गधा एक सियासी मुद्दा बन गया है. अखिलेश यादव ने इस प्राणी को लेकर तंज कसा है तो गधे तो विरोध करने से रहे. लेकिन इस मौके पर नेताओं, समाज के एक खास वर्ग और कवियों की तरफ से प्रतिक्रिया जरूर आई है. गधे का अपमान मानकर यूपी के मऊ विधानसभा और वाराणसी में रहने वाले धोबी समाज ने मतदान के बहिष्कार का ऐलान किया है. इस तल्ख खबर के बाद अब गधे पर कुछ मार्मिक बातें करते हैं.
लेखिका प्रीति अज्ञात साहिर लुधियानवी साहब से क्षमा याचना सहित कुछ इस तरह कहती हैं-
ये गदहे, ये खच्चर, ये घोड़ों की दुनिया
ये इंसां से बेहतर निगोड़ों की दुनिया
ये सूखे और रूखे निवालों की दुनिया
ये दुनिया अगर चिढ़ भी जाये तो क्या है
हरेक गदहा घायल, मिली घास बासी
निगाहों में उम्मीद, दिलों में उबासी
ये दुनिया है या कोई सूखी-सी खांसी
ये दुनिया अगर चिढ़ भी जाये तो क्या है
वहां गुंडागर्दी को कहते हैं मस्ती
इस मस्ती ने लूटी है कितनों की बस्ती
वहां चीटियों-सी है आदम की हस्ती
वो दुनिया अगर गिर भी जाये तो क्या है
वो दुनिया जहां जिन्दगी कुछ नहीं है
इज्जत कुछ नहीं, भाषा कुछ नहीं है
जहां इंसानियत की कदर कुछ नहीं है
वो दुनिया अगर चिढ़ भी जाये तो क्या है
मिटा गालियों को, संवारो ये दुनिया
छोड़ अपराध, ईमां से चला लो ये दुनिया
तुम्हारी है तुम ही बचा लो,ये...
गधा एक सियासी मुद्दा बन गया है. अखिलेश यादव ने इस प्राणी को लेकर तंज कसा है तो गधे तो विरोध करने से रहे. लेकिन इस मौके पर नेताओं, समाज के एक खास वर्ग और कवियों की तरफ से प्रतिक्रिया जरूर आई है. गधे का अपमान मानकर यूपी के मऊ विधानसभा और वाराणसी में रहने वाले धोबी समाज ने मतदान के बहिष्कार का ऐलान किया है. इस तल्ख खबर के बाद अब गधे पर कुछ मार्मिक बातें करते हैं.
लेखिका प्रीति अज्ञात साहिर लुधियानवी साहब से क्षमा याचना सहित कुछ इस तरह कहती हैं-
ये गदहे, ये खच्चर, ये घोड़ों की दुनिया
ये इंसां से बेहतर निगोड़ों की दुनिया
ये सूखे और रूखे निवालों की दुनिया
ये दुनिया अगर चिढ़ भी जाये तो क्या है
हरेक गदहा घायल, मिली घास बासी
निगाहों में उम्मीद, दिलों में उबासी
ये दुनिया है या कोई सूखी-सी खांसी
ये दुनिया अगर चिढ़ भी जाये तो क्या है
वहां गुंडागर्दी को कहते हैं मस्ती
इस मस्ती ने लूटी है कितनों की बस्ती
वहां चीटियों-सी है आदम की हस्ती
वो दुनिया अगर गिर भी जाये तो क्या है
वो दुनिया जहां जिन्दगी कुछ नहीं है
इज्जत कुछ नहीं, भाषा कुछ नहीं है
जहां इंसानियत की कदर कुछ नहीं है
वो दुनिया अगर चिढ़ भी जाये तो क्या है
मिटा गालियों को, संवारो ये दुनिया
छोड़ अपराध, ईमां से चला लो ये दुनिया
तुम्हारी है तुम ही बचा लो,ये दुनिया
बचा लो, बचा लो...बचा लो ये दुनिया
ये दुनिया निखर के जो आये, तो क्या है!
ये दुनिया शिखर पे अब आये, तो क्या है!
पत्रकार और लेखक अबयज़ खान ने भी गधे के दर्द को कुछ यूं बयां किया-
गधे का दर्द
यूं ही नहीं मैं गधा बन जाता हूं
बहुत दूर तक चलता जाता हूं
बोझा ढोते ढोते चढ़ता जाता हूं
धूप छांव की परवाह किये बिना
मैं हर कदम आगे बढ़ता जाता हूं
हज़ार दर्द सहता जाता हूं
वक़्त के थपेड़ों से लड़ता जाता हूं
हर दुत्कार को ख़ामोशी से सुनते हुए
बिना किसी शिकवे, शिकायत के
मैं बस अपना काम करता जाता हूं
मैं इंसानी "गधों" की तरह
मुफ़्त की रोटियां तोड़ता नहीं
मेहनत करता हूं, मेहनत की खाता हूं
जिन "गधों" को गधों की क़द्र नहीं होती
मैं उन ''गधों'' से खुद को बेहतर पाता हूं
यूं ही नहीं मैं गधा बन जाता हूं ।।
पटना में रहने वाले कवि और लेखक अमिताभ बच्चन ने विष्णु नागर की कविता शेयर की है, जिसमें गधे और राजनीति पर तंज कसा गया है-
अगर गधा कुर्सी पर बैठा हो, तो पहली बार ऐसा लगता है
कि नहीं यह उतना गधा नहीं हैं, जितना हम इसे समझ रहे थे
लेकिन हमारी राय फिर भी यही रहती है, कि अंतत: यह है तो गधा ही
और आज नहीं तो कल यह सिद्ध हो जाएगा,
लेकिन कल भी जब वह गधा सिद्ध नहीं होता तो
हम कहते हैं, है तो यह गधा ही
मगर कुर्सी ने इसे सिखा दिया है कि
गधे को भी कम से कम घोड़ा तो दिखना ही चाहिए
इसलिए अभी तक यह बचा हुआ है
और एक दिन जब यह सिद्ध हो जाएगा कि यह गधा है
तो उसी दिन से इसका खेल बिगड़ना शुरू हो जाएगा
कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने गधे की वचनबद्धा का परिचय कुछ इस तरह दिया है-
मैं गंवार हूं और गधा हूं,
क्योंकि वचनों से अपने बंधा हूं,
तुम होशियार हो और हंस हो,
क्योंकि अपने प्रतिज्ञाओं के ध्वंस हो.
हमने जो कह दिया सो करते रहे,
अपने कहे पर मरते रहे,
तुमने जो कहा जो कभी नहीं किया,
जीवन इस इस तरह सुख से जीया,
और फिर भी मैं खुश हूं इस पर
कि मैं गंवार हूं और गधा हूं,
क्योंकि अपने वचन से बंधा हूं.
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने बुंदेलखंड के कवि अखिलेंदु अरजेरिया की ये कविता शेयर की-
गधा प्रेरणास्रोत है,
सुना ये हम ने आज,
इसी प्रेरणा से चले,
अब भारत में राज?
अब भारत में राज,
कहा अखिलेश हैं डरते;
डरता हर इंसान,
गधा जब ढेन्चू करते.
कहें "अखिल" कविराय, लगाते हैं जो दुलत्ती;
तन मन धन पर वार, खोलते मन की बत्ती.
पत्रकार और कवि त्रिभुवन ने गोपाल प्रसाद व्यास की ये कविता शेयर की है, जिसमें उन्होंने गधे को सुकुमार बताया है-
मेरे सुकुमार गधे!
मेरे प्यारे सुकुमार गधे!
जग पड़ा दुपहरी में सुनकर
मैं तेरी मधुर पुकार गधे!
मेरे प्यारे सुकुमार गधे!
तन-मन गूंजा-गूंजा मकान,
कमरे की गूंजीं दीवारें,
लो ताम्र-लहरियां उठीं
मेजपर रखे चाय के प्याले में!
कितनी मीठी, कितनी मादक,
स्वर, ताल, तान पर सधी हुई,
आती है ध्वनि, जब गाते हो,
मुख ऊंचा कर, आहें भर करतो
हिल जाते छायावादीकवि की वीणा के तार, गधे!
मेरे प्यारे...!
इस कविता के लेखक का तो पता नहीं, लेकिन सोशल मीडिया पर खूब शेयर की जा रही है-
इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं,
जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं
गधे हंस रहे, आदमी रो रहा है,
हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है
जवानी का आलम गधों के लिये है
ये रसिया, ये बालम गधों के लिये है
ये लखनऊ, ये पालम गधों के लिये है
ये संसार सालम गधों के लिये है
पिलाए जा साकी, पिलाए जा डट के
तू विहस्की के मटके पै मटके पै मटके
मैं दुनियां को अब भूलना चाहता हूं
गधों की तरह झूमना चाहता हूं
घोडों को मिलती नहीं घास देखो
गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो
यहां आदमी की कहां कब बनी है
ये दुनियां गधों के लिये ही बनी है
जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है
जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है
जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है
मुझे माफ करना हम भटके हुये हैं
मगर ये टीपू पप्पू कंहा अटके हुये हैं
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.