पहले बात करें कलकत्ता के पड़ोस 24 परगना की. वहां पर एक आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट के बाद जमकर बवाल काटा गया. इलाके में हिंसा भड़कने के दौरान कई मंदिर व स्कूल जला दिए गए और दर्जनों दुकानों में लूटपाट की गई. दरअसल वहां 11वीं कक्षा के एक छात्र ने फेसबुक पर मुस्लिमों के किसी पवित्र स्थान के बारे में अपमानजनक टिप्पणी पोस्ट कर दी थी, जिसके विरोध में हजारों कट्टर मजहबी कोहराम मचाने कूद पड़े. जमकर दंगे हुए. उस भीड़ में से कुछ तो उस छात्र को पत्थर मारकर मार डालने की इजाज़त मांग रहे हैं, तब जबकि उस छात्र को तत्काल गिरफ़्तार कर लिया गया है. एक नाबालिग बच्चे की इस छोटी सी गलती को भी हजारों मजहबी बर्दाश्त नहीं कर सके. माफ करने के बजाय, सड़कों पर बवाल काटने उतर पड़े.
जरा इन सिरफिरों से पूछा जाए कि एक पोस्ट से क्या बिगड़ गया उस पवित्र स्थान का. एक तरफ अल्लाह को सबसे रहमदिल कहते हो और खुद इतने कमज़र्फ नफरत-दिल हो? खैर, पुलिस ने सजगता दिखाते हुए फेसबुक पर वह पोस्ट लगाने वाले नबालिग छात्र को गिरफ्तार कर लिया है. लेकिन, फिर भी मुसलमान सड़क जाम करने लगे, पुलिस पर हमले किए और पुलिस वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया. उत्तेजित भीड़ ने मौके पर पहुंचे पुलिसवालों के वाहनों की भी तोड़फोड़ की और पथराव किया. इसमें पुलिस अधीक्षक समेत कुछ पुलिसवाले घायल भी हो गए.
कोलकाता से सटे स्थान पर इतनी व्यापक स्तर पर आगजनी हुई, और हैरानी इसलिए हो रही है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हालातों पर काबू पाने की बजाए राज्य के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी पर ही आरोप लगाने शुरू कर दिए. उन्होंने कहा कि राज्यपाल महोदय ने धमकी दी. क्या उन्हें यह शोभा देता है कि उनका राज्य जल रहा है और वो सियासत कर रही हैं? क्या राज्यपाल को इतना भी अधिकार नहीं कि मुख्यमंत्री से यह पूछ...
पहले बात करें कलकत्ता के पड़ोस 24 परगना की. वहां पर एक आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट के बाद जमकर बवाल काटा गया. इलाके में हिंसा भड़कने के दौरान कई मंदिर व स्कूल जला दिए गए और दर्जनों दुकानों में लूटपाट की गई. दरअसल वहां 11वीं कक्षा के एक छात्र ने फेसबुक पर मुस्लिमों के किसी पवित्र स्थान के बारे में अपमानजनक टिप्पणी पोस्ट कर दी थी, जिसके विरोध में हजारों कट्टर मजहबी कोहराम मचाने कूद पड़े. जमकर दंगे हुए. उस भीड़ में से कुछ तो उस छात्र को पत्थर मारकर मार डालने की इजाज़त मांग रहे हैं, तब जबकि उस छात्र को तत्काल गिरफ़्तार कर लिया गया है. एक नाबालिग बच्चे की इस छोटी सी गलती को भी हजारों मजहबी बर्दाश्त नहीं कर सके. माफ करने के बजाय, सड़कों पर बवाल काटने उतर पड़े.
जरा इन सिरफिरों से पूछा जाए कि एक पोस्ट से क्या बिगड़ गया उस पवित्र स्थान का. एक तरफ अल्लाह को सबसे रहमदिल कहते हो और खुद इतने कमज़र्फ नफरत-दिल हो? खैर, पुलिस ने सजगता दिखाते हुए फेसबुक पर वह पोस्ट लगाने वाले नबालिग छात्र को गिरफ्तार कर लिया है. लेकिन, फिर भी मुसलमान सड़क जाम करने लगे, पुलिस पर हमले किए और पुलिस वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया. उत्तेजित भीड़ ने मौके पर पहुंचे पुलिसवालों के वाहनों की भी तोड़फोड़ की और पथराव किया. इसमें पुलिस अधीक्षक समेत कुछ पुलिसवाले घायल भी हो गए.
कोलकाता से सटे स्थान पर इतनी व्यापक स्तर पर आगजनी हुई, और हैरानी इसलिए हो रही है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हालातों पर काबू पाने की बजाए राज्य के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी पर ही आरोप लगाने शुरू कर दिए. उन्होंने कहा कि राज्यपाल महोदय ने धमकी दी. क्या उन्हें यह शोभा देता है कि उनका राज्य जल रहा है और वो सियासत कर रही हैं? क्या राज्यपाल को इतना भी अधिकार नहीं कि मुख्यमंत्री से यह पूछ सके कि स्थिति पर नियन्त्रण क्यों नहीं हो रहा?
क्या केशरी नाथ त्रिपाठी ने दंगाग्रस्त इलाकों की स्थिति पर ममता बनर्जी से फोन पर बात करके कोई अपराध कर दिया? वो कह रही हैं कि राज्यपाल ने उन्हें धमकी दी और अपमानित किया. हालांकि राज्यपाल ने सारे माहौल को शांत करने की मंशा से अपना स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि 'हमारी बातचीत में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे ममता बनर्जी को लगे कि उनकी बेइज्जती हुई, उन्हें धमकाया गया या उन्हें अपमानित किया गया.'
दरअसल पश्चिम बंगाल कठमुल्ला मुसलमानों का गढ़ बन गया है. आपको याद होगा कि पिछले साल मालदा में हजारों मुसलमानों की भीड़ ने किस तरह से उपद्रव किया था.
मालदा में बवाल करने वालों की मांग थी कि कमलेश तिवारी नाम के उस शख्स को फांसी दे दी जाए जिसने उनके नबी की शान में तथाकथित गुस्ताखी की. ये मांग तब हो रही थी जब तिवारी को रासुका लगाकर जेल में डाल दिया गया था. उस पर कई कठोर धाराएं लगा दी गई थीं. फांसी की मांग करने वालों को ये नहीं पता था कि तिवारी ने जो अपराध किया है, उसकी सजा देश के मौजूदा कानून के अन्दर किसी भी प्रकार से फांसी नहीं हो सकती.
इसके साथ ही यह भी तो गौर फरमाने योग्य है कि कोलकाता के एक मदरसे के हेडमास्टर काजी मासूम अख्तर को सिर्फ इसलिए बेरहमी से पीटा जाता है, क्योंकि उसने अपने छात्रों को राष्ट्रगान सिखाने की कोशिश की थी. अब यह सवाल अहम हो गया है कि क्या भारत में राष्ट्रगान गाना समाज के एक वर्ग के लिए जरूरी नहीं है? और एक लंबी डरावनी चुप्पी सामने आ रही है उन कथित लेखकों की तरफ से जो असहिष्णुता के सवाल पर अपने पुरस्कार लौटाते रहे हैं या जंतर-मंतर पर धरने पर बैठते रहे हैं. 24 परगना से लेकर मालदा के उपद्रवियों को ममता बनर्जी की सरकार कुछ नहीं कहती.
जन्नत में आग
और, पृथ्वी की जन्नत यानी दार्जिलिंग भी तो जल रहा है. दार्जिलिंग में भी हालात काबू से बाहर हो रहे हैं. वहां मानो सारा दार्जिंलिंग सड़कों पर उतर आया है. पर ममता बनर्जी संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए नीदरलैंड चली जाती हैं. कहती हैं, दार्जिलिंग में हिंसक प्रदर्शन बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे. पर उन्होंने यह चेतावनी 24 परगना में हंगामा करने वालों को नहीं दी.
दार्जिलिंग में वहां की इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गईं थीं. वहां पर बंद का आहवान किया जा रहा है. बंद का आहवान गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) ने किया है. जीजेएम पृथक गोरखालैंड के लिए आंदोलन चला रहा है. वहां पर दवाखानों को छोड़कर सभी अन्य दुकानें एवं होटल बंद हैं. पर्यटन का कारोबार ठप्प है. ममता बनर्जी अपने राज्य के बिगड़ते हालातों पर काबू क्यों नहीं पाती? सक्षम नहीं हैं या इच्छा नहीं हैं? सिर्फ केन्द्र पर आरोप लगाने से बात नहीं बनेगी. देशभक्त गोरखा लोगों की मांगों का कोई शांतिपूर्ण समाधान तो तलाशना होगा.
हावी होते कठमुल्ले
दरअसल सारा देश देख रहा है कि ममता बनर्जी सांप्रदायिक शक्तियों के हाथों में खुलकर खेल रही हैं. आपको याद होगा कि उनके एक खासमखास कोलकाता की एक मस्जिद के एक कुख्यात इमाम ने कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक बेहद आपतिजनक फतवा जारी किया था. कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम सैयद मोहम्मद नुरुर रहमान बरकती ने फतवा जारी करते हुए मोदी जी का अपमान करने वाले को 25 लाख रुपए का इनाम देने का वादा किया था.
जरा देख लीजिए कि कितना खतरनाक था वो फतवा. देश के प्रधानमंत्री पर हमला करने का फतवा जरी करने के बावजूद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का खासमखास बना हुआ है वह धूर्त इमाम.
जीएसटी पर भी रार
ममता बनर्जी मानो कोई काम कायदे से करने के लिए तैयार ही नहीं हैं. उन्होंने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में भी तमाम मीनमेख निकाले थे. उन्होंने अपनी फेसबुक पोस्ट पर लिखा कि देश ने 14 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि आजादी हासिल की थी और अब 30 जून 2017 की मध्य रात्रि से देश की आजादी और लोकतंत्र के लिए भयानक खतरा पैदा हो गया है और इंस्पेक्टर राज का युग लौट आया है. ज्ञातव्य है किजीएसटी में इंस्पेक्टरों को चार गंभीर अपराधों के लिए गिरफ्तारी की शक्तियां प्राप्त हैं, जिसमें व्यापारियों को एक से चार वर्ष जेल की सजा हो सकती है. वो नोटबंदी का भी विरोध कर रही थीं. वो नोटबंदी के बहाने भी प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोल रही थीं, अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर. क्या उन्हें मालूम है कि कालेधन की अर्थव्यवस्था क्या होती है? क्या उन्हें पता है कि काला धन देश को किस तरह से खोखला करता है? शायद नहीं.
खैर, फिलहाल तो पश्चिम बंगाल में कठमुल्ला ताकतें पूरी तरह से हावी हैं. ममता बनर्जी की ओर सारा देश देख रहा है कि वो अब उन ताकतों के साथ खड़ी होती हैं या उनपर चाबुक बरसाती हैं.
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