विकसित देशों में आज भी कुछ लोग भारत या दूसरी और तीसरी दुनिया के लोगों को किस नजर से देखते हैं, इसका उदाहरण ऑस्ट्रेलिया के अखबार 'द ऑस्ट्रेलियन' में छपे एक कार्टून ने दे दिया है. पेरिस में हाल में खत्म हुए क्लाइमेंट चेंज समिट में 196 देश एक राय बनाने में कामयाब रहे और एेतिहासिक समझौता हुआ. विकसित देशों द्वारा यह शर्त भी मानी गई कि वे दूसरे देशों को तकनीकी मदद और धन देंगे ताकि कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लक्ष्य को हासिल किया जा सके.
अब इसे लेकर ऑस्ट्रेलियाई कार्टूनिस्ट बिल लिक ने एक कार्टून बनाया है, जिसमें दिखाया गया है कि भारत के गरीब और भूखे लोग दूसरे देशों से आए सोलर पैनल को खा रहे हैं! यह कार्टून न केवल एक भद्दा मजाक है बल्कि अपने आप में नस्लभेदी भी है.
शायद बिल लिक को मालूम नहीं कि भारत पिछले कुछ वर्षों में विश्व में तकनीक के प्रमुख केंद्र के तौर पर उभरा है. और यहां तकनीक के क्षेत्र में कई शानदार प्रयोग हो रहे हैं. इस कार्टून के सामने आने के बाद बिल लिक ऑस्ट्रेलिया में ट्विटर पर ट्रेंड करने लगे और वहां के कई लोगों ने इस कार्टून को घटिया बताया.
वैसे यह पहली बार नहीं है जब विदेशी अखबारों भारत को इस तरह दिखाया गया है. अभी हाल में जब पेरिस में क्लाइमेट चेंज समिट जारी था तो अमेरिका के अखबार न्यूयार्क टाइम्स में एक विवादित कार्टून छपा. इसमें भारत को एक हाथी के रूप में दिखाया गया जो क्लाइमेट चेंज समिट के रास्ते में रोड़ा बन कर बैठा है. गौरतलब है कि इस पूरे समिट में दौरान भारत को विकसित देशों के बीच किसी 'विलेन' की तरह देखा जा रहा था क्योंकि दूसरी और तीसरी दुनिया के देशों के हितों को लेकर भारत ही सबसे ज्यादा मुखर रहा.
इससे पहले मार्स मिशन पर जब पूरी दुनिया भारत की वाहवाही कर रही थी तो भी अमेरिका के अखबार न्यूयार्क टाइम्स में छपे उस कार्टून को भूले तो नहीं है. जिसमें एक भारतीय को गाय के साथ 'स्पेस क्लब' का दरवाजा खटखटाते हुए दिखाया गया था. कई लोगों ने इस कार्टून की खूब आलोचना की. बाद में अखबार ने कहा कि उसकी कोशिश किसी की भावनाओं को चोट पहुंचाने की नहीं थी और वह अपने पाठकों से माफी मांगता है.
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