जब तमाम समाचार वेबसाइटों पर यह खबर दिखी तो झेंप गया. खबर यह कि दारुल उलूम देवबंद ने निर्देश जारी किया है कि सभी मुस्लिम 15 अगस्त को धूमधाम से मनाएं. यह निर्देश मदरसों और इस्लामी ऑर्गनाइजेशन्स के लिए जारी किए गए हैं. दारुल उलूम ने सभी मुसलमानों से अपने घरों पर तिरंगा फहराने को कहा है.
15 अगस्त भारत की आजादी का दिन है. इस देश से जुड़े हर व्यक्ति को इस दिन पर गुमान है. हर कोई इसे अपने ढंग से मनाता ही है. फिर भला ऐसे निर्देश की जरूरत क्या है? मुझे गर्व है कि हम पाकिस्तान या उन अन्य देशों जैसे नहीं जहां धार्मिक उन्माद है. लेकिन अब सोच रहा हूं कि इतने वर्षों में हमने ऐसा कैसा समाज तैयार किया है जहां हमारे उन दोस्तों को आज भी कदम-कदम पर अपनी देशभक्ति जाहिर करनी पड़ती है जो हिंदू नहीं हैं.
धर्मनिरपेक्षता पर सवाल
विभाजन और दंगों के बीच जब 1947 में हमने आजादी हासिल की तो यह तय किया कि अपनी गंगा-जमुनी तहजीब और सदियों पुरानी संस्कृति को देखते हुए एक ऐसा समाज तैयार करेंगे जहां सभी के लिए समान अवसर होंगे. कोई भेदभाव नहीं होगा.
संविधान में इसके लिए प्रावधान दिए गए और आगे जाकर धर्मनिरपेक्ष शब्द भी जुड़ा. शब्द तो हमने जोड़ लिया लेकिन क्या समाजिक स्तर पर भी हम इस सोच को अपनाने में कामयाब रहे? क्या धर्मनिरपेक्षता और देशभक्ति को हम आपस में जोड़ने में कामयाब रहे?
असल में इन सवालों का जवाब बहुत उलझा हुआ मिलेगा क्योंकि हमारी देशभक्ति की परिभाषा ही बहुत उलझी हुई है. हम वंदे मातरम गाने या नहीं गाने वालों को देखकर देशभक्ति की इमेज गढ़ने लगते हैं. किसी दिल में कितनी किलो देशभक्ति है, उसे हम योगा और सूर्य नमस्कार से तौलने लगते हैं. किसी फिल्म में एक मुस्लिम अभिनेता का रोल देखकर उसके देशभक्त होने या नहीं होने की बात करने लगते हैं. किसी का पहनावा और फिर नाम, यह तो शायद हमारे लिए देशभक्ति का सबसे बड़ा सबूत बन जाता है.
दारुल ने क्यों दिया फरमान
दारुल उलूम के अनुसार हमारे देश में कई...
जब तमाम समाचार वेबसाइटों पर यह खबर दिखी तो झेंप गया. खबर यह कि दारुल उलूम देवबंद ने निर्देश जारी किया है कि सभी मुस्लिम 15 अगस्त को धूमधाम से मनाएं. यह निर्देश मदरसों और इस्लामी ऑर्गनाइजेशन्स के लिए जारी किए गए हैं. दारुल उलूम ने सभी मुसलमानों से अपने घरों पर तिरंगा फहराने को कहा है.
15 अगस्त भारत की आजादी का दिन है. इस देश से जुड़े हर व्यक्ति को इस दिन पर गुमान है. हर कोई इसे अपने ढंग से मनाता ही है. फिर भला ऐसे निर्देश की जरूरत क्या है? मुझे गर्व है कि हम पाकिस्तान या उन अन्य देशों जैसे नहीं जहां धार्मिक उन्माद है. लेकिन अब सोच रहा हूं कि इतने वर्षों में हमने ऐसा कैसा समाज तैयार किया है जहां हमारे उन दोस्तों को आज भी कदम-कदम पर अपनी देशभक्ति जाहिर करनी पड़ती है जो हिंदू नहीं हैं.
धर्मनिरपेक्षता पर सवाल
विभाजन और दंगों के बीच जब 1947 में हमने आजादी हासिल की तो यह तय किया कि अपनी गंगा-जमुनी तहजीब और सदियों पुरानी संस्कृति को देखते हुए एक ऐसा समाज तैयार करेंगे जहां सभी के लिए समान अवसर होंगे. कोई भेदभाव नहीं होगा.
संविधान में इसके लिए प्रावधान दिए गए और आगे जाकर धर्मनिरपेक्ष शब्द भी जुड़ा. शब्द तो हमने जोड़ लिया लेकिन क्या समाजिक स्तर पर भी हम इस सोच को अपनाने में कामयाब रहे? क्या धर्मनिरपेक्षता और देशभक्ति को हम आपस में जोड़ने में कामयाब रहे?
असल में इन सवालों का जवाब बहुत उलझा हुआ मिलेगा क्योंकि हमारी देशभक्ति की परिभाषा ही बहुत उलझी हुई है. हम वंदे मातरम गाने या नहीं गाने वालों को देखकर देशभक्ति की इमेज गढ़ने लगते हैं. किसी दिल में कितनी किलो देशभक्ति है, उसे हम योगा और सूर्य नमस्कार से तौलने लगते हैं. किसी फिल्म में एक मुस्लिम अभिनेता का रोल देखकर उसके देशभक्त होने या नहीं होने की बात करने लगते हैं. किसी का पहनावा और फिर नाम, यह तो शायद हमारे लिए देशभक्ति का सबसे बड़ा सबूत बन जाता है.
दारुल ने क्यों दिया फरमान
दारुल उलूम के अनुसार हमारे देश में कई लोग यह मानते हैं कि मदरसों या इस्लामी संस्थाओं में 15 अगस्त या 26 जनवरी नहीं मनाया जाता है. जबकि यह सच नहीं है. इसलिए दारुल उलूम को विशेष तौर पर यह निर्देश जारी करने पड़े. कई और मुस्लिम संगठनों ने भी दारुल उलूम के इस निर्देश का समर्थन किया है.
कितनी अजीब बात है कि हम दुनिया भर में धर्मनिरपेक्षता का ढिंढोरा पीटते रहते हैं और इसके बवाजूद किसी अखबार के पन्ने पर हमें ऐसी खबर देखने को मिलती है. वैसे, आखिर में सवाल दारुल उलूम से भी कि वे ऐसा क्यों सोचते हैं कि उनके कहने या नहीं कहने से ही मुसलमान 15 अगस्त मनाएगा.
स्वतंत्रता दिवस हिंदू या मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि सब के लिए है. आप कोई फरमान जारी करें या नहीं हम सब उसे उसी शिद्दत से मनाते आएंगे, जैसा अब तक मनाते आए हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.