केरल पुलिस के आंकड़ों के अनुसार राज्य में पिछले 17 सालों (2000 - 2017) में लगभग 170 राजनीतिक हत्याएं हुईं हैं.इनमें से आरएसएस और भाजपा ने 65 कार्यकर्ताओं को खो दिया है. जबकि सीपीआई (एम) के 85 कार्यकर्ता मारे गए हैं.इस अवधि में कांग्रेस और आईयूएमएल के 11 कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतार दिया गया है. फ़रवरी 2016 से जुलाई 2017 के बीच 10 आरएसएस, भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हुई. तो दूसरी ओर 4 सीपीआई (एम) के कार्यकर्ता भी मार दिए गए. पुलिस आंकड़ों के अनुसार अधिकतर हत्याओं में आरएसएस, भाजपा, सीपीआई (एम), डीवायएफआई के कार्यकर्ताओं पर ही आरोप लगे हैं. परंतु दूसरे दलों ने भी अपने प्रतिद्वंदियों पर जानलेवा हमले किए हैं.
राजनीतिक हत्याओं का सिलसिला पूरे केरल में देखा जाता है. लेकिन राज्य के उत्तरी ज़िले कन्नूर में तो यह भयावह रूप ले चुका है. 2000 से 2016 के बीच कन्नूर में 69 राजनीतिक हत्याएं देखी गई. इनमें से, सीपीआई (एम) और आरएसएस-बीजेपी के लगभग बराबर संख्या में कार्यकर्ता मारे गए. सीपीआई (एम)- 30 और आरएसएस-बीजेपी- 31. आंकड़ो से यह भी ज्ञात होता है कि जब-जब सीपीआई (एम) की सरकार केरल में आती है तब-तब हत्याओं की संख्या बढ़ जाती है.
कन्नूर में क्यों होती है राजनीतिक हत्याएं?
केरल के अन्य जनपदों में हिंसा की घटनायें कुछ स्थानों तक ही सीमित है. लेकिन कन्नूर और हिंसा का चोली दामन का साथ है. कन्नूर में हिंसा कुछ मिनटों में फैल सकती है. ये अब वहां की राजनीति का हिस्सा बन चुकी है. कन्नूर में व्यक्ति और पार्टी लगभग अविभाज्य हो गए हैं. वहां लोगों के लिए आरएसएस या सीपीआई (एम) संगठन न होकर अलग-अलग शक्तियों के गढ़ में बदल गए है. कन्नूर में व्यक्तियों और पार्टी के बीच विभिन्न प्रकार की घनिष्ठता...
केरल पुलिस के आंकड़ों के अनुसार राज्य में पिछले 17 सालों (2000 - 2017) में लगभग 170 राजनीतिक हत्याएं हुईं हैं.इनमें से आरएसएस और भाजपा ने 65 कार्यकर्ताओं को खो दिया है. जबकि सीपीआई (एम) के 85 कार्यकर्ता मारे गए हैं.इस अवधि में कांग्रेस और आईयूएमएल के 11 कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतार दिया गया है. फ़रवरी 2016 से जुलाई 2017 के बीच 10 आरएसएस, भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हुई. तो दूसरी ओर 4 सीपीआई (एम) के कार्यकर्ता भी मार दिए गए. पुलिस आंकड़ों के अनुसार अधिकतर हत्याओं में आरएसएस, भाजपा, सीपीआई (एम), डीवायएफआई के कार्यकर्ताओं पर ही आरोप लगे हैं. परंतु दूसरे दलों ने भी अपने प्रतिद्वंदियों पर जानलेवा हमले किए हैं.
राजनीतिक हत्याओं का सिलसिला पूरे केरल में देखा जाता है. लेकिन राज्य के उत्तरी ज़िले कन्नूर में तो यह भयावह रूप ले चुका है. 2000 से 2016 के बीच कन्नूर में 69 राजनीतिक हत्याएं देखी गई. इनमें से, सीपीआई (एम) और आरएसएस-बीजेपी के लगभग बराबर संख्या में कार्यकर्ता मारे गए. सीपीआई (एम)- 30 और आरएसएस-बीजेपी- 31. आंकड़ो से यह भी ज्ञात होता है कि जब-जब सीपीआई (एम) की सरकार केरल में आती है तब-तब हत्याओं की संख्या बढ़ जाती है.
कन्नूर में क्यों होती है राजनीतिक हत्याएं?
केरल के अन्य जनपदों में हिंसा की घटनायें कुछ स्थानों तक ही सीमित है. लेकिन कन्नूर और हिंसा का चोली दामन का साथ है. कन्नूर में हिंसा कुछ मिनटों में फैल सकती है. ये अब वहां की राजनीति का हिस्सा बन चुकी है. कन्नूर में व्यक्ति और पार्टी लगभग अविभाज्य हो गए हैं. वहां लोगों के लिए आरएसएस या सीपीआई (एम) संगठन न होकर अलग-अलग शक्तियों के गढ़ में बदल गए है. कन्नूर में व्यक्तियों और पार्टी के बीच विभिन्न प्रकार की घनिष्ठता नज़र आती है. ये जाति, वर्ग और रिश्तेदारी द्वारा परिभाषित बहु-स्तरीय सामाजिक सामंजस्य बनाती है. पार्टी-निकाय अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करती है. जो जन्म से मृत्यु तक सब कुछ प्रदान करती है और सहायता करती है. कन्नूर में प्रचलित राजनीतिक संरचना अत्यंत दुर्लभ है. यहां राजनीतिक दलों में लोगों का प्रवेश बिल्कुल सहज तरीके से हो जाता है. यदि आप कन्नूर में एक राजनीतिक परिवार में पैदा होते हैं, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप उस दल के लिए मत देते है या नहीं, आपको उस दल से संबंधित ही माना जाएगा.
कन्नूर की राजनीति को समझने के लिए, हमें इस क्षेत्र के वर्ग और जाति की संरचना को समझना होगा. कन्नूर में थिया समुदाय जनसंख्या के अनुसार बहुतायत में हैं. जिसे दोनों राजनीतिक दल, सीपीआई (एम) और आरएसएस-बीजेपी अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं. थिया समुदाय केरल के अन्य पिछड़ा वर्ग का हिस्सा है. केरल के दूसरे क्षेत्रों से विपरीत कन्नूर में आरएसएस, थिया समुदाय के अंदर अपनी पैठ बनाने में सफल रहा है. सीपीआई (एम) और आरएसएस-बीजेपी अपने तरीकों से थिया समुदाय के साथ जुड़ने में प्रयासरत हैं. इसी प्रयास के फलस्वरूप दोनों दलों में टकराव होता है.कन्नूर में 1980 के दशक से पूर्व आरएसएस गैर राजनीतिक विषयों में कार्यरत था. इसके साथ वह मूलतः शहरी इलाक़ों में काम कर रहा था. 1990 आते-आते आरएसएस राजनीतिक विषयों व ग्रामीण इलाक़ों में भी काम करने लगा. इन्ही कारणों ने कन्नूर को जंग का मैदान बना रखा है.
जब तक सीपीआई (एम) और आरएसएस-बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व इस हिंसा को रोकने का काम नहीं करेगा, तब तक कोई सुधार संभव नहीं है|
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