'दरोगा बाबू आई लव यू' - ये मनोज तिवारी की एक फिल्म का नाम है, लेकिन 2014 में उन्हें इस बात से कड़ा एतराज रहा कि बीजेपी में किसी दरोगा को एंट्री दी जाये. किरण बेदी को सीएम कैंडिडेट बनाये जाने के विरोध में बीजेपी की ओर से पहला और आखिरी बयान मनोज तिवारी ने ही दिया था.
तब मनोज तिवारी ने कहा था, ''हमें एक थानेदार की जरूरत नहीं है, बल्कि एक विनम्र नेता की जरूरत है जो सबको साथ लेकर चल सके." बाद में खबर आई कि इसके लिए मनोज को हाईकमान की डांट खानी पड़ी, लेकिन मनोज ने इससे भी इंकार किया और कहा - मैंने तो बस मन की बात कह दी थी.
मनोज के इस बयान में 'सबको साथ लेकर चलने वाले नेता' का भी जिक्र रहा जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'सबका साथ सबका विकास' का भाव लिये हुए था.
तो क्या मनोज तिवारी ने बहुत पहले ही मोदी के मन की बात भांप ली थी? या, मनोज तभी मोदी को भा गये थे? बहरहाल, मनोज को अमित शाह ने अब दिल्ली बीजेपी की कमान सौंप दी है.
किसी को नहीं छोड़ते
सिर्फ किरण बेदी ही नहीं, मनोज तिवारी ने तो आरएसएस चीफ मोहन भागवत को भी नहीं बख्शा है. कुछ ऐसा ही बयान मनोज ने बिहार चुनाव में बीजेपी की हार के बाद भी दिया था. बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी के स्टार प्रचारक रहे मनोज तिवारी का कहना था कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा वाला जो बयान दिया, उससे एनडीए को नुकसान हुआ.
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बिहार से पहले दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए थे जिसमें मनोज को चुनाव प्रचार तो करना ही था. लोक सभा में बीजेपी ने दिल्ली से जो सातों सीटें जीती थीं उनमें से एक मनोज की उत्तर-पूर्वी दिल्ली भी रही.
मनोज ने तभी से केजरीवाल के खिलाफ हमलावर रुख...
'दरोगा बाबू आई लव यू' - ये मनोज तिवारी की एक फिल्म का नाम है, लेकिन 2014 में उन्हें इस बात से कड़ा एतराज रहा कि बीजेपी में किसी दरोगा को एंट्री दी जाये. किरण बेदी को सीएम कैंडिडेट बनाये जाने के विरोध में बीजेपी की ओर से पहला और आखिरी बयान मनोज तिवारी ने ही दिया था.
तब मनोज तिवारी ने कहा था, ''हमें एक थानेदार की जरूरत नहीं है, बल्कि एक विनम्र नेता की जरूरत है जो सबको साथ लेकर चल सके." बाद में खबर आई कि इसके लिए मनोज को हाईकमान की डांट खानी पड़ी, लेकिन मनोज ने इससे भी इंकार किया और कहा - मैंने तो बस मन की बात कह दी थी.
मनोज के इस बयान में 'सबको साथ लेकर चलने वाले नेता' का भी जिक्र रहा जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'सबका साथ सबका विकास' का भाव लिये हुए था.
तो क्या मनोज तिवारी ने बहुत पहले ही मोदी के मन की बात भांप ली थी? या, मनोज तभी मोदी को भा गये थे? बहरहाल, मनोज को अमित शाह ने अब दिल्ली बीजेपी की कमान सौंप दी है.
किसी को नहीं छोड़ते
सिर्फ किरण बेदी ही नहीं, मनोज तिवारी ने तो आरएसएस चीफ मोहन भागवत को भी नहीं बख्शा है. कुछ ऐसा ही बयान मनोज ने बिहार चुनाव में बीजेपी की हार के बाद भी दिया था. बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी के स्टार प्रचारक रहे मनोज तिवारी का कहना था कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा वाला जो बयान दिया, उससे एनडीए को नुकसान हुआ.
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बिहार से पहले दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए थे जिसमें मनोज को चुनाव प्रचार तो करना ही था. लोक सभा में बीजेपी ने दिल्ली से जो सातों सीटें जीती थीं उनमें से एक मनोज की उत्तर-पूर्वी दिल्ली भी रही.
मनोज ने तभी से केजरीवाल के खिलाफ हमलावर रुख अख्तियार कर लिया था. गायक होने के साथ साथ भोजपुरी फिल्मों के भी स्टार रहे मनोज ने कहा था कि वो गाते तो हैं ही, जल्द ही एक फिल्म भी बनाएंगे, "मैं दिल्ली की गलियों और समस्या को देखकर एक फिल्म बनाने वाला हूं और उसका हीरो चाहे कोई भी हो, लेकिन विलेन मिल गया है."
मनोज तिवारी भी करते हैं मन की बात... |
लगे हाथ उन्होंने अपने फिल्मी विलेन का नाम भी सबको बता दिया - 'उसमें हीरो चाहे जो भी हो, लेकिन विलन उसमें अरविंद केजरीवाल को हो लेंगे.'
केजरीवाल से टक्कर
2014 में विजय पताका फहराते हुए बीजेपी फिर से दिल्ली पहुंची थी, लेकिन महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू कश्मीर के बाद दिल्ली में ही उसे शिकस्त झेलनी पड़ी. शिकस्त भी वैसी की ताउम्र न भूल पाये - 70 सीटों वाली विधानसभा में महज तीन विधायक.
बीजेपी के विधानसभा में इस कदर सिमटने का नतीजा ये हुआ कि उनकी आवाज ही दब जाती. फिर कभी डेस्क पर खड़े होकर तो कभी कोई और हरकत या बयान देकर बीजेपी विधायक अटेंशन लेने लगे. नतीजा ये हुआ कि बात बात पर बीजेपी विधायकों को मार्शल आये दिन जबरन बाहर करने लगे. केजरीवाल का लगातार ये आरोप रहा है कि बीजेपी दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग के जरिये उनसे पंगे लेती है. एक तरह से केजरीवाल ये भी बताना चाहते होंगे कि दिल्ली में बीजेपी के पास कोई नेता ही नहीं जो उन्हें टक्कर दे सके. बीजेपी भी इसे अरसे से महसूस कर रही होगी. हालांकि, शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव में हर्षवर्धन अच्छी फाइट की थी, लेकिन साल भर बाद जब दोबारा चुनाव हुए तो बीजेपी ने बड़े एक्सपेरिमेंट किये - और रिजल्ट जीरो के करीब पहुंच गया.
बाद में भी हर्षवर्धन खुद को दिल्ली की राजनीति में फिट नहीं कर पाये और हाशिये पर चले गये. सतीश उपाध्याय रस्मी बयान देने से ज्यादा शायद ही कभी कुछ करते नजर आये, ले देकर सारा दारोमदार विजेंदर गुप्ता पर रहा जिन्हें कम ही लोग सीरियसली लेते रहे.
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अपनी बात कहने में जो सांसद किरण बेदी और मोहन भागवत की हैसियत की भी परवाह नहीं करता वो अरविंद केजरीवाल को तो नाकों चने चबवा देगा - बीजेपी को तो ऐसी ही उम्मीद होगी. तो अब ये भी समझ लेना चाहिये कि अगर दिल्ली में एक ही दिन मनोज तिवारी और अरविंद केजरीवाल की सभा हुई तो भीड़ कहां ज्यादा होगी सहज अंदाजा लगाया जा सकता है - अगर अमिताभ बच्चन के हेमवती नंदन बहुगुणा को हरा देना भी राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन का कोई पैमाना हो तो.
मनोज तिवारी बिहार और उससे सटे पूर्वांचल के लोगों में बेहद लोकप्रिय हैं. प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में उनका लंबा वक्त गुजरा है भोजपुरी सिंगर के तौर पर उनके कॅरिअर का ग्राफ भी वहीं चढ़ा - और आज भी वो उस शहर से जुड़े हुए हैं. मनोज तिवारी बीजेपी में एक बड़ा और बेदाग चेहरा हैं इसलिए केजरीवाल को वो निश्चित रूप से कड़ी टक्कर दे सकेंगे.
अब जबकि बीजेपी ने उन्हें प्रोड्यूसर बना दिया है तो उम्मीद जरूर करेगी कि मनोज ने दिल्ली चुनाव से पहले जिस फिल्म की घोषणा की थी - जल्द से जल्द उसे पूरा भी कर दें. फिर सब लोग सिनेमा हाल में राष्ट्रगान के बाद खड़े खड़े गर्व से वंदे मातरम् भी बोल सकेंगे.
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