भारत में अगर किसी महिला के साथ बलात्कार होता है तो फिर हाल देखिए...सजा अपराधी को नहीं बल्कि खुद महिला को भुगतनी पड़ती है. रिपोर्ट दर्ज करवाने की जद्दोजहद से लेकर कोर्ट के चक्कर लगाना और फिर वकीलों के घिनौने सवालों के जवाब देते-देते दोबारा बलात्कार के दर्द को महसूस करना तो जैसे हर पीड़िता की कहानी है, उसपर भी न्याय नहीं मिलता. लेकिन हमारे ही देश में प्रताड़ना की एक कहानी ऐसी भी है जिसपर बिना देर किए, तुरंत फैसला हो जाता है. न थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने का झंझट और न ही कोई कोर्ट-कचहरी. ये मामले हैं गाय को नुकसान पहुंचाने के, जिसपर लोग इतने संजीदा हैं कि न्याय के लिए कानून का रास्ता भी नहीं देखते. फैसला ऑन द स्पॉट !!
तो अगर ये मान लिया जाए कि देश में महिलाओं से ज्यादा सुरक्षित यहां की गाय हैं और गाय की कीमत मां बहन, बेटी से भी ज्यादा है, तो इसमें गलत ही क्या है. कुछ इसी मर्म को दिखा रहा है एक फोटोग्राफी प्रोजेक्ट, जिसने हमारे समाज पर एक सवाल के जरिए जोरदार चोट करने की कोशिश की है कि देश में कौन ज्यादा सुरक्षित है- महिलाएं या फिर गाय.
सुजात्रो घोष ये भी कहती हैं कि 'इतने सालों में मैंने एक बात महसूस की, कि इन बेवकूफों से निपटने के लिए मजाक का सहारा ही लेना होगा.' तो भले ही ये मजाक हो, लेकिन समाज के सामने खुद उसका दोगला चेहरा रखने के लिए काफी है कि अगर इंसानों और जानवरों के बीच एक को चुनना पड़े तो ये समाज महिलाओं को नहीं, जानवर को चुनेगा. दुखद है, लेकिन हकीकत यही है.
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भारत में अगर किसी महिला के साथ बलात्कार होता है तो फिर हाल देखिए...सजा अपराधी को नहीं बल्कि खुद महिला को भुगतनी पड़ती है. रिपोर्ट दर्ज करवाने की जद्दोजहद से लेकर कोर्ट के चक्कर लगाना और फिर वकीलों के घिनौने सवालों के जवाब देते-देते दोबारा बलात्कार के दर्द को महसूस करना तो जैसे हर पीड़िता की कहानी है, उसपर भी न्याय नहीं मिलता. लेकिन हमारे ही देश में प्रताड़ना की एक कहानी ऐसी भी है जिसपर बिना देर किए, तुरंत फैसला हो जाता है. न थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने का झंझट और न ही कोई कोर्ट-कचहरी. ये मामले हैं गाय को नुकसान पहुंचाने के, जिसपर लोग इतने संजीदा हैं कि न्याय के लिए कानून का रास्ता भी नहीं देखते. फैसला ऑन द स्पॉट !!
तो अगर ये मान लिया जाए कि देश में महिलाओं से ज्यादा सुरक्षित यहां की गाय हैं और गाय की कीमत मां बहन, बेटी से भी ज्यादा है, तो इसमें गलत ही क्या है. कुछ इसी मर्म को दिखा रहा है एक फोटोग्राफी प्रोजेक्ट, जिसने हमारे समाज पर एक सवाल के जरिए जोरदार चोट करने की कोशिश की है कि देश में कौन ज्यादा सुरक्षित है- महिलाएं या फिर गाय.
सुजात्रो घोष ये भी कहती हैं कि 'इतने सालों में मैंने एक बात महसूस की, कि इन बेवकूफों से निपटने के लिए मजाक का सहारा ही लेना होगा.' तो भले ही ये मजाक हो, लेकिन समाज के सामने खुद उसका दोगला चेहरा रखने के लिए काफी है कि अगर इंसानों और जानवरों के बीच एक को चुनना पड़े तो ये समाज महिलाओं को नहीं, जानवर को चुनेगा. दुखद है, लेकिन हकीकत यही है.
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