अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि वह और उनके सहयोगी देश सीरिया में आतंकी संगठन ISIS के खिलाफ लड़ाई में कोई रहमी नहीं दिखाएंगे और इस खूंखार संगठन को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे. लेकिन साथ ही ओबामा ने ISIS के खिलाफ इस जंग में रूस को भी साथ आने को कहा है.
रूस भी सीरिया में पिछले कुछ महीनों से बमबारी कर रहा है लेकिन उस पर आरोप लगते रहे हैं कि वह सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ लड़ रहे उन विद्रोहियों को निशाना बना रहा है, जिन्हें अमेरिका ने ट्रेनिंग दी है. दरअसल अब अमेरिका चाहता है कि सीरिया में शांति बहाली के लिए असद को सत्ता से हटाया जाए और इसीलिए वह रूस से असद के विद्रोहियों के खिलाफ बमबारी न करने की अपील कर रहा है. अमेरिका सीरिया से ISIS को तो मिटाना चाहता है लेकिन असद के खिलाफ लड़ रहे विद्रोहियों को बचाना क्यों चाहता है?
अब भी नहीं सुधरा अमेरिकाः
अमेरिका ने ISIS को बर्बाद और नेस्तनाबूत कर देने का संकल्प लिया है. लेकिन दूसरी तरफ वह सीरियाई विद्रोहियों को बचाना चाहता है. अमेरिका का यह दोहरा मापदंड हैरान करने वाला है और आंतक के खिलाफ लड़ाई में उसके रवैये पर सवाल उठाता है. अमेरिका की असद के विद्रोहियों को न मारने की रूस के की गई अपील से पता चलता है कि यह देश अब भी नहीं सुधरा है. क्या अमेरिका अब भी मानता है कि सीरिया में कुछ अच्छे (असद के विद्रोही) आतंकवादी हैं? इन विद्रोहियों को हथियार और धन उपलब्ध कराकर असद के खिलाफ लड़ने के लिए मदद कर अमेरिका एक नया खतरा नहीं पैदा कर रहा है?
इस बात की क्या गांरटी है कि असद के सत्ता से बेदखल होने के बाद ये सीरियाई विद्रोही नया खतरा नहीं बनेंगे? इराक का उदाहरण सामने है, जहां के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को रासायनिक हथियार रखने और अल्पसंख्यक शिया मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा करने के आरोपों के साथ अमेरिका ने न सिर्फ उन्हें सत्ता से बेदखल किया बल्कि मौत की सजा भी सुना दी. लेकिन सद्दाम के जाते ही इराक आज और भी ज्यादा बदहाल स्थिति में...
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि वह और उनके सहयोगी देश सीरिया में आतंकी संगठन ISIS के खिलाफ लड़ाई में कोई रहमी नहीं दिखाएंगे और इस खूंखार संगठन को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे. लेकिन साथ ही ओबामा ने ISIS के खिलाफ इस जंग में रूस को भी साथ आने को कहा है.
रूस भी सीरिया में पिछले कुछ महीनों से बमबारी कर रहा है लेकिन उस पर आरोप लगते रहे हैं कि वह सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ लड़ रहे उन विद्रोहियों को निशाना बना रहा है, जिन्हें अमेरिका ने ट्रेनिंग दी है. दरअसल अब अमेरिका चाहता है कि सीरिया में शांति बहाली के लिए असद को सत्ता से हटाया जाए और इसीलिए वह रूस से असद के विद्रोहियों के खिलाफ बमबारी न करने की अपील कर रहा है. अमेरिका सीरिया से ISIS को तो मिटाना चाहता है लेकिन असद के खिलाफ लड़ रहे विद्रोहियों को बचाना क्यों चाहता है?
अब भी नहीं सुधरा अमेरिकाः
अमेरिका ने ISIS को बर्बाद और नेस्तनाबूत कर देने का संकल्प लिया है. लेकिन दूसरी तरफ वह सीरियाई विद्रोहियों को बचाना चाहता है. अमेरिका का यह दोहरा मापदंड हैरान करने वाला है और आंतक के खिलाफ लड़ाई में उसके रवैये पर सवाल उठाता है. अमेरिका की असद के विद्रोहियों को न मारने की रूस के की गई अपील से पता चलता है कि यह देश अब भी नहीं सुधरा है. क्या अमेरिका अब भी मानता है कि सीरिया में कुछ अच्छे (असद के विद्रोही) आतंकवादी हैं? इन विद्रोहियों को हथियार और धन उपलब्ध कराकर असद के खिलाफ लड़ने के लिए मदद कर अमेरिका एक नया खतरा नहीं पैदा कर रहा है?
इस बात की क्या गांरटी है कि असद के सत्ता से बेदखल होने के बाद ये सीरियाई विद्रोही नया खतरा नहीं बनेंगे? इराक का उदाहरण सामने है, जहां के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को रासायनिक हथियार रखने और अल्पसंख्यक शिया मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा करने के आरोपों के साथ अमेरिका ने न सिर्फ उन्हें सत्ता से बेदखल किया बल्कि मौत की सजा भी सुना दी. लेकिन सद्दाम के जाते ही इराक आज और भी ज्यादा बदहाल स्थिति में पहुंच गया है और खतरनाक सुन्नी आतंकी संगठन ISIS ने इराक को नर्क बनाकर रख दिया है.
सीरियाई राष्ट्रपति बशर को हटाने के लिए विद्रोहियों को हथियार और धन से मदद करके अमेरिका एक और नई मुसीबत खड़ी कर रहा है. यह वैसी ही गलती है जैसा कि उसने 80 के दशक में अफगानिस्तान में रूसी सेना को कमजोर करने के लिए अफगानियों की मदद के लिए अलकायदा को खड़ा करके किया था. इससे भले ही रूस को अफगानिस्तान से लौटने के लिए विवश होना पड़ा था लेकिन बाद में अलकायदा न सिर्फ अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया के लिए कितना खतरनाक बन गया ये सबको अच्छी तरह पता है.
इसलिए बेहतर है कि अमेरिका अपने निजी स्वार्थ छोड़कर मानवता की भलाई के लिए ISIS को खत्म तो करे ही, साथ ही सीरियाई विद्रोहियों को मजबूत बनाने की गलती न करे. अगर अतीत में की गई अपनी गलतियों से अमेरिका ने अब भी सीख नहीं ली तो दुनिया को भविष्य में फिर किसी अलकायदा या ISIS जैसे खतरों से दो-चार होना पड़ सकता है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.