भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में न्यायपालिका को संविधान के ज़रूरी स्तम्भ के रूप में रखा गया है. साथ ही ये भी माना गया है कि बिना न्यायपालिका के भारत जैसे लोकतंत्र को चलाना लगभग असंभव है. बात यदि भारतीय न्यायपालिका पर हो तो मिलता है कि भारतीय न्यायपालिका कॉमन लॉ पर आधारित प्रणाली है। यह प्रणाली अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के समय बनाई थी. इस प्रणाली को 'आम कानून व्यवस्था' के नाम से जाना जाता है जिसमें न्यायाधीश अपने फैसलों, आदेशों और निर्णयों से कानून का विकास करते हैं. ज्ञात हो कि भारत में कई स्तर और विभिन्न प्रकार के न्यायालय हैं.
बहरहाल हम आपको न तो न्यायपालिका की कार्यप्रणाली से अवगत कराने वाले हैं न उसके प्रकार से. हम आपको एक ऐसी खबर से अवगत करा रहे हैं जिसको जानकार आपको भी महसूस होगा कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में प्रमुख मुद्दों को छोड़कर उन चीजों पर काम हो रहा है जिनकी एक आदमी को कोई आवश्यकता नहीं है.
खबर है कि डिजिटलीकरण की तरफ तेजी से कदम बढ़ा रहे भारत के सुप्रीम कोर्ट परिसर को भी डिजिटलाइज कर दिया गया है साथ ही अब पर्यावरण के प्रति सजगता को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट परिसर को पेपर लेस कर दिया गया है. इसके फलस्वरूप अब जजों के आसपास से मुकदमों की मोटी मोटी फाइलों का गट्ठर गायब हो गया है और उसकी जगह कंप्यूटर आ गया है.
बताया जा रहा है कि इस पहल का उद्देश्य जहां एक तरफ कागज की बचत है तो वहीं दूसरी तरफ ये भी माना जा रहा है कि इससे कार्यवाही के दौरान जजों का टाइम बचेगा. निस्संदेह ये एक अच्छी पहल है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए मगर इस पहल को देखकर किसी भी व्यक्ति के मन में चंद प्रश्न उठ सकते हैं. ऐसे प्रश्न जो न तो जजों से जुड़े...
भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में न्यायपालिका को संविधान के ज़रूरी स्तम्भ के रूप में रखा गया है. साथ ही ये भी माना गया है कि बिना न्यायपालिका के भारत जैसे लोकतंत्र को चलाना लगभग असंभव है. बात यदि भारतीय न्यायपालिका पर हो तो मिलता है कि भारतीय न्यायपालिका कॉमन लॉ पर आधारित प्रणाली है। यह प्रणाली अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के समय बनाई थी. इस प्रणाली को 'आम कानून व्यवस्था' के नाम से जाना जाता है जिसमें न्यायाधीश अपने फैसलों, आदेशों और निर्णयों से कानून का विकास करते हैं. ज्ञात हो कि भारत में कई स्तर और विभिन्न प्रकार के न्यायालय हैं.
बहरहाल हम आपको न तो न्यायपालिका की कार्यप्रणाली से अवगत कराने वाले हैं न उसके प्रकार से. हम आपको एक ऐसी खबर से अवगत करा रहे हैं जिसको जानकार आपको भी महसूस होगा कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में प्रमुख मुद्दों को छोड़कर उन चीजों पर काम हो रहा है जिनकी एक आदमी को कोई आवश्यकता नहीं है.
खबर है कि डिजिटलीकरण की तरफ तेजी से कदम बढ़ा रहे भारत के सुप्रीम कोर्ट परिसर को भी डिजिटलाइज कर दिया गया है साथ ही अब पर्यावरण के प्रति सजगता को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट परिसर को पेपर लेस कर दिया गया है. इसके फलस्वरूप अब जजों के आसपास से मुकदमों की मोटी मोटी फाइलों का गट्ठर गायब हो गया है और उसकी जगह कंप्यूटर आ गया है.
बताया जा रहा है कि इस पहल का उद्देश्य जहां एक तरफ कागज की बचत है तो वहीं दूसरी तरफ ये भी माना जा रहा है कि इससे कार्यवाही के दौरान जजों का टाइम बचेगा. निस्संदेह ये एक अच्छी पहल है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए मगर इस पहल को देखकर किसी भी व्यक्ति के मन में चंद प्रश्न उठ सकते हैं. ऐसे प्रश्न जो न तो जजों से जुड़े हैं न वकीलों से बल्कि ये प्रश्न न्याय प्रक्रिया, लंबित मुकदमों और आम आदमी से जुड़े हैं.
जी हां बिल्कुल सही सुना आपने हमें शिकायत सुप्रीम कोर्ट के डिजिटलाइज होने और पेपर लेस होने से नहीं है. हमारी चिंता का कारण भारत की सर्वोच्च न्यायपालिका में लंबित मुकदमे हैं. आपको बताते चलें कि हर माह केवल सुप्रीम कोर्ट में 60,000 से ऊपर मुकदमे लंबित रहते हैं जिनमें कुछ ही हजार मुकदमों की सुनवाई हो पाती है और फिर उन्हें आगे बढ़ा दिया जाता है. आगे बढ़े इन मुकदमों से इस देश की जनता को कितनी परेशानी होती है ये बात किसी से छुपी नहीं है.
अंत में हम यही कहेंगे कि इस देश के एक आम आदमी को इस फैसले का स्वागत करने में तब खुशी होती जब कुछ ऐसा होता जो उसके हित में होता. यानी न्यायपालिका उसके मुकदमे की सुनवाई पर उसे तारीख पे तारीख न देती. उसके मामले तुरंत सुने जाते और उनपर तुरंत कार्यवाही होती. खैर ये देखना हमारे लिए दिलचस्प रहेगा कि जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने अपने परिसर से कागज का सफाया किया है क्या वो भविष्य में उन लंबित मुकदमों पर कार्यवाही करते हुए उनसे छुटकारा पाती है और देश के एक आम आदमी को राहत देती है या नहीं.
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