इसे इत्तेफाक कहें या फिर नियति कि कानपुर से आज फिर एक बुरी खबर आई. कानपुर से 43 किलोमीटर दूर रूरा इलाके में अजमेर-सियालदाह एक्सप्रेस के 15 डिब्बे सुबह करीब 5.30 बजे पटरी से उतर गए. इस हादसे में अभी तक 48 लोगों के घायल और दो लोगों की मौत होने की खबर है.
दो की मौत, 48 घायल |
जरा याद कीजिए अभी पिछले महीने 20 नवंबर को ही कानपुर के पुखरायां में जबरदस्त ट्रेन हादसा हुआ था. इंदौर-पटना एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतर गये थे, जिसमें 150 यात्रियों की जान गई थी. और आज फिर वैसी ही दुर्घटना सामने आई.
पुखरायां कानपुर से 63 किलोमीटर दूर है, रूरा 56 कलोमीटर. रूरा और पुखरायां के बीच की दूरी केवल 37 किलोमीटर है. यानि ये हादसा पिछले हादसे से ज्यादा दूर नहीं था. लेकिन लगता है कि भारतीय रेल अभी तक पिछले हादसे के शोक से उबर नहीं पाई, वो सिर्फ मृतकों को दिए जाने वाले मुआवजे पर ही अपना पूरा ध्यान लगा रही है. जबकि रेलवे को अपनी सारी इंद्रियां चौकन्नी रखनी चाहिए थीं. जिसमें न सिर्फ पीड़ितों की फिक्र होती बल्कि रेलवे दुर्घटनाओं के कारण और निवारण पर भी ध्यान दिया जाता, रेलवे ट्रैक्स दुरुस्त किए जाते. लेकिन नहीं...
उस भयावह दुर्घटना से भी सुरेश प्रभु कुछ नहीं सीख पाए. उन्होंने सीखा तो सिर्फ ये कि कैसे पीड़ितों को मुआवजा देकर अपनी नाकामियों पर पर्दा डाला जाए. कल ही खबर आई थी कि रेलवे ने दुर्घटनाग्रस्त पीड़ितों की मुआवजा राशी दुगनी कर दी है, जो 01 जनवरी 2017 से लागू की जाएगी. पहले 4 लाख मिलते थे , अब 8 लाख मिलेंगे....
इसे इत्तेफाक कहें या फिर नियति कि कानपुर से आज फिर एक बुरी खबर आई. कानपुर से 43 किलोमीटर दूर रूरा इलाके में अजमेर-सियालदाह एक्सप्रेस के 15 डिब्बे सुबह करीब 5.30 बजे पटरी से उतर गए. इस हादसे में अभी तक 48 लोगों के घायल और दो लोगों की मौत होने की खबर है.
दो की मौत, 48 घायल |
जरा याद कीजिए अभी पिछले महीने 20 नवंबर को ही कानपुर के पुखरायां में जबरदस्त ट्रेन हादसा हुआ था. इंदौर-पटना एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतर गये थे, जिसमें 150 यात्रियों की जान गई थी. और आज फिर वैसी ही दुर्घटना सामने आई.
पुखरायां कानपुर से 63 किलोमीटर दूर है, रूरा 56 कलोमीटर. रूरा और पुखरायां के बीच की दूरी केवल 37 किलोमीटर है. यानि ये हादसा पिछले हादसे से ज्यादा दूर नहीं था. लेकिन लगता है कि भारतीय रेल अभी तक पिछले हादसे के शोक से उबर नहीं पाई, वो सिर्फ मृतकों को दिए जाने वाले मुआवजे पर ही अपना पूरा ध्यान लगा रही है. जबकि रेलवे को अपनी सारी इंद्रियां चौकन्नी रखनी चाहिए थीं. जिसमें न सिर्फ पीड़ितों की फिक्र होती बल्कि रेलवे दुर्घटनाओं के कारण और निवारण पर भी ध्यान दिया जाता, रेलवे ट्रैक्स दुरुस्त किए जाते. लेकिन नहीं...
उस भयावह दुर्घटना से भी सुरेश प्रभु कुछ नहीं सीख पाए. उन्होंने सीखा तो सिर्फ ये कि कैसे पीड़ितों को मुआवजा देकर अपनी नाकामियों पर पर्दा डाला जाए. कल ही खबर आई थी कि रेलवे ने दुर्घटनाग्रस्त पीड़ितों की मुआवजा राशी दुगनी कर दी है, जो 01 जनवरी 2017 से लागू की जाएगी. पहले 4 लाख मिलते थे , अब 8 लाख मिलेंगे. इलेक्शन सिर पर हैं, कहना गलत नहीं होगा कि सुरेश प्रभु को उन पीड़ितों में पीड़ित नहीं बल्कि वोटर्स नजर आ रहे थे.
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इसे उनकी नाकामी ही कहेंगे कि पिछले दुर्घटना स्थल से केवल 37 किलोमीटर दूर फिर से ट्रेन के 15 डब्बे पटरी से उतर जाते हैं. लेकिन इस बार भी सुरेश प्रभू केवल लोगों को मेडिकल हेल्प, और मुआवजा देने पर ही जोर देते दिख रहे हैं.
मेरा बेटा जब अपनी टॉय ट्रेन से खेलता है तो वो पटरियां ठीक से जोड़ नहीं पाता, और बार बार उसकी ट्रेन ट्रेक से उतर जाती है. पर लगता है कि सुरेश प्रभु ने भी भारतीय रेल को टॉय ट्रेन समझ रखा है. पर असल ट्रेन जब ट्रेक से उतरती है तो बहुतों की चीखें निकलती हैं, बहुतों की जानें जाती हैं, जिनकी कीमत मुआवजे से नहीं तोली जातीं.
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ट्रेन और ट्रेन ट्रेक की मरम्मत का काम भले ही आपको नहीं है लेकिन जिम्मेदारी तो आपकी ही है, इसलिए सुरेश प्रभु पर लोगों का गुस्सा बिल्कुल जायज है.
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