चौंकना लाजिमी है कि आखिर हम ये क्यों कह रहे हैं कि बीजेपी उत्तर प्रदेश में 337 सीट जीत पायेगी. चुनाव के नतीजे 11 मार्च को आने वाले हैं, लेकिन अभी से उत्सुकता और रोमांच शुरू हो चुका है कि प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी. सभी दल चाहे वो बीजेपी हो या फिर सपा-कांग्रेस गठबंधन या फिर बसपा, सभी अपने अपने दावे सरकार बनाने के लिए ठोक रहे हैं. बहुमत के लिए 202 सीट किसी भी पार्टी के लिए लाना जरुरी हैं.
अब आपको ये बताते हैं हम क्यों 337 सीट की बात कर रहे हैं और इसके पीछे का आंकड़ा क्या है? उत्तर प्रदेश में कुल 80 लोकसभा की सीटें हैं. अगर हम 2014 लोक सभा के नतीजे देखें तो कुल 80 सीटों में से बीजेपी को 71 सीट में विजय मिली थी और इसकी सहयोगी पार्टी अपना दल को 2 सीट मिली थी. वहीं दूसरी ओर सपा को 5 सीट तो कांग्रेस को 2 सीट मिली थी. बसपा और रालोद तो खाता भी नहीं खोल पायी थी. इन 80 संसदीय क्षेत्रों के अन्तर्गत ही 403 विधानसभा सीट आती हैं. अगर हम 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजो पर गौर करें तो इन 403 विधानसभा सीटों में से 328 सीटों पर बीजेपी नंबर एक पर थी, मतलब इन विधानसभा सेगमेंट पर लीड बीजेपी की थी. बीजेपी की सहयोगी, अपना दल 9 विधानसभा सीट में आगे थी. अगर हम इन दोनों पार्टियों की सीटों को जोड़ देंगे तो बीजेपी और उसकी सहयोगी, अपना दल कुल 337 सीट में आगे थी. वहीं इस बार की सपा-कांग्रेस गठबंधन 57 सीट में आगे थी और बसपा की 9 सीट में लीड थी.
ये तो रही आकड़ों की बात. क्या बीजेपी 2014 जैसा प्रदर्शन दोहरा सकती है, ये सवा लाख टके का सवाल है. लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं. विधानसभा में स्थानीय मुद्दों का जोर ज्यादा रहता है. 2014 लोकसभा चुनाव के समय नरेंद्र मोदी जी की लहर...
चौंकना लाजिमी है कि आखिर हम ये क्यों कह रहे हैं कि बीजेपी उत्तर प्रदेश में 337 सीट जीत पायेगी. चुनाव के नतीजे 11 मार्च को आने वाले हैं, लेकिन अभी से उत्सुकता और रोमांच शुरू हो चुका है कि प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी. सभी दल चाहे वो बीजेपी हो या फिर सपा-कांग्रेस गठबंधन या फिर बसपा, सभी अपने अपने दावे सरकार बनाने के लिए ठोक रहे हैं. बहुमत के लिए 202 सीट किसी भी पार्टी के लिए लाना जरुरी हैं.
अब आपको ये बताते हैं हम क्यों 337 सीट की बात कर रहे हैं और इसके पीछे का आंकड़ा क्या है? उत्तर प्रदेश में कुल 80 लोकसभा की सीटें हैं. अगर हम 2014 लोक सभा के नतीजे देखें तो कुल 80 सीटों में से बीजेपी को 71 सीट में विजय मिली थी और इसकी सहयोगी पार्टी अपना दल को 2 सीट मिली थी. वहीं दूसरी ओर सपा को 5 सीट तो कांग्रेस को 2 सीट मिली थी. बसपा और रालोद तो खाता भी नहीं खोल पायी थी. इन 80 संसदीय क्षेत्रों के अन्तर्गत ही 403 विधानसभा सीट आती हैं. अगर हम 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजो पर गौर करें तो इन 403 विधानसभा सीटों में से 328 सीटों पर बीजेपी नंबर एक पर थी, मतलब इन विधानसभा सेगमेंट पर लीड बीजेपी की थी. बीजेपी की सहयोगी, अपना दल 9 विधानसभा सीट में आगे थी. अगर हम इन दोनों पार्टियों की सीटों को जोड़ देंगे तो बीजेपी और उसकी सहयोगी, अपना दल कुल 337 सीट में आगे थी. वहीं इस बार की सपा-कांग्रेस गठबंधन 57 सीट में आगे थी और बसपा की 9 सीट में लीड थी.
ये तो रही आकड़ों की बात. क्या बीजेपी 2014 जैसा प्रदर्शन दोहरा सकती है, ये सवा लाख टके का सवाल है. लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं. विधानसभा में स्थानीय मुद्दों का जोर ज्यादा रहता है. 2014 लोकसभा चुनाव के समय नरेंद्र मोदी जी की लहर देश भर में थी और उसी की बदौलत बीजेपी ने अपना झंडा बुलंद करने में कामयाबी हासिल की थी. अब समय बदल गया है परिस्थिति बिलकुल विपरीत हैं. बीजेपी को सपा-कांग्रेस के गठबंधन से सामना करना पड़ रहा है और जो उसे कड़ी टक्कर दे रहे हैं. साथ में मायावती की चुनौती को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं.
जिस प्रदेश में मतदाता धार्मिक, सामाजिक और जातीय आधार पर पार्टियों को अपना मत देते हैं वहां फिर से 2014 वाला प्रदर्शन करना बीजेपी के लिए काफी मुश्किल है. चाहे बीजेपी 300 से अधिक सीट जितने का दावा कर रही हो लेकिन ऐसा होना नामुमकिन है. कई समीक्षक और चुनावी पंडित तो त्रिशंकु परिणाम का भी अंदेशा जता रहे हैं. नोटबंदी के बाद होने वाला ये चुनाव मोदी के लिए लिटमस टेस्ट से कम नहीं हैं. इस बार भी बीजेपी उनकी लोकप्रियता को भुनाने की ही कोशिश की है. अब देखना ये है की मोदी अपने बलबूते पर फिर से 2014 वाला परिणाम लाने में सफल हो पाते हैं या नहीं.
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