मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर, पुल पर भगदड़ मचने से करीब 22 लोगों की मौत हो गई है. जबकि दो दर्जन से ऊपर लोग घायल हुए हैं. इस हादसे के बाद मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक लोग जहां एक तरफ इस घटना की निंदा कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ सरकार और उसके नुमाइंदों ने भी घटना की आलोचना के बाद 5 - 5 लाख रुपए का मुआवजा देकर घटना से अपना पल्ला झाड़ने का काम शुरू कर दिया है.
आजादी के बाद से लेकर अब तक शायद सरकार भी इस बात को भली भांति समझ गयी है कि, आप सरकारी या गैर सरकारी लापरवाही के बाद, मौका-ए-वारदात पर आइये, अफ़सोस जताते हुए चंद आंसू बहा दीजिये और मुआवजे के कुछ रुपए थमा दीजिये लोगों का बढ़ा हुआ आक्रोश जल्द ही ठंडा हो जाएगा.
मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर, पुल पर भगदड़ मचने से करीब 22 लोगों की मौत हो गई है. जबकि दो दर्जन से ऊपर लोग घायल हुए हैं. इस हादसे के बाद मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक लोग जहां एक तरफ इस घटना की निंदा कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ सरकार और उसके नुमाइंदों ने भी घटना की आलोचना के बाद 5 - 5 लाख रुपए का मुआवजा देकर घटना से अपना पल्ला झाड़ने का काम शुरू कर दिया है.
आजादी के बाद से लेकर अब तक शायद सरकार भी इस बात को भली भांति समझ गयी है कि, आप सरकारी या गैर सरकारी लापरवाही के बाद, मौका-ए-वारदात पर आइये, अफ़सोस जताते हुए चंद आंसू बहा दीजिये और मुआवजे के कुछ रुपए थमा दीजिये लोगों का बढ़ा हुआ आक्रोश जल्द ही ठंडा हो जाएगा.
खैर, उपरोक्त बातों को कहने का उद्देश्य तब साफ हो जाता है जब आप मीडिया के अलावा सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है एक पोस्टर की तस्वीर को देखें. ये पोस्टर मुंबई के केईएम मेडिकल कॉलेज के बाहर है जिसमें असंवेदनशीलता की सारी हदों को पार कर दिया है.
बहरहाल, भले ही ये काम मेडिकल कॉलेज ने करवाया हो या फिर इसे पुलिस के निर्देश पर किया गया हो. इसको देखकर ये बात खुद-ब-खुद साफ हो जाती है कि जब एक आम आदमी किसी त्रासदी, दुर्घटना का शिकार होता है और मर जाता है तो मरने के बाद वो फाइलों में दर्ज एक नंबर बन जाता है. एक ऐसा नंबर जिसे लोग कुछ दिन तो याद रखते है फिर एक ऐसा वक्त आता है जब इसे भुला दिया जाता है.
अंत में इतना ही कि, ये पोस्टर भले ही किसी ने भी लगवाया हो, मगर इसे देखकर कोई भी समझदार इंसान इसकी निंदा करेगा और ये मानेगा कि ये पोस्टर इंसानियत की बातें करने वालों के लिए एक गंदा मजाक है.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.