हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय में अफसरों की कमी की खबर आई थी. अफसरों की कमी की जो वजह हैरान करने वाली थी - मालूम हुआ अफसर सीबीआई के डर से सीएमओ में काम करने से कतरा रहे हैं.
मनीष सिसोदिया के घर सीबीआई अफसरों के पहुंचने के बाद आम आदमी पार्टी को अलग से मौका मिल गया है. सीबीआई की लाख सफाई के बावजूद आप की ओर से सीबीआई के एक्शन को छापेमारी बताने की कोशिश की गयी.
वैसे भी दिल्ली के उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच जंग फिर से छिड़ गयी है. अरविंद केजरीवाल ने एलजी ऑफिस पर मुख्यमंत्री को भेजी जाने वाली फाइलों को लीक करने का इल्जाम लगाया है.
सीबीआई आई तो...
हुआ ये था कि उप राज्यपाल अनिल बैजल ने केजरीवाल सरकार द्वारा मंडी समितियों के गठन की फाइल लौटा दी थी. केजरीवाल का आरोप है कि इस मामले में फाइल के मुख्यमंत्री कार्यालय पहुंचने से पहले ही बीजेपी नेता विजेंदर गुप्ता का बयान आ गया था. केजरीवाल ने उप राज्यपाल से पूछा है कि मुख्यमंत्री को भेजी गई फाइल की कॉपी बीजेपी के पास पहले ही पहुंचना कितना उचित है?
एक नयी जंग...
इसी साल जनवरी में सीबीआई ने 'टॉक टू एके' केस में प्राथमिक जांच दर्ज की थी. इसे दिल्ली सरकार के विजिलेंस विभाग की शिकायत पर दर्ज किया गया था. असल में शूंगलू कमेटी की रिपोर्ट के बाद दिल्ली के उप राज्यपाल ने ये मामला सीबीआई को रेफर किया था. मामला दर्ज होने के बाद दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने ट्वीट कर कहा, "स्वागत है मोदी जी, आइए मैदान में… कल सुबह आपकी सीबीआई का दफ्तर और घर में इंतजार करूंगा… देखते हैं कितना जोर है आपके बाजू-ए-कातिल में."
...और सीबीआई आ धमकी!
पांच महीने बीते और सीबीआई की टीम सिसोदिया के घर पहुंच भी गयी. सीबीआई ने साफ किया कि ये न तो छापेमारी है और न ही कोई परिसर में सर्च ऑपरेशन. बताते हैं कि सीबीआई ने इस मामले में सिसोदिया का बयान दर्ज किया है.
लेकिन मनीष सिसोदिया के सलाहकार अरुणोदय प्रकाश ने इसे सीबीआई की छापेमारी ही माना. अरुणोदय ने ट्वीट कर कहा - एक ओर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अस्पतालों की जांच कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सीबीआई उप मुख्यमंत्री के घर रेड मार रही है. अगर केंद्र को लगता है कि ऐसा करने से मनीष सिसोदिया डर जाएंगे, तो वे गलती कर रहे हैं! सरासर गलती!
अपने अपने दावे
क्या है मामला?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मन की बात' कार्यक्रम की तर्ज पर दिल्ली के मुख्यमंत्री के लिए कार्यक्रम शुरू हुआ - टॉक टू एके. दोनों कार्यक्रमों में एक बड़ा फर्क रहा कि कि मन की बात एकतरफा होता है जबकि टॉक टू एके का फॉर्मैट इंटरैक्टिव यानी सवाल-जवाब के हिसाब से बनाया गया. इस कार्यक्रम का मकसद दिल्ली के लोगों से केजरीवाल के दोतरफा संवाद के लिए शुरू किया गया लेकिन किन्हीं खास वजहों से जारी न रह सका.
अब आरोप है कि इसके प्रचार का ठेका नियमों को ताक पर रखकर एक कंपनी को दिया गया. इस प्रचार प्रसार पर करीब 1.5 करोड़ का खर्च आया. चूंकि मनीस सिसोदिया दिल्ली सरकार के वित्त मंत्री और प्रचार विभाग के प्रमुख हैं इसलिए सारी जिम्मेदारी उन्हीं की बनती है. यही वजह है कि प्राथमिक जांच में उनके नाम भी शिकायत दर्ज है.
हाल की घटनानाएं
दिल्ली सरकार के कामकाज से जुड़ी हाल में आई दो खबरें गौर करने लायक हैं. पहली खबर वो जिसमें बताया गया कि मुख्यमंत्री कार्यालय में कम से कम एक दर्जन सीनियर अफसरों ने काम करने से इंकार कर दिया है. दूसरी, फेसबुक लाइव से जुड़ी वो खबर जिसमें बताया गया कि उसके लिए ग्लोबल टेंडर देने होंगे जिसमें एक महीने का वक्त लग जाएगा.
सूत्रों के हवाले से आई थी कि मुख्यमंत्री ने सीएमओ में काम करने के लिए 10-12 अफसरों से संपर्क किया लेकिन सभी ने विनम्रतापूर्वक इनकार कर दिया. माना गया कि अफसरों को आशंका है कि उनका भी हाल केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार और उप सचिव तरुण कुमार जैसा हो सकता है. अफसरों का मानना है कि अगर उन्होंने भी कोई जिम्मेदारी भरा पद ग्रहण किया तो वे राजेंद्र कुमार और तरुण कुमार की तरह सीबीआई के रडार पर आ सकते हैं.
आरोप और प्रत्यारोप के अपने अपने पक्ष और दावे होते हैं. एक ही बात को दोनों पक्ष अपने अपने हिसाब से परिभाषित करते हैं. सच तो निष्पक्ष जांच के बाद ही सामने आ पाता है.
सीबीआई अपनी ताजा कार्रवाई के बारे में सर्च ऑपरेशन या रेड होने इंकार कर रही है, जबकि आम आदमी पार्टी की ओर से उसे छापेमारी की कार्रवाई बताया जा रहा है. हकीकत जो भी हो, हर कोई इस बारे में अपने विवेक से अंदाजा लगा सकता है.
बावजूद इसके कुछ सवाल जरूर हैं जिनके जवाब मिलने बाकी हैं. मसलन, क्या दिल्ली के अफसरों का सीबीआई को लेकर डर वास्तव में सही था?
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