भारतीय कल्चर में सेक्स हमेशा से एक खराब चीज मानी गई है. सेक्स, पीरियड्स, वर्जिनिटी जैसे विषयों पर लोग बात करने से कतराते हैं और मास्टरबेशन तो जनाब तौबा-तौब... वो तो कोई करता ही नहीं है.
ये सब तो ठीक है पर एक ऐसी वेब सीरीज आई है जो हिंदुस्तानी कल्चर की घज्जियां उड़ा रही है. मतलब इन सारे शब्दों को सीधे-सीधे बोला भी जा रहा है और इसके अलावा, सभी कलाकार लोगों को इन सब बातों के बारे में जानकारी भी दे रहे हैं.
उफ्फ, कितना अभद्र नाम... 'सेक्स की अदालत'. कुल चार एपिसोड आए हैं इस सीरीज के. और नाम जानते हैं? मेल चाइल्ड, मेंस्ट्रुएशन (मासिक धर्म), वर्जिनिटी और मास्टरबेशन. भला भारतीय संस्कृति में ऐसा कौन करता है?
अभी तक जो भी ऊपर लिखा गया है वो सब आम भारतीय सोच के हिसाब से लिखा गया है. इसमें कोई शक नहीं कि हमारे आस-पास मौजूद अधिकतर लोग इसी तरह की सोच रखते हैं. सेक्स एजुकेशन जो स्कूल में 8वीं या 10वीं कक्षा का पूरा एक चैप्टर होता है सिर्फ रिप्रोडक्शन सिस्टम को और उसे इस तरह से पढ़ाया जाता है जैसे टीचर्स को सजा दी गई हो.
जिस देश में सेक्स एजुकेशन के बारे में ढंग से सोचा ही नहीं जाता है वहां पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की ये सीरीज एक नई पहल है. सबसे पहले तो ये वेब सीरीज है जो आसानी से लोगों तक पहुंच सकती है. दूसरे ये कि ये सीरीज हिंदी में है. भारतीय भाषा का इस्तेमाल कर बहुत ही सहजता से बताया गया है.
इस सीरीज में एक अदालत है, एक जज है, दो वकील हैं और दो अन्य पात्र हैं. एक वो जिसने केस किया है और एक वो जिसपर केस हुआ है. अगर इसे कॉमेडी सीरीज समझ रहे हैं तो ये गलती न करें. इसमें हंसी कम ही आएगी. लेकिन सेक्स से जुड़े छोटे-छोटे सवालों के जवाब जरूर मिल जाएंगे. कोई सिलेब्रिटी नहीं है, लेकिन जनता के अहम सवाल जरूर हैं जिन्हें अक्सर कोई पूछता...
भारतीय कल्चर में सेक्स हमेशा से एक खराब चीज मानी गई है. सेक्स, पीरियड्स, वर्जिनिटी जैसे विषयों पर लोग बात करने से कतराते हैं और मास्टरबेशन तो जनाब तौबा-तौब... वो तो कोई करता ही नहीं है.
ये सब तो ठीक है पर एक ऐसी वेब सीरीज आई है जो हिंदुस्तानी कल्चर की घज्जियां उड़ा रही है. मतलब इन सारे शब्दों को सीधे-सीधे बोला भी जा रहा है और इसके अलावा, सभी कलाकार लोगों को इन सब बातों के बारे में जानकारी भी दे रहे हैं.
उफ्फ, कितना अभद्र नाम... 'सेक्स की अदालत'. कुल चार एपिसोड आए हैं इस सीरीज के. और नाम जानते हैं? मेल चाइल्ड, मेंस्ट्रुएशन (मासिक धर्म), वर्जिनिटी और मास्टरबेशन. भला भारतीय संस्कृति में ऐसा कौन करता है?
अभी तक जो भी ऊपर लिखा गया है वो सब आम भारतीय सोच के हिसाब से लिखा गया है. इसमें कोई शक नहीं कि हमारे आस-पास मौजूद अधिकतर लोग इसी तरह की सोच रखते हैं. सेक्स एजुकेशन जो स्कूल में 8वीं या 10वीं कक्षा का पूरा एक चैप्टर होता है सिर्फ रिप्रोडक्शन सिस्टम को और उसे इस तरह से पढ़ाया जाता है जैसे टीचर्स को सजा दी गई हो.
जिस देश में सेक्स एजुकेशन के बारे में ढंग से सोचा ही नहीं जाता है वहां पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की ये सीरीज एक नई पहल है. सबसे पहले तो ये वेब सीरीज है जो आसानी से लोगों तक पहुंच सकती है. दूसरे ये कि ये सीरीज हिंदी में है. भारतीय भाषा का इस्तेमाल कर बहुत ही सहजता से बताया गया है.
इस सीरीज में एक अदालत है, एक जज है, दो वकील हैं और दो अन्य पात्र हैं. एक वो जिसने केस किया है और एक वो जिसपर केस हुआ है. अगर इसे कॉमेडी सीरीज समझ रहे हैं तो ये गलती न करें. इसमें हंसी कम ही आएगी. लेकिन सेक्स से जुड़े छोटे-छोटे सवालों के जवाब जरूर मिल जाएंगे. कोई सिलेब्रिटी नहीं है, लेकिन जनता के अहम सवाल जरूर हैं जिन्हें अक्सर कोई पूछता नहीं है.
चार एपिसोड अब तक पब्लिश किए गए हैं और ये 10-12 मिनट के हैं. चारों एपिसोड लगभग एक जैसे ही हैं. बस टॉपिक अलग है बाकि वकील और जज वही हैं. ये सीरीज सीखने के नजरिए से बेहतर है. खास बात ये है कि इस सीरीज में जिन बातों पर मुकदमा चलाया गया है अगर उनपर गौर किया जाए तो हर दूसरे घर का कोई न कोई सदस्य दोषी बन जाएगा.
ये भी पढ़ें-
लाशों को सेक्स करते दिखाना कहीं दिमागी दीवालियापन तो नहीं !
हमारी सोच का ही नतीजा है.. गेम ऑफ थ्रोन्स वैश्यालय...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.