राज्यसभा में कुछ मनोनीत सांसदों की अनुपस्थिति पर हंगामा हो रहा है. कुछ सांसदों ने तो उनके इस्तीफे तक की मांग कर डाली. एसपी सांसद नरेश अग्रवाल ने यह मामला उठाते हुए कहा कि अगर सचिन और रेखा की दिलचस्पी इसमें नहीं है तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए. उन दोनों के बारे में कहा गया कि उनकी उपस्थिति सदन की बैठक में काफी कम रहें हैं. हालाँकि, ये सवाल पहली बार नहीं उठ रहा है. इसके पहले भी ऐसे सेलिब्रेटियों के सदन में अनुपस्थित रहने पर समय-समय पर सवाल उठाये जाते रहे हैं. इसको लेकर अब सचिन और रेखा पर तो सवाल उठ ही रहे हैं साथ ही अब यह भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या इस तरह के सेलिब्रेटी को राष्ट्रपति के द्वारा मनोनीत किया जाना चाहिए?
क्या है संवैधानिक व्यवस्था...
संविधान के अनुच्छेद 80 में यह उपबंधित है कि 12 सदस्य राज्यसभा में भारत के राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाएंगे. भारत के संविधान के अनुच्छेद 80(3) में यह उपबंधित है कि राष्ट्रपति के द्वारा मनोनीत किए जाने वाले सदस्यों को साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के मामलों का विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होना चाहिए. इन्ही संवैधानिक व्यवस्था के तहत भारत में इन हस्तियों को राज्यसभा में मनोनीत किया जाता रहा है.
पांच साल पहले, साल 2012 में जब सचिन और रेखा को राज्य सभा के लिए मनोनीत किया गया था तब देशवासियों को उनसे काफी उम्मीदें थी. खास कर सचिन तेंदुलकर से. उस समय पूरा देश उनसे यह उम्मीद कर रही थी कि देश में खेलों के दशा को वो सुधारेंगे लेकिन वो देशवासियों के उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे. राज्यसभा में बताया गया कि 2012 में मनोनयन के बाद से तेंदूलकर अभी तक केवल तीन बैठकों में ही शामिल हो पाए हैं. और तो और इस वर्ष तो वे एक दिन भी राज्यसभा की कार्यवाही में उपस्थित नहीं हुए. सचिन तेंदुलकर सांसद के...
राज्यसभा में कुछ मनोनीत सांसदों की अनुपस्थिति पर हंगामा हो रहा है. कुछ सांसदों ने तो उनके इस्तीफे तक की मांग कर डाली. एसपी सांसद नरेश अग्रवाल ने यह मामला उठाते हुए कहा कि अगर सचिन और रेखा की दिलचस्पी इसमें नहीं है तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए. उन दोनों के बारे में कहा गया कि उनकी उपस्थिति सदन की बैठक में काफी कम रहें हैं. हालाँकि, ये सवाल पहली बार नहीं उठ रहा है. इसके पहले भी ऐसे सेलिब्रेटियों के सदन में अनुपस्थित रहने पर समय-समय पर सवाल उठाये जाते रहे हैं. इसको लेकर अब सचिन और रेखा पर तो सवाल उठ ही रहे हैं साथ ही अब यह भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या इस तरह के सेलिब्रेटी को राष्ट्रपति के द्वारा मनोनीत किया जाना चाहिए?
क्या है संवैधानिक व्यवस्था...
संविधान के अनुच्छेद 80 में यह उपबंधित है कि 12 सदस्य राज्यसभा में भारत के राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाएंगे. भारत के संविधान के अनुच्छेद 80(3) में यह उपबंधित है कि राष्ट्रपति के द्वारा मनोनीत किए जाने वाले सदस्यों को साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के मामलों का विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होना चाहिए. इन्ही संवैधानिक व्यवस्था के तहत भारत में इन हस्तियों को राज्यसभा में मनोनीत किया जाता रहा है.
पांच साल पहले, साल 2012 में जब सचिन और रेखा को राज्य सभा के लिए मनोनीत किया गया था तब देशवासियों को उनसे काफी उम्मीदें थी. खास कर सचिन तेंदुलकर से. उस समय पूरा देश उनसे यह उम्मीद कर रही थी कि देश में खेलों के दशा को वो सुधारेंगे लेकिन वो देशवासियों के उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे. राज्यसभा में बताया गया कि 2012 में मनोनयन के बाद से तेंदूलकर अभी तक केवल तीन बैठकों में ही शामिल हो पाए हैं. और तो और इस वर्ष तो वे एक दिन भी राज्यसभा की कार्यवाही में उपस्थित नहीं हुए. सचिन तेंदुलकर सांसद के तौर पर पिछले 5 वर्षों में सिर्फ 22 सवाल ही पूछ पाए हैं. इन पांच सालों में वो सिर्फ 23 दिन ही संसद में आये. यानि क्रिकेट के दुनिया का भगवान कहलाने वाले सचिन, भगवान की तरह राज्य सभा में अदृश्य रहे.
अभिनेत्री रेखा को भी अप्रैल 2012 में उच्च सदन में मनोनीत किया गया था. उनका भी कुछ यही हाल है. रेखा ने अभी तक उच्च सदन की मात्र 7 बैठकों में हिस्सा लिया है. कुल मिलाकर रेखा अपने संसदीय करियर में अब तक सिर्फ 16 बार राज्यसभा में दिखाई दी हैं. रेखा के बारे में सबसे मज़ेदार बात यह रहा कि जितने दिन भी वे बैठक में मौजूद रहे सदन में उनकी कोई ऐसी उपलब्धि नहीं रही जिसकी चर्चा भी किया जा सके. वर्तमान में राज्यसभा में मनोनीत सदस्यों का नाम
सचिन तेंदुलकर, रेखा, रूपा गांगुली, अनु आगा, मैरीकॉम, केटीएस तुलसी, सुब्रह्माण्यन स्वामी,संभाजी छत्रपति, स्वपन दासगुप्ता, नरेंद्र जाधव, के. परासरन और गोपी सुरेश.
संविधान के अनुच्छेद 104 में कहा गया है कि अगर कोई सांसद बिना बताए लगातार 60 बैठकों तक सदन में नहीं आता तो उसकी सीट को खाली मान लिया जाए. राज्यसभा में चर्चा के दौरान उपसभापति ने कहा कि तेंदूलकर अभी केवल 40 बैठकों में नहीं आए हैं जबकि रेखा के मामलों में तो यह संख्या और भी कम है लिहाजा इन दोनों पर उक्त नियम लागू नहीं होता.
सरकार इन सांसदों का मनोनयन इसलिए करती है ताकि वे अपने विचारों और अनुभवों से सदन को अवगत करायें, अपने सुझाव दे जिससे देश की जनता को उनके विचारों से कुछ लाभ हो. लेकिन यहां तो स्थिति यह है कि वे बैठक में मौजूद ही नहीं होते हैं तो वो देश का क्या हित करेंगे?
लेकिन यहां सवाल ये उठता है कि क्या ग्लैमर के चक्कर में मनोनीत किए गए सेलेब्रिटीज़ संसद में अपनी भूमिका से न्याय कर पाते हैं? अपने निजी जीवन में तो वे प्रतिष्ठित होते ही हैं तो फिर उन्हें सदन में मनोनीत करने की आवश्यकता ही क्यों पड़ती है?
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