देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया कि 31 अक्टूबर तक दिल्ली में पटाखे नहीं बेचे जा सकेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वो एक बार ये तरीका अपना कर ये देखना चाहता है कि क्या वाकई ये फैसला रंग लाता है? क्या दिल्ली में पटाखे बैन करने से पिछले साल कि तुलना में प्रदूषण कम होगा? शायद हां, ज़ाहिर सी बात है दिल्ली में दिवाली के दौरान करोड़ों रुपये के पटाखे फोड़े जाते है.
अगर देश में पटाखों के व्यवसाय की बात की जाए तो करीब 6000 करोड़ रुपये का व्यापार होता है. वहीं दिल्ली में 1000 करोड़ के पटाखों का व्यापार होता है. यानी इस दिवाली पर दिल्ली में 1000 करोड़ के पटाखे नहीं बिकेंगे. अगर बिकेंगे ही नहीं तो फूटेंगे भी नहीं. साफ बात है कि अगर इतने पटाखे दिल्ली में नहीं फूटेंगे तो पिछले साल कि तुलना में इस बार दिवाली पर प्रदूषण में कमी आएगी.
फैक्टरियों से 59 % प्रदूषण
क्या आप जानते हैं कि 2008 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण विभाग द्वारा की गयी जांच में पता चला था कि दिल्ली में कारखानों और फैक्ट्रियों की वजह से वायु प्रदूषण में 59 फीसदी का इजाफा होता है. अगर इन कारखानों और फैक्ट्रियों से दिल्ली में इतना वायु प्रदुषण फैलता है तो इसके लिये आखिर सरकार या कोर्ट ने क्या उपाय निकाले? क्या इसे रोका गया? नहीं, इसे नहीं रोका गया. यानी दिल्ली में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण कारखानों और फैक्ट्रियों से निकलने वाला धूआं भी है.
वाहनों से 18 % प्रदूषण
दिल्ली की सड़कों पर चलने वाले वाहन भी प्रदूषण बढ़ाने में 18 फीसदी भागीदार हैं. वाहनों द्वारा फैलाये गए प्रदूषण को रोकने के लिए मौजूदा दिल्ली सरकार ने पिछले साल ऑड-ईवन का...
देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया कि 31 अक्टूबर तक दिल्ली में पटाखे नहीं बेचे जा सकेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वो एक बार ये तरीका अपना कर ये देखना चाहता है कि क्या वाकई ये फैसला रंग लाता है? क्या दिल्ली में पटाखे बैन करने से पिछले साल कि तुलना में प्रदूषण कम होगा? शायद हां, ज़ाहिर सी बात है दिल्ली में दिवाली के दौरान करोड़ों रुपये के पटाखे फोड़े जाते है.
अगर देश में पटाखों के व्यवसाय की बात की जाए तो करीब 6000 करोड़ रुपये का व्यापार होता है. वहीं दिल्ली में 1000 करोड़ के पटाखों का व्यापार होता है. यानी इस दिवाली पर दिल्ली में 1000 करोड़ के पटाखे नहीं बिकेंगे. अगर बिकेंगे ही नहीं तो फूटेंगे भी नहीं. साफ बात है कि अगर इतने पटाखे दिल्ली में नहीं फूटेंगे तो पिछले साल कि तुलना में इस बार दिवाली पर प्रदूषण में कमी आएगी.
फैक्टरियों से 59 % प्रदूषण
क्या आप जानते हैं कि 2008 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण विभाग द्वारा की गयी जांच में पता चला था कि दिल्ली में कारखानों और फैक्ट्रियों की वजह से वायु प्रदूषण में 59 फीसदी का इजाफा होता है. अगर इन कारखानों और फैक्ट्रियों से दिल्ली में इतना वायु प्रदुषण फैलता है तो इसके लिये आखिर सरकार या कोर्ट ने क्या उपाय निकाले? क्या इसे रोका गया? नहीं, इसे नहीं रोका गया. यानी दिल्ली में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण कारखानों और फैक्ट्रियों से निकलने वाला धूआं भी है.
वाहनों से 18 % प्रदूषण
दिल्ली की सड़कों पर चलने वाले वाहन भी प्रदूषण बढ़ाने में 18 फीसदी भागीदार हैं. वाहनों द्वारा फैलाये गए प्रदूषण को रोकने के लिए मौजूदा दिल्ली सरकार ने पिछले साल ऑड-ईवन का फार्मूला अपनाया था. इसके तहत एक दिन सड़कों पर ऑड नंबर वाली गाड़ियां चलायी गयीं और अगले दिन ईवन नंबर वाली. इस योजना से काफी हद तक प्रदूषण के स्तर पर काबू पाया गया था.
सरकार की ओर से जो भी कोशिशें हुईं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ओर से पहली बार ऐसा कोई ठोस कदम उठाया गया है. कोर्ट के फैसले को लेकर लोगों की नाराजगी की एक वजह ये भी हो सकती है.
पंजाब और हरियाणा में फसल जलाने से प्रदूषण
पंजाब और हरियाणा में फसलों को जलाया जाना भी इस समस्या में तेल झोंकने का काम करता है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में पटाखे बेचना बैन जरूर कर दिया है, मगर, अभी तो पटाखे फूंटे भी नहीं है और दिल्ली में धुंध नज़र आने लगी है. आंखों में जलन होने लगी है. क्या राज्य सरकार और केंद्र सरकार इस समस्या का कोई समाधान निकाल पाएंगी? पिछले साल तो नासा ने भी उत्तर भारत की तस्वीर जारी कर कहा है था कि पंजाब में फसल जलने का धुआं दिल्ली तक पहुंचा है. सैटेलाइट से दिल्ली की साफ तस्वीर लेने में भी मुश्किल आ रही है. यानी दिल्ली में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण पंजाब और हरियाणा में फसलों के जलने से निकलने वाला धुआं भी है. इसे रोका जाना भी बेहद ज़रूरी है.
पिछली दिवाली पर प्रदूषण का स्तर
दिल्ली में पिछले साल प्रदूषण का स्तर काफी खतरनाक था. दिल्ली में पीपीएम 2.5 स्तर 590 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, जबकि इसे होना चाहिए 60. यानी प्रदूषण का स्तर सामान्य से से 10 गुना ज्यादा रहा.
दिल्ली में पीपीएम 10 का स्तर 950 था जबकि उसे 100 होना चाहिए था. यानी सामान्य से 9.5 गुना ज्यादा रहा. चंडीगढ में पीपीएम 2.5 का स्तर 165 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था. फरीदाबाद में पीपीएम 2.5 का स्तर 824 था. यह हरियाणा का सबसे जहरीला शहर है क्योंकि यहां इंडस्ट्रियल एरिया है और वाहनों की आवाजाही भी काफी है.
प्रदूषण को रोका कैसे जाए?
इस बात में कोई दोराय नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से दिल्ली में वायु प्रदूषण पर रोक लगेगी, लेकिन हमें जरूरत है कि इस समस्या पर कोई स्थायी कानून बनाया जाए.
दिल्ली में वाहनों की संख्या पर रोक लगायी जाए. ज्यादा से ज्यादा लोगों को सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करने के लिए मोटिवेट किया जाए. फैक्ट्रियों से निकलने वाले गंदे धुएं का सही तरीके से परीक्षण किया जाए. इस समय ऐसी बहुत सी तकनीकें उपलब्ध हैं, जिनसे निकलने वाले धुएं को साफ़ किया जा सकता है. फैक्ट्रियों को सख्त निर्देश दिए जाएं और इसकी जांच के लिए विशेष दल का गठन किया जाए. इसी के साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों को विद्युत वाहनों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जाए. इस मामले में लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार अवॉर्ड और रिवॉर्ड देने जैसे उपाय आजमा सकती है - और उम्मीद की जानी चाहिये वे कारगर भी होंगे.
इन्हें भी पढ़ें :
पटाखे जलाना देशभक्ति के खिलाफ है क्योंकि ये चीन का माल है!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.