'सोनम गुप्ता बेवफा है' अचानक ही सोशल मीडिया के हाशिये से निकलकर पहले मीडिया की और फिर हर जगह की सुर्खियां बन गया है. हर जगह इसके बारे में लिखा जा रहा है और ये गली-मोहल्ले में चर्चा का विषय बनता जा रहा है. नोटबंदी पर आधारित जोक्स ने तो इसे और लोकप्रियता दे दी है.
लेकिन क्या इसे हमें वास्तव में लोकप्रियता कहना चाहिए. मेरे हिसाब से तो ये एक विद्रूप चेहरा है सोशल मीडिया और फेसबुक का. अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि कैसे सोनम या सोनम गुप्ता नाम की लड़कियों को इसकी वजह से शर्मनाक परिस्थितियों और परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और कैसे फेसबुक ट्रॉल्स इसका उपयोग करके दूसरों को परेशान कर रहे हैं.
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अब सोनम गुप्ता नाम की लड़कियों को परेशानी उठानी पड़ रही है |
फेसबुक को इसका संज्ञान लेना चाहिए और तुरंत ऐसे पेजेज को ब्लॉक कर देना चाहिए. लेकिन क्या फेसबुक ऐसा करेगा वो भी इंडिया जैसे बाजार में जहां इन सब बातों पर सरकार या नियामक एजेंसियों की नजर या तो पड़ती नहीं है या नजरअंदाज कर दी जाती है?
ये बात सभी जानते हैं कि बहुत सी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां विकसित और विकासशील देशों के लिए दोहरा मानदंड अपनाती हैं. एक ही ब्रांड का उत्पाद अमेरिका में सुपीरियर क्वालिटी का होगा. अगर जांचें तो मानकों के हिसाब से भारत में बहुत सी खामियां पायी जायेंगीं, फिर चाहे वो कोका कोला का उदाहरण हो या फिर हाल-फिलहाल में मैगी का- जिनके उत्पादों में ये पाया गया था वो तय मानकों का इंडिया में पालन नहीं कर रहीं थी जबकि इंडिया उनके लिए बहुत बड़ा बाजार है.
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यही हाल फेसबुक का भी है. इंडिया में फेसबुक का दूसरा सबसे बड़ा यूजर्स बेस है और इसकी ग्रोथ रेट अमेरिका से और फेसबुक के ग्लोबल ग्रोथ रेट से काफी ज्यादा है. सो बात यहां यूजर्स को जोड़ने की है. सब खेल उसी का है और 'सोनम गुप्ता बेवफा है' जैसा कंटेंट उसमें मदद करता है. जबकि अगर हम कंटेंट की बात करें तो फेसबुक के फाउंडर मार्क जकरबर्ग इस वक्त पूरे अमेरिका में सफाई देते फिर रहे हैं कि फेसबुक पर 1% से भी कम कंटेंट फेक होता है.
न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 44% अमेरिकी वोटर न्यूज प्राप्त करने के लिए फेसबुक का प्रयोग करते हैं और ये आरोप लगाए जा रहे हैं फेसबुक पर डोनाल्ड ट्रम्प के पक्ष में और हिलेरी क्लिंटन के विपक्ष में कई सारे जाली रिपोर्ट शेयर किये गए जिनको करोड़ों लोगों ने देखा. ऐसे रिपोर्टें थीं कि पोप फ्रांसिस ने डोनाल्ड ट्रम्प को एंडोर्स किया है या फिर ये कि वो एफबीआई एजेंट जिसपर हिलेरी क्लिंटन के इमेल्स को लीक कराने का संदेह किया जा रहा था वो मृत पाया गया है या फिर ये कि हॉलीवुड स्टार डेंज़ेल वाशिंगटन ने डोनाल्ड ट्रम्प की तारीफ की थी. ऐसी बहुत सी जाली रिपोर्टें हैं जिनपर मार्क ज़ुकेरबर्ग अब सफाई देते फिर रहे हैं क्योंकि ये आरोप लगाए जा रहे हैं कि नकली फेसबुक कंटेंट ने डोनाल्ड ट्रम्प के पक्ष में माहौल बनाने में मदद की.
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सो, एक तरफ अमेरिका है जहां फेसबुक फाउंडर को ही फेक कंटेंट पर सफाई देनी पड़ रही है और वहीं दूसरी तरफ इंडिया है, फेसबुक का दूसरा सबसे बड़ा मार्केट, जहां 'सोनम गुप्ता बेवफा है' जैसा फेक कंटेंट है, जहां फेक और एनोनिमस एकाउंट्स हैं और ये फैलते जा रहे हैं और कोई सुध लेने वाला नहीं है- ना फेसबुक में और ना ही हमारे समाज में. सोमवार को, अमेरिकी विवाद के बाद, फेसबुक ने अपने विज्ञापन प्लेटफॉर्मों पर फेक न्यूज़ को प्रतिबंधित कर दिया है. पर उस फेक कंटेंट का क्या जो फेसबुक पर यहां-वहां बिखरा पड़ा है? व्यंग तो ठीक है पर व्यंग के नाम पर विद्रूपता कभी स्वीकार नहीं की जा सकती.
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