सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान को लेकर लंबे समय से खींचतान चल रही है. राष्ट्रगान पर खड़े होना या न होना देशभक्ति का पैमाना बन गया है. अलग-अलग कोर्ट सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाए जाने को अनिवार्य कर चुके हैं लेकिन यदि सिनेमाहॉल में कोई राष्ट्रगान पर खड़ा नहीं होता था उसके साथ बदसलुकी, मारपीट और केस तक दर्ज कर दिए गए. लेकिन इस सब तनातनी पर पानी डालने का काम सुप्रीम कोर्ट ने किया है...
जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा है कि सिनेमा हॉल में बजने वाले राष्ट्रगान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देशभक्ति साबित करने के लिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के समय खड़ा होना जरूरी नहीं हैं. न्यायालय ने इसके साथ ही केंद्र सरकार से कहा कि वो सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने को नियंत्रित करने के लिए नियमों में संशोधन पर विचार करे. साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा है कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान के लिए खड़ा नहीं होता है तो ऐसा नहीं माना जा सकता कि वह कम देशभक्त है.
कोर्ट ने सरकार पर तंज करते हुए ये भी कहा है कि समाज को नैतिक पहरेदारी की आवश्यकता नहीं है. यदि अगली बार सरकार चाहे कि लोग सिनेमाघरों में टी-शर्ट्स और शार्ट्स में नहीं जाएं क्योंकि इससे राष्ट्रगान का अपमान होगा तो ऐसी बातें अपने आप में बेबुनियाद हैं.
आपको बताते चलें कि कोर्ट ने ये टिप्पणी पिछले साल श्याम नारायण चोकसी नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कही. पीठ ने कहा है कि, लोग सिनेमाघरों में मनोरंजन के लिए जाते हैं. समाज को मनोरंजन की आवश्यकता है. हम आपको हमारे कंधे पर रखकर बंदूक चलाने की...
सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान को लेकर लंबे समय से खींचतान चल रही है. राष्ट्रगान पर खड़े होना या न होना देशभक्ति का पैमाना बन गया है. अलग-अलग कोर्ट सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाए जाने को अनिवार्य कर चुके हैं लेकिन यदि सिनेमाहॉल में कोई राष्ट्रगान पर खड़ा नहीं होता था उसके साथ बदसलुकी, मारपीट और केस तक दर्ज कर दिए गए. लेकिन इस सब तनातनी पर पानी डालने का काम सुप्रीम कोर्ट ने किया है...
जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा है कि सिनेमा हॉल में बजने वाले राष्ट्रगान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देशभक्ति साबित करने के लिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के समय खड़ा होना जरूरी नहीं हैं. न्यायालय ने इसके साथ ही केंद्र सरकार से कहा कि वो सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने को नियंत्रित करने के लिए नियमों में संशोधन पर विचार करे. साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा है कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान के लिए खड़ा नहीं होता है तो ऐसा नहीं माना जा सकता कि वह कम देशभक्त है.
कोर्ट ने सरकार पर तंज करते हुए ये भी कहा है कि समाज को नैतिक पहरेदारी की आवश्यकता नहीं है. यदि अगली बार सरकार चाहे कि लोग सिनेमाघरों में टी-शर्ट्स और शार्ट्स में नहीं जाएं क्योंकि इससे राष्ट्रगान का अपमान होगा तो ऐसी बातें अपने आप में बेबुनियाद हैं.
आपको बताते चलें कि कोर्ट ने ये टिप्पणी पिछले साल श्याम नारायण चोकसी नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कही. पीठ ने कहा है कि, लोग सिनेमाघरों में मनोरंजन के लिए जाते हैं. समाज को मनोरंजन की आवश्यकता है. हम आपको हमारे कंधे पर रखकर बंदूक चलाने की अनुमति नहीं दे सकते. लोगों को अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के समय खड़े होने की आवश्यकता नहीं है.
गौरतलब है कि एक ऐसे समय में जब चौक- चौराहों, गली-मुहल्ले से लेकर सोशल मीडिया तक बात- बात पर लोगों को अपनी देशभक्ति साबित करनी पड़ रही है उस समय में ये सुनवाई निश्चित तौर पर उमस भरी गर्मी में बारिश की बूंद है. बहरहाल एक गंभीर मामले पर कोर्ट की सुनवाई और सरकार को फटकार के बाद पूरे सोशल मीडिया पर लोग इसको लेकर तरह तरह की टिप्पणी देते नजर आ रहे हैं.
शहजाद पूनावाला ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि जब सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बज सकता है तो फिर सरकारी दफ्तरों में क्यों नहीं. साथ ही शहजाद ने अपने ट्वीट में सरकार के उस फैसले को एक दोहरी मानसिकता का सूचक कहा है.
ट्विटर यूजर @jagratiShukla ने भी इस सुनवाई का विरोध किया है कि ऐसे मुद्दों पर हमें अदालत की जरुरत नहीं. क्या राष्ट्रगान के लिए खड़ा होना बहुत ज्यादा मांगना है. वहीं @dev_proudindian ने कटाक्ष करते हुए ट्वीट किया है कि अब वो दिन आ गए हैं जब कोर्ट हमें बताएगा कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं. ट्विटर यूजर @jstjonty ने अपने ट्वीट में सवाल पूछा है कि क्या राष्ट्रगान के वक्त खड़ा होना देश भक्ति का कोई पैमाना है?
इस पूरे मुद्दे पर @Herat_Gandhi ने ट्वीट किया है कि हमारे अन्दर से भावना आती है और उसी भावना के लिहाज से हम राष्ट्रगान के खड़े होते हैं. और जो लोग आज इसका विरोध कर रहे हैं क्या वो अपने मां बाप के प्रति वफादार हैं.
भले ही सुप्रीम कोर्ट ने अपनी याचिका में सरकार को फटकार लगाई हो और इस मुद्दे पर संशोशन करने को कहा हो. मगर इस पूरे मामले में इस बात को भी नाकारा नहीं जा सकता कि वाकई राष्ट्रगान के वक्त खड़े होने की भावना बहुत व्यक्तिगत होती है और इसके सम्मान में लोगों का खड़ा होना एक बेहद व्यक्तिगत विषय है. खैर, भविष्य में ये देखना दिलचस्प रहेगा कि सरकार के अलावा लोग इस सुनवाई को कैसे लेते हैं और क्या वो भविष्य में राष्ट्रगान के लिए खड़े होते हैं या कोर्ट की सुनवाई के बाद राष्ट्रगान के वक्त खड़े होने को सिरे से नकार देते हैं.
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