अपने हाल के अमेरिका दौरे पर राहुल गांधी ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले में जो भाषण दिया और छात्रों के सवालों का जवाब दिया. उसमें उन्होंने जो सबसे बड़ी बात कही वो है उनका खुद को पार्टी के मुखिया के तौर पर तैयार बताना. क्योंकि दिग्विजय सिंह सहित पार्टी के कई वरिष्ठ नेता इस तरह की मांग लम्बे समय से करते आ रहे हैं. लेकिन हर मौकों पर मानो खुद राहुल ही तैयार नहीं दिखे.
उनके ऐसा कहने के बाद एक सवाल रह जाता है कि आखिर पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार कौन होगा? तो लगे हाथ उन्होंने ये भी कह दिया कि अगर पार्टी चाहेगी तो वो कोई जिम्मेदारी लेने से पीछे नहीं हटेंगे. कुछ इसी तरह के पहल की बात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बीजेपी के खेमे में जाने से पहले कहते थे कि कांग्रेस को आगे आकर रास्ता बताना होगा. हो सकता है की उनका इशारा एकजुट विपक्ष के नेता के चुनाव की तरफ रहा हो. लेकिन विपक्ष एक नेता ढूंढ नहीं पाया. वैसे अब उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के सामने कोई नहीं टिकेगा. इसके बावजूद राहुल का आगे आना, कांग्रेस पार्टी की मंशा को साफ़ बयां करता है.
विदेशी जमीन पर अपने भाषण में भी उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चैलेंजर के तौर पर ही पेश किया. और उनके फैसलों तथा नीतियों पर हमला बोला. हां कुछ मामलों में उन्होंने प्रधानमंत्री की तारीफ भी की. उन्होंने कहा की प्रधानमंत्री एक अच्छे वक्ता हैं. यहां उनका मतलब चाहे जो भी रहा हो. लेकिन ये तो सच है की श्री मोदी को खुद को जनता से जोड़ने की कला बखूबी आती है.
इस बार के सम्बोधन का असर चाहे जो भी रहा हो. लेकिन बीजेपी की ओर से इसके बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का कूद पड़ना, इतना तो जरूर बयान कर गया की ये हमला जोरदार था. पार्टी...
अपने हाल के अमेरिका दौरे पर राहुल गांधी ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले में जो भाषण दिया और छात्रों के सवालों का जवाब दिया. उसमें उन्होंने जो सबसे बड़ी बात कही वो है उनका खुद को पार्टी के मुखिया के तौर पर तैयार बताना. क्योंकि दिग्विजय सिंह सहित पार्टी के कई वरिष्ठ नेता इस तरह की मांग लम्बे समय से करते आ रहे हैं. लेकिन हर मौकों पर मानो खुद राहुल ही तैयार नहीं दिखे.
उनके ऐसा कहने के बाद एक सवाल रह जाता है कि आखिर पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार कौन होगा? तो लगे हाथ उन्होंने ये भी कह दिया कि अगर पार्टी चाहेगी तो वो कोई जिम्मेदारी लेने से पीछे नहीं हटेंगे. कुछ इसी तरह के पहल की बात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बीजेपी के खेमे में जाने से पहले कहते थे कि कांग्रेस को आगे आकर रास्ता बताना होगा. हो सकता है की उनका इशारा एकजुट विपक्ष के नेता के चुनाव की तरफ रहा हो. लेकिन विपक्ष एक नेता ढूंढ नहीं पाया. वैसे अब उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के सामने कोई नहीं टिकेगा. इसके बावजूद राहुल का आगे आना, कांग्रेस पार्टी की मंशा को साफ़ बयां करता है.
विदेशी जमीन पर अपने भाषण में भी उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चैलेंजर के तौर पर ही पेश किया. और उनके फैसलों तथा नीतियों पर हमला बोला. हां कुछ मामलों में उन्होंने प्रधानमंत्री की तारीफ भी की. उन्होंने कहा की प्रधानमंत्री एक अच्छे वक्ता हैं. यहां उनका मतलब चाहे जो भी रहा हो. लेकिन ये तो सच है की श्री मोदी को खुद को जनता से जोड़ने की कला बखूबी आती है.
इस बार के सम्बोधन का असर चाहे जो भी रहा हो. लेकिन बीजेपी की ओर से इसके बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का कूद पड़ना, इतना तो जरूर बयान कर गया की ये हमला जोरदार था. पार्टी ने आरोप लगाया की राहुल गांधी ने विदेशी जमीन पर देश की और प्रधानमंत्री की बदनामी की है. तो कांग्रेस पार्टी की ओर से भी प्रधानमंत्री द्वारा ऐसा कई मौकों पर करने की बात कही गयी. वैसे भी हमने पहले देखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेशों में कई मौकों पर देश की बदहाली के लिए कांग्रेस के लम्बे शासन को जिम्मेदार ठहराया है.
आजकल सूचना प्रसारण के दौर में हर देश का हाल हर कोई जनता है. लेकिन नेताओं का विदेश में जाकर इस तरह एक दूसरे पर हमला करना हो सकता है की अंतराष्ट्रीय स्तर पर एक सन्देश देना हो. शायद इसीलिए राहुल गांधी ने भी विदेशी जमीन पर जाकर क्रमबद्ध तरीके से न सिर्फ मोदी सरकार की कमियां गिनायीं बल्कि उनपर हमला भी किया. उन्होंने इस मौके पर बेरोजगारी, नोटबंदी और भीड़ द्वारा हमलों पर सरकार की खिंचाई की.
ऐसा नहीं है की केवल उन्होंने बीजेपी पर ही हमला किया हो. उन्होंने अपनी पार्टी कि गलती को भी माना. जिसका जिक्र उनकी पार्टी के ही कई नेताओं ने किया है. और कुछ ने तो इसी वजह से पार्टी भी छोड़ दी थी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस अहंकारी हो गई थी और उसका लोगों से संवाद मानो ख़त्म हो गया था. यही वजह है कि जनता ने पार्टी से दूरी बना ली.
कहते हैं कि गलती मान लेना भी एक तरह से जीत ही है. और नहीं है तो ये उसका रास्ता तो जरूर है. अब उनको इन गलतियों से पार पाना होगा तभी जनता उनसे एक बार फिर जुड़ेगी. वैसे भी मौजूदा समय में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आयी है. इस कारण से राहुल गांधी के लिए डगर मुश्किल भरी है. हां हाल ही में मौजूदा सरकार के खिलाफ किसानों और युवाओं में कर्जमाफी और बेरोजगारी को लेकर कुछ रोष देखने को मिला है जिसको राहुल चाहें तो भुना सकते हैं पर वो इतना आसान नहीं होगा और उसके लिए उन्हें कई मोर्चों पर तेजी से काम करना होगा. क्योंकि आम चुनाव में अब ज्यादा वक़्त नहीं हैं और उसमें अच्छा करने के लिए आने वाले विधानसभा चुनाव में ठीक प्रदर्शन करना होगा जिससे कि पार्टी के संगठन में फिर से ऊर्जा लायी जा सके.
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