता नहीं लेकिन भारत में जब बच्चा अक्षर ज्ञान हासिल करता है और फिर वाक्य बनाना सीखने लगता है गाय की एंट्री हो जाती है.
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इस बात से ही जाहिर हो जाता है कि भारतीय संस्कृति में गाय की महत्ता कहां है. कुछ लोगों को जबरन इसे बार-बार दोहराने की जरूरत नहीं है. यह भी क्या खूब है- गाय एक चौपाया जानवर है. यह हमें दूध, दही और घी देती है. लेकिन अब कुछ लोगों ने इससे विवाद भी निकालना सीख लिया है. गाय को माता बोल के अपने स्वार्थ के लिए आप उससे क्या-क्या लेंगे. पूरे देश के छोटे-बड़े शहरों को देख लीजिए. उन्हें उनके हाल पर तो हम सबने छोड़ ही दिया है. फिर बार-बार रक्षा का ढोंग क्यों?
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