पिछले कुछ दिनों में हमारे यहां 'करे कोई भरे कोई' कहावत को सच होते देखा जा रहा है. ट्वीटर पर ट्रोल होने से लेकर ऐप अनइंस्टॉल करने तक का दंश सेलिब्रिटी और कंपनियों को झेलना पड़ रहा है. हम एक अजीब से दौर में जी रहे हैं. एक तरह से कहें तो इंस्टैंट मैगी टाइप के इंस्टैंट जजमेंट वाले दौर में जी रहे हैं. किसी नेता या अभिनेता ने कुछ कहा, मुझे पसंद नहीं आया और बस हो गए शुरु. कोई घटना हुई उसने हमें अंदर तक झकझोर दिया बस खोल लिया फेसबुक और ट्विटर. सारी भड़ास, सारा धरना-प्रदर्शन, वाद-विवाद, नैतिकता-अनैतिकता का पाठ सब सोशल मीडिया पर ही होता है.
लेकिन सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि कई बार अतिरेक में हम ये चेक करना भी भूल जाते हैं कि आखिर बात असल में हुई क्या! डिटेल फैक्ट जानने के बदले हमें अब जानकारियां भी इंस्टैंट और इनशॉर्ट में जाननी होती है. इस इंस्टा वर्ल्ड के इंस्टेंट जजमेंट और इंस्टेंट सजा देने की आदत का एक अद्भुत नजारा हमें पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर देखने को मिल रहा है.
कुछ दिनों पहले एक फोटो मैसेजिंग ऐप स्नैपचैट के सीईओ ने भारत को गरीब क्या कह दिया पूरे देश में ही हाहाकार मच गया. हर किसी के रातों की नींद उड़ गई. लोग गुस्से में आगबबूला हो गए और उनके आत्मसम्मान को इतनी ठेस लगी की सबने स्नैपचैट को 'बर्बाद' करने की ठान ली. बस फिर क्या था सारे देश के वीर जवानों ने अपना फोन उठाया और स्नैपचैट की डिलीट करना शुरु कर दिया. यही नहीं ऐप स्टोर में जाकर उसे एक रेटिंग भी देने लगे. कुछ लोग तो इतने ज्यादा गुस्से में थे कि 'स्नैपडील' को भी डिलीट करने लगे. आखिर उसमें स्नैप वर्ड जो है.