सोशल मीडिया पर रहने के अपने फायदे हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि इसपर हमें मनोरंजन के अलावा ये भी पता चलता रहता है कि बाजार में क्या चल रहा है. कहा जा सकता है कि न सिर्फ हमारे रियल वर्ड में बल्कि हमारी वर्चुअल दुनिया पर भी बाजार पूरी तरह हावी है. इस बात को आप अपनी फेसबुक प्रोफाइल या इंस्टाग्राम के पेज से समझ सकते हैं. महसूस आपने भी किया होगा कि अक्सर फेसबुक या इंस्टाग्राम के पेज स्क्रॉल करते हुए कुछ हैरत में डालने वाले ऐड हमारे सामने आते हैं जिनमें मौजूद ऑफर इतने आकर्षक होते हैं कि न चाहते हुए भी हम फेसबुक न्यूज़ फीड से उन पेजों पर लैंड कर जाते हैं.
पता नहीं है ये वक्त की जरूरत है या बाजार का प्रभाव. इन दिनों सोशल मीडिया पर एक तस्वीर धड़ल्ले से वाइरल हो रही है जिसमें एक चारपाई को ऑनलाइन बेचा जा रहा है. चारपाई का ऑनलाइन बिकना बड़ी बात नहीं है. बड़ी बात इस चारपाई की कीमत है. इस ऐड को अगर ध्यान से देखें तो मिलता है कि जो कम्पनी इस चारपाई को बेच रही है वो ऑस्ट्रेलिया की है और उसने इसके दाम 990 डॉलर रखे हैं. यानी अगर हम इसे भारतीय करंसी में बदलें तो मिलता है कि इसकी कीमत 64,786 रुपए है.
बहरहाल, बात अगर इस चारपाई को बेचने वाले डैनियल के विचार पर हो तो मिलता है कि ये आईडिया उन्हें तब आया जब एक बार वो घूमने भारत आए थे. डैनियल को भारतीय चारपाई का कॉन्सेप्ट बहुत अच्छा लगा और तभी उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि उनके देश में इसे हाथों हाथ लिया जाएगा और इस तरह उन्होंने सोशल मीडिया की मदद लेते हुए अपने कारोबार को अमली जामा पहनाया.
आज हमारी चारपाई विदेशों में बिक रही है. ऐसे में अगर देखा जाए तो हम भारतीयों के लिए ये एक आम सी खबर हो सकती है. या ये भी हो सकता है कि हममें...
सोशल मीडिया पर रहने के अपने फायदे हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि इसपर हमें मनोरंजन के अलावा ये भी पता चलता रहता है कि बाजार में क्या चल रहा है. कहा जा सकता है कि न सिर्फ हमारे रियल वर्ड में बल्कि हमारी वर्चुअल दुनिया पर भी बाजार पूरी तरह हावी है. इस बात को आप अपनी फेसबुक प्रोफाइल या इंस्टाग्राम के पेज से समझ सकते हैं. महसूस आपने भी किया होगा कि अक्सर फेसबुक या इंस्टाग्राम के पेज स्क्रॉल करते हुए कुछ हैरत में डालने वाले ऐड हमारे सामने आते हैं जिनमें मौजूद ऑफर इतने आकर्षक होते हैं कि न चाहते हुए भी हम फेसबुक न्यूज़ फीड से उन पेजों पर लैंड कर जाते हैं.
पता नहीं है ये वक्त की जरूरत है या बाजार का प्रभाव. इन दिनों सोशल मीडिया पर एक तस्वीर धड़ल्ले से वाइरल हो रही है जिसमें एक चारपाई को ऑनलाइन बेचा जा रहा है. चारपाई का ऑनलाइन बिकना बड़ी बात नहीं है. बड़ी बात इस चारपाई की कीमत है. इस ऐड को अगर ध्यान से देखें तो मिलता है कि जो कम्पनी इस चारपाई को बेच रही है वो ऑस्ट्रेलिया की है और उसने इसके दाम 990 डॉलर रखे हैं. यानी अगर हम इसे भारतीय करंसी में बदलें तो मिलता है कि इसकी कीमत 64,786 रुपए है.
बहरहाल, बात अगर इस चारपाई को बेचने वाले डैनियल के विचार पर हो तो मिलता है कि ये आईडिया उन्हें तब आया जब एक बार वो घूमने भारत आए थे. डैनियल को भारतीय चारपाई का कॉन्सेप्ट बहुत अच्छा लगा और तभी उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि उनके देश में इसे हाथों हाथ लिया जाएगा और इस तरह उन्होंने सोशल मीडिया की मदद लेते हुए अपने कारोबार को अमली जामा पहनाया.
आज हमारी चारपाई विदेशों में बिक रही है. ऐसे में अगर देखा जाए तो हम भारतीयों के लिए ये एक आम सी खबर हो सकती है. या ये भी हो सकता है कि हममें से कुछ लोग इसको देखकर खुश हो जाएं और ऑस्ट्रेलिया के डैनियल की इस पहल की जम कर तारीफ करें. या फिर ये भी संभव है कि हममें से कुछ लोग इसे देखकर ये सोचते हुए आहत हो जाएं कि कैसे कोई हमारी चीज को अपनी ब्रांडिंग से इस तरह बेच सकता है.
हर व्यक्ति की इस तस्वीर को लेकर अपनी एक विशेष सोच होगी. मगर व्यक्तिगत रूप से मुझे ये तस्वीर विस्तृत और चारपाई का इस तरह बिकना कहीं बड़ा नजर आता है. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. हमें इस बिक्री पर बिल्कुल भी आहत नहीं होना चाहिए. हम एक ऐसे देश के वासी हैं जिसने न सिर्फ आज से बल्कि बहुत पहले से दूसरों को कॉपी करते हुए अपनी संस्कृति को नष्ट किया है. पता नहीं आप इस बात से कितना सहमत होंगे मगर इस सत्य को बिल्कुल भी नहीं नाकारा जा सकता है कि, हम सदैव ही अपनी चीजें को नकारते चले आए हैं. चाहे चारपाई हो या फिर हमारा परंपरागत भोजन आज हमनें उसे अपने जीवन से लगभग निकल ही दिया है.
बात अगर हमारे अपने घरों की हो तो, आज भले ही विदेशी हमारी खटिया को करीब 65,000 रुपए में बेच रहे हैं मगर कब हमनें इसे अपने जीवन से निकाल के घर के स्टोर रूम या छत्त पर डाल दिया ये हमें पता ही नहीं चला. खैर इसमें दोष हमारा भी नहीं है. युग ही ऐसा है, हम अगर आज खाट का इस्तेमाल करें तो दोस्त यारों से लेकर रिश्तेदार पिछड़ा कहकर हमें कब अपने जीवन से निकाल दें हमें पता ही नहीं. इसका कारण ये कि दूसरों को कॉपी करते - करते आज समाज का एक बड़ा वर्ग ये मान चुका है कि जो खाट में सो रहा है वो असभ्य है और जिसे महंगी डबल बेड या बड़े से दीवान पर नींद आ रही है वो ही सभ्य है. वही विकास के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है.
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