आजकल बाहुबली का दौर है, पहले महेंद्र बाहुबली थे इस बार अमरेंद्र बाहुबली हैं. महेंद्र के मुकाबले, अमरेंद्र लोगों को ख़ासा आकर्षित कर रहे हैं. लोगों के बीच आकर्षण की वजह, फिल्म में उनका मरना था. 2015 से लेके इस साल तक बाहुबली की मृत्यु एक राष्ट्रीय समस्या बन गयी थी. लॉन्ड्री वाले दीपू से लेके स्टेट बैंक में क्लर्क शर्मा जी के बेटे बिट्टू तक सबकी जुबान पर बस यही था कि "कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा"? इसका उत्तर हमें इस साल मिला जहाँ फ़िल्म देखने के दौरान पता चला कि बाहुबली की मम्मी शिवगामी ने ग़ुलाम कटप्पा से कहा था कि बाहुबली को मार दो, क्योंकि बाहुबली की मम्मी इस बात से गुस्सा थी कि बाहुबली उनसे नहीं बीवी से प्यार करते हैं और इस गुस्से के चक्कर में वो बाहुबली के खिलाफ कही हर बात को सच मान लेती हैं. आज बात निकली है तो दूर तक जायगी, मगर उससे पहले कुछ और बातें भी हैं. आज सभी बातों पर चर्चा होगी। आज किसी भी बात को अधूरा नहीं छोड़ा जायगा.
देवसेना तो है मगर हमारे अंदर का अमरेंद्र मर चुका है
शायद आपको याद हो, एक वो दौर था जब लोग ट्रॉय, थॉर या फिर लियोनाइड्स बनना चाहते थे. अब एक ये दौर है जब हम अचानक ही अमरेंद्र बाहुबली बनना चाहते हैं. सुपर हीरो वाली भारतीय टेबल पर एक नज़र डालें तो मिलता है कि शक्तिमान से कैप्टन व्योम और कैप्टन व्योम से छोटा भीम तक यूँ तो ज्यादा कुछ नहीं बदला बस कुछ बदला है अगर तो लोगों में असहिष्णुता और हर काम को कर लेने की जल्दबाज़ी. सबको शॉर्ट कट पसंन्द है, मगर देखें तो शॉर्ट कट भी एक हद तक हार्ड वर्क मांगता है. बड़ा मुश्किल दौर है साहब! मानिये न मानिये लेकिन हमारे इर्द गिर्द कई देवसेनाओं की भरमार हैं,...
आजकल बाहुबली का दौर है, पहले महेंद्र बाहुबली थे इस बार अमरेंद्र बाहुबली हैं. महेंद्र के मुकाबले, अमरेंद्र लोगों को ख़ासा आकर्षित कर रहे हैं. लोगों के बीच आकर्षण की वजह, फिल्म में उनका मरना था. 2015 से लेके इस साल तक बाहुबली की मृत्यु एक राष्ट्रीय समस्या बन गयी थी. लॉन्ड्री वाले दीपू से लेके स्टेट बैंक में क्लर्क शर्मा जी के बेटे बिट्टू तक सबकी जुबान पर बस यही था कि "कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा"? इसका उत्तर हमें इस साल मिला जहाँ फ़िल्म देखने के दौरान पता चला कि बाहुबली की मम्मी शिवगामी ने ग़ुलाम कटप्पा से कहा था कि बाहुबली को मार दो, क्योंकि बाहुबली की मम्मी इस बात से गुस्सा थी कि बाहुबली उनसे नहीं बीवी से प्यार करते हैं और इस गुस्से के चक्कर में वो बाहुबली के खिलाफ कही हर बात को सच मान लेती हैं. आज बात निकली है तो दूर तक जायगी, मगर उससे पहले कुछ और बातें भी हैं. आज सभी बातों पर चर्चा होगी। आज किसी भी बात को अधूरा नहीं छोड़ा जायगा.
देवसेना तो है मगर हमारे अंदर का अमरेंद्र मर चुका है
शायद आपको याद हो, एक वो दौर था जब लोग ट्रॉय, थॉर या फिर लियोनाइड्स बनना चाहते थे. अब एक ये दौर है जब हम अचानक ही अमरेंद्र बाहुबली बनना चाहते हैं. सुपर हीरो वाली भारतीय टेबल पर एक नज़र डालें तो मिलता है कि शक्तिमान से कैप्टन व्योम और कैप्टन व्योम से छोटा भीम तक यूँ तो ज्यादा कुछ नहीं बदला बस कुछ बदला है अगर तो लोगों में असहिष्णुता और हर काम को कर लेने की जल्दबाज़ी. सबको शॉर्ट कट पसंन्द है, मगर देखें तो शॉर्ट कट भी एक हद तक हार्ड वर्क मांगता है. बड़ा मुश्किल दौर है साहब! मानिये न मानिये लेकिन हमारे इर्द गिर्द कई देवसेनाओं की भरमार हैं, चौक से लेके चौराहों तक देवसेना भी हैं उनकी मम्मियां भी हैं, बस बात ये है कि हमारे अंदर अमरेंद्र बनने का जज़्बा मर चुका है या फिर हमने ही उसे मार दिया है जिसके चलते न ख़ुदा ही मिला न विसाल ए सनम.
तो आखिर कैसे मरा हमारे अंदर का बाहुबली
ऊपर हमनें मुश्किल दौर की बात कर ली है. साथ ही ये भी कहा कि हमनें स्वयं ही अमरेंद्र बनने का जज़्बा अपने अंदर से मार दिया है. आख़िर ऐसा क्यों हुआ? इसपर चर्चा की गुंजाईश बिल्कुल है नज़र बस उठाने भर की देर है. एक आदमी, वो भी आम आदमी, मेट्रो की भीड़ में धक्के खाता हुआ, टारगेट और "विग" के पेंच में फंसा हुआ, मूलभूत सुविधाओं के लिए लाइन में लगा हुआ, मई या जून की उमस में या फिर दिसंबर जनवरी की शीत लहर में ठेले से आलू टमाटर खरीदने के बाद मुफ़्त के धनिया और मिर्चों के लिए लड़ता हुआ ये भूल जाता है कि उसकी सीमाएं कहाँ तक हैं? उसका लक्ष्य क्या है? उसके प्रसार का क्षेत्र कहाँ तक है?
अपने में अलग तरह का सिनेमा है बाहुबली
दक्षिण की बहुचर्चित फिल्म बाहुबली बॉलीवुड को कड़ी टक्कर दे रही है. भारत के अलावा ओवर सीज़ तक में फिल्म ने 1000 करोड़ से ऊपर का बिज़नेस कर इतिहास रच दिया है. फिल्म को रिलीज़ हुए एक लम्बा वक़्त गुज़र चुका है लेकिन इसके बावजूद आज भी फ़िल्म के लगभग सभी शो हाउस फुल जा रहे हैं. थियेटर से निकलने वाला दर्शन दो स्थितियों के बीच उलझा हुआ है. कुछ देवसेना की सुंदरता और उसके द्वारा असल नारीवाद के हित के लिए उठाए गए कदम के पक्ष में हैं तो किसी के दिमाग पर शिवगामी के एटीट्यूड का खुमार है. कुल मिलाके फिल्म जहाँ एक तरफ तकनीक के नए आयाम गढ़ने में कामयाब रही तो वहीँ उसने ये भी बताया कि भारत के पास भी ऐसे निर्देशक हैं जो उम्दा सिनेमा बनाकर दर्शकों का मनोरंजन कर सकते हैं.
कहानी घर - घर की
फिल्म को आप इंटरटेनमेंट की दृष्टि से इतर सामाजिक तौर पर देखेंगे तो मिलेगा कि फिल्म, सास बहू के बीच फंसे एक बेटे के बटवारे के इर्द गिर्द है. बाहुबली 2 द कन्क्लूजन में इंटरवल से पहले तक अमरेंद्र के पास राज काज, हाथी घोड़ा, तीर तलवार से लेके मां तक सब थे इंटरवल ख़त्म होते ही पिक्चर में ट्विस्ट आया. उनके पास, मां के प्यार पर भारी पड़ी पत्नी देवसेना आ गयी और वो सब चला गया जो उनके पास था. परदे पर कुछ देर पहले जो राजा बनने वाला था वो अब राज्य का एक आम नागरिक है. कारण ये कि उसे राजमाता शिवगामी ने राजद्रोह के चलते महल से निकाल दिया था क्यों कि उसने ग़लत होने पर माँ को ग़लत और सही होने पर पत्नी को सही कहा था.
सत्य की राहें हैं बड़ी मुश्किल
सत्य का सामना करना और उसके लिए लड़ना आसान नहीं है. फिल्म में अमरेंद्र बाहुबली ने सत्य के लिए हिम्मत करी थी उसने गलत को गलत और सही को सही कहा था. बाहुबली ने जब देखा कि माँ सही नहीं कर रही तो उसने डंके की चोट पर उसका विरोध करा.
रिश्तों का ये मज़ाक हमारे कल्चर के खिलाफ है
खैर वो फिल्म थी, सच्चाई फिल्म की लुभावनी कहानियों से अलग होती है. माँ ग़लत भी है तो क्या हुआ माँ तो माँ ही है. भले ही एक माँ गलत हो या फिर ग़लत कर रही हो मगर हमारी नज़रों में वो हमेशा सही रहेगी। असल ज़िन्दगी में आदमी को बीवी और माँ दोनों को मैनेज करना होता है फिल्म में भी बाहुबली को दोनों ही लोगों को मैनेज करना चाहिए था या फिर उन्हें कम से कम अपनी माँ से तो मतभेद नहीं रखना चाहिए था हम छोटे शहरों के भारतीय दर्शक हैं और एक भारतीय दर्शक होने के नाते माँ की गलत बातों का विरोध हमारे कल्चर का हिस्सा नहीं है.
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