बीते दिन की शाम तक इस देश में सब कुछ ठीक था फिर अचानक टीवी की स्क्रीन पर फ़्लैश हुआ कि जम्मू कश्मीर के अनंतनाग जिले में अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला हुआ है. खबर देखी तो पता चला कि बाबा बर्फानी के दर्शन करने गए 7 तीर्थ यात्रियों को इस्लामी आतंकवादियों ने मार डाला तथा इस हमले में 3 जवानों सहित करीब 19 लोग जख्मी भी हुए हैं. इस हमले पर लोगों का तर्क है कि इस्लामिक आतंकवाद पर लंबे समय से भारत की और कश्मीर समेत अन्य राज्यों की सरकारों ने आंखें मूंद रखी हैं और अब समय आ गया है कि सरकार इस विषय पर खुल कर और बिन संकोच के बोले.
बेगुनाह अमरनाथ तीर्थ यात्रियों पर हमला हो चुका है, आतंकी हमला कर के जा चुके हैं, लोगों की मौत हो चुकी है लोगों के मरने के बाद वो होना शुरू हो गया है जो इस देश में बरसों से होता चला आ रहा है यानी कि 'कड़ी निंदा'. सत्ता पक्ष के शीर्ष नेताओं ने इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा करनी शुरू कर दी है. वहीं विपक्ष ने इसे देश की अस्मिता और सम्मान पर हमला बताते हुए प्रधानमंत्री पर वार करना शुरू कर दिया है. विपक्ष प्रधानमंत्री से कह रहा है कि वो इस हमले की जिम्मेदारी लें और तत्काल प्रभाव में अपना इस्तीफा सौंप दें.
एक आम आदमी के लिए किसी भी तरह के हमले पर सरकार द्वारा की जा रही कड़ी निंदा और विपक्ष द्वारा इस्तीफे की मांग ये कोई नई बात नहीं है. ऐसा हम काफी लम्बे समय से देखते चले आ रहे हैं और शायद हमारी आंखें भविष्य में भी इसे ही देखें. ये एक गहरी चिंता का विषय है. ऐसा इसलिए क्योंकि न सिर्फ ये देश की आंतरिक सुरक्षा की तरफ सरकार के विफल प्रयासों को उजागर करता है बल्कि इसलिए भी कि इससे आरोप प्रत्यारोप की घटिया राजनीति को बल मिलता है.
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बीते दिन की शाम तक इस देश में सब कुछ ठीक था फिर अचानक टीवी की स्क्रीन पर फ़्लैश हुआ कि जम्मू कश्मीर के अनंतनाग जिले में अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमला हुआ है. खबर देखी तो पता चला कि बाबा बर्फानी के दर्शन करने गए 7 तीर्थ यात्रियों को इस्लामी आतंकवादियों ने मार डाला तथा इस हमले में 3 जवानों सहित करीब 19 लोग जख्मी भी हुए हैं. इस हमले पर लोगों का तर्क है कि इस्लामिक आतंकवाद पर लंबे समय से भारत की और कश्मीर समेत अन्य राज्यों की सरकारों ने आंखें मूंद रखी हैं और अब समय आ गया है कि सरकार इस विषय पर खुल कर और बिन संकोच के बोले.
बेगुनाह अमरनाथ तीर्थ यात्रियों पर हमला हो चुका है, आतंकी हमला कर के जा चुके हैं, लोगों की मौत हो चुकी है लोगों के मरने के बाद वो होना शुरू हो गया है जो इस देश में बरसों से होता चला आ रहा है यानी कि 'कड़ी निंदा'. सत्ता पक्ष के शीर्ष नेताओं ने इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा करनी शुरू कर दी है. वहीं विपक्ष ने इसे देश की अस्मिता और सम्मान पर हमला बताते हुए प्रधानमंत्री पर वार करना शुरू कर दिया है. विपक्ष प्रधानमंत्री से कह रहा है कि वो इस हमले की जिम्मेदारी लें और तत्काल प्रभाव में अपना इस्तीफा सौंप दें.
एक आम आदमी के लिए किसी भी तरह के हमले पर सरकार द्वारा की जा रही कड़ी निंदा और विपक्ष द्वारा इस्तीफे की मांग ये कोई नई बात नहीं है. ऐसा हम काफी लम्बे समय से देखते चले आ रहे हैं और शायद हमारी आंखें भविष्य में भी इसे ही देखें. ये एक गहरी चिंता का विषय है. ऐसा इसलिए क्योंकि न सिर्फ ये देश की आंतरिक सुरक्षा की तरफ सरकार के विफल प्रयासों को उजागर करता है बल्कि इसलिए भी कि इससे आरोप प्रत्यारोप की घटिया राजनीति को बल मिलता है.
कह सकते हैं कि इस देश के नेताओं को इससे मतलब नहीं है कि लोग मर रहे हैं उन्हें बस अपनी राजनीति चमकाने से मतलब है.उनके द्वारा हरसंभव यही प्रयास किया जाता है कि कैसे वो कुछ ऐसा कहें जिससे वो अपने समर्थकों के बीच लोकप्रिय हो जाएं. ध्यान रहे ये सोशल मीडिया का युग है जहां लोकप्रियता की चाह में पेट के दर्द से लेकर सिर में उठने वाले माइग्रेन तक हर बात पहले सोशल मीडिया पर शेयर की जाती है. तो इसी मुद्दे पर काम करते हुए नेताओं ने या भविष्य के जननायक बनने की चाह रखने वाले लोगों ने अमरनाथ हमले को लेकर ट्विटर पर 'अपने- अपने' स्तर से रिएक्शन देने शुरू कर दिए हैं. आप इन नेताओं के रिएक्शन पर नजर डालिए तो मिलेगा कि इनके रिएक्शन न सिर्फ सिमिलर पैटर्न पर हैं बल्कि ये भी बता रहे हैं कि अपनी राजनीति को चमकाने के लिए ये लोग किसी भी सीमा तक जा सकते हैं
तो आइये जानें अमरनाथ हमले पर कौन कितना फिक्रमंद रहा और कैसे उसने अपने तरीके से इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास किया.
अमरनाथ हमले पर दिग्विजय सिंह को भी बुरा लगा और उन्होंने दुःख जताते हुए इस हमले की निंदा की मगर कुछ पलों बाद न जाने उन्हें क्या हुआ कि वो उसी ढर्रे पर आ गए जिसपर हमारे नेता बरसों से चलते आ रहे हैं . दिग्विजय ने भी इस हमले को लेकर न सिर्फ मुद्दे को न सिर्फ हिन्दू मुस्लिम रंग देने की कोशिश की साथ ही उन्होंने पीएम मोदी पर भी निशाना साधने का प्रयास किया.
हार्दिक पटेल
गुजरात में चुनाव आ रहे हैं ऐसे में गुजरात के उभरते जननायक 'हार्दिक पटेल' की यही इच्छा रहती है कि वो कुछ ऐसा करें जिससे लोकप्रियता पाने में उन्हें ज्यादा वक़्त न लगे. अमरनाथ हमले को भुनाते हुए हार्दिक पटेल पहले तो मरने वालों पार्ट भावुक हुए फिर अपना असली रंग दिखाते हुए उन्होंने इसे गुजरात चुनाव से जोड़ दिया और कहा कि "क्या गुजरात में इस साल चुनाव हैं. अमरनाथ यात्रियों पर हुए हमले में मरनेवाले सभी गुजरात के हैं. सुरक्षा पर सवाल या फिर साजिश'. हार्दिक का ये ट्वीट ये बताने के लिए काफी है कि वो कोई भी ऐसा मौका नहीं छोड़ना चाहते जिससे उनके गर्दिश के बादल छंट सकें.
मुद्दा चाहे छोटा हो या बड़ा राहुल गांधी को निंदा करनी है तो बस करनी है. चीनियों से मिलने के चलते सत्तापक्ष से आलोचना झेलने वाले राहुल गांधी ने अमरनाथ हमले को दुखद बताते हुए पीएम मोदी से मांग की है कि अब वो ये मान लें की सुरक्षा में बड़ी चूक हुई थी जिसकी जिम्मेदारी उनकी है.
एक्टर से नेता बने अनुपम खेर भी तीर्थयात्रियों के साथ हुई इस घटना पर काफी नाराज हैं. अपने ट्वीट में अनुपम ने न सिर्फ इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है बल्कि ये भी कहा है कि अब वो समय आ गया है जब सुरक्षा बलों को आतंकियों का खात्मा कर दी देना चाहिए.
ट्विटर वाले सेलेब्रिटियों में सबसे लोकप्रिय चेतन भगत के बिना कुछ बोले ये निंदा ये आलोचना अधूरी है. चेतन ने इस मुद्दे को हरियाणा के जुनैद से जोड़ते हुए कहा है कि जिस तरह मुसलमान होने के लिए उसे मारा गया उसी तरह अब हमें और मीडिया दोनों को ये मान लेना चाहिए कि अमरनाथ आतंकी हमले में जो लोग मरे हैं वो सभी हिन्दू हैं.
बहरहाल, उपरोक्त ट्वीट्स से एक बात तो साफ है कि इस देश में हमेशा लाशों पर राजनीति हुई है और शायद ये आगे भी इसी तरह होगी मगर इनमें जो सबसे दुखद बात है वो ये कि अपनी राजनीति में आत्म मुग्ध ये नेता शायद ये बात पूरी तरह भूल चुके हैं कि अमरनाथ में जो हादसा हुआ उस पर राजनीति की नहीं सबको साथ मिल कर विरोध करने की जरूरत है.
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