यूं तो एक साल में बारह महीने होते हैं मगर मुझे अगस्त के महीने का हर साल बेसब्री से इंतेजार रहता है. मैं पूरे साल बैठ के इस महीने की प्रतीक्षा करता हूं. अगस्त को पसंद करने के पीछे की वजह बस इतनी है कि ये मेरा बर्थ डे मंथ है. मेरा क्या किसी का भी हो, व्यक्ति के लिए उसका बर्थ डे मंथ हमेशा खास रहता है. व्यक्ति साल भर बैठ के बस यही सोचता है कि कैसे वो महीना आए जिस महीने में उसका जन्म हुआ है और वो उसे एन्जॉय कर सके.
बीते दिन तक इस महीने को लेकर मैं बड़ा उत्साहित था. मैंने इस महीने को लेकर तमाम तरह के प्लान बना रखे थे. मगर अब उन सारे प्लान पर पानी गिर गया है. मेरे सारे प्लान अंधेरे में कहीं खो गए हैं. ऐसा क्यों हुआ है यदि इसके पीछे की वजह पर बात करूं, तो शायद वो वजह आपको भी पता हो और आप भी उससे परिचित भी हों.
यदि आप अब तक बात समझ पाने में असमर्थ हैं तो बता दूं इसके पीछे की वजह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जापानी एनसेफेलाइटिस के चलते हुई 60 से ज्यादा बच्चों की मौत है. वो मौत जिसने वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार की स्वास्थ्य सेवा की दिशा में किये जा रहे प्रयासों की पोल खोल दी है. वो मौत जिसने इस देश को बता दिया है कि स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में उत्तर प्रदेश कहां और कितनी दूर हम खड़े हैं.
देश का एक नागरिक होने के नाते, मैं बीते दिन से ही इस घटना पर अपनी नजर बनाए रखे हुए था कि मुझे एक बेहद शर्मनाक बयान सुनाई दिया. बयान उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री का था. मंत्री जी ने अपने मन की बात करते हुए पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में कहा था कि, 'ऐसा नहीं है कि उनकी सरकार इन मौतों पर संवेदनशील नहीं है, लेकिन क्या करें अगस्त में तो बच्चे मरते ही...
यूं तो एक साल में बारह महीने होते हैं मगर मुझे अगस्त के महीने का हर साल बेसब्री से इंतेजार रहता है. मैं पूरे साल बैठ के इस महीने की प्रतीक्षा करता हूं. अगस्त को पसंद करने के पीछे की वजह बस इतनी है कि ये मेरा बर्थ डे मंथ है. मेरा क्या किसी का भी हो, व्यक्ति के लिए उसका बर्थ डे मंथ हमेशा खास रहता है. व्यक्ति साल भर बैठ के बस यही सोचता है कि कैसे वो महीना आए जिस महीने में उसका जन्म हुआ है और वो उसे एन्जॉय कर सके.
बीते दिन तक इस महीने को लेकर मैं बड़ा उत्साहित था. मैंने इस महीने को लेकर तमाम तरह के प्लान बना रखे थे. मगर अब उन सारे प्लान पर पानी गिर गया है. मेरे सारे प्लान अंधेरे में कहीं खो गए हैं. ऐसा क्यों हुआ है यदि इसके पीछे की वजह पर बात करूं, तो शायद वो वजह आपको भी पता हो और आप भी उससे परिचित भी हों.
यदि आप अब तक बात समझ पाने में असमर्थ हैं तो बता दूं इसके पीछे की वजह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जापानी एनसेफेलाइटिस के चलते हुई 60 से ज्यादा बच्चों की मौत है. वो मौत जिसने वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार की स्वास्थ्य सेवा की दिशा में किये जा रहे प्रयासों की पोल खोल दी है. वो मौत जिसने इस देश को बता दिया है कि स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में उत्तर प्रदेश कहां और कितनी दूर हम खड़े हैं.
देश का एक नागरिक होने के नाते, मैं बीते दिन से ही इस घटना पर अपनी नजर बनाए रखे हुए था कि मुझे एक बेहद शर्मनाक बयान सुनाई दिया. बयान उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री का था. मंत्री जी ने अपने मन की बात करते हुए पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में कहा था कि, 'ऐसा नहीं है कि उनकी सरकार इन मौतों पर संवेदनशील नहीं है, लेकिन क्या करें अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं, इसमें नई बात क्या है'. इसके अलावा माननीय मंत्री जी ने हर साल अगस्त के महीने में हुई मौतों के आंकड़ें भी पत्रकारों के समक्ष प्रस्तुत किए.
इसके अलावा सिद्धार्थनाथ सिंह ने पिछले साल में हुई बच्चों की मौतों के आंकड़े दिखाकर साबित करना चाहा कि ये कोई नई बात नहीं है. हर साल ऐसी मौतें होती चली आईं हैं. बच्चों की अकाल मौत पर माननीय स्वास्थ्य मंत्री का तर्क था कि बच्चों की मौत में ऑक्सीजन का कोई हाथ नहीं है और ये मौतें केवल और केवल बीमारी के चलते हुई हैं.
बहरहाल, मुख्यमंत्री से लेकर स्वास्थ्य मंत्री और अधिकारियों तक कोई इस बात को नहीं मान रहा कि इन मौतों का जिम्मेदार एक आम नागरिक के प्रति उनका ढीला ढाला रवैया है. मौत तब भी हो रही थी, अब भी हो रही है. ऐसे में आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल चुका है. अधिकारीयों पर गाज गिर चुकी है. बयान लगातार आ रहे हैं, लोगों को ट्रांसफर किया जा रहा है.
इन मौतों के पीछे न तो सरकार और ऑक्सीजन जिम्मेदार हैं न उसके अधिकारी और आम नागरिक के प्रति उसका लचर रवैया. इस पूरे घटना क्रम का जिम्मेदार अगस्त का महीना है. हम केंद्र सरकार से अनुरोध करते हैं यदि वाकई ऐसा है तो वो इसे कैलेण्डर से निकाल फेंके, साथ ही नैतिकता के नाते मेरे अलावा उन तमाम लोगों को भी मर जाना चाहिए जिन्होंने अगस्त के इस निर्दयी महीने में जन्म लिया है. हां वो अगस्त जिसमें बच्चे मरते ही हैं, जिसमें कोई नई बात नहीं है.
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