बच्चे मन के सच्चे होते हैं. बच्चों का कोमल मन किसी पर भी बड़ी आसानी से भरोसा कर लेता है. उनके इसी भोलपन का फायदा उठाकर कुछ विकृत मानसिकता के लोग उन्हें अपना शिकार बना लेते हैं. यौन उत्पीड़न केवल युवाओं तक ही सीमित नहीं होता बल्कि बच्चों को भी अपनी जद में ले लेता है. और बच्चों के साथ अत्याचार करने वालों में ज्यादातर उनके जान-पहचान वाले, पड़ोसी या रिश्तेदार ही होते हैं.
दिल्ली की कोर्ट में ऐसा ही बाल यौन शोषण के मामले की सुनवाई हो रही थी. 10 साल की पीड़िता के साथ उसके अंकल अख्तर अहमद ने दो साल पहले कई बार रेप किया. पीड़िता मूलत: कोलकाता की रहने वाली थी, उसका पिता एक शराबी था और मां की मौत हो चुकी थी. बच्ची की आंटी उसे देखभाल के लिए दिल्ली ले आई, उस समय बच्ची की उम्र 8 साल थी. यहीं से बच्ची के बुरे दिनों की शुरूआत हो गई. उसकी आंटी उससे दूसरे घरों में काम करवाने लगी. और चाचा ने कई बार उसका रेप किया. एक दिन मौका देखकर लड़की घर से भाग गई.
पीड़िता के चाचा को जून 2016 में गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद उसके वकील ने कोर्ट में कहा था कि लड़की पर उसके चाचा को फंसाने के लिए दबाव बनाया गया है जिस कारण से उसकी गवाही को सबूत नहीं माना जा सकता. लेकिन बच्ची के बनाए एक स्केच ने कोर्ट को सबूत दे दिया. जी हां बच्ची के बनाए स्केच को कोर्ट ने सबूत माना और अपराधी को 5 साल के कैद की सजा सुनाई.
मामले की सुनवाई के दौरान पीड़िता ने पेपर पर ब्लैक कलर के क्रेयॉन से एक खाली घर को स्केच किया. इसमें एक लड़की हाथ में गुब्बारा लिए खड़ी है और उसके पास एक कपड़ा जमीन पर गिरा हुआ है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने इसे लड़की की गवाही माना. उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा, 'अगर इस ड्रॉइंग को तथ्य और केस की परिस्थिति मानी जाए, इससे यह...
बच्चे मन के सच्चे होते हैं. बच्चों का कोमल मन किसी पर भी बड़ी आसानी से भरोसा कर लेता है. उनके इसी भोलपन का फायदा उठाकर कुछ विकृत मानसिकता के लोग उन्हें अपना शिकार बना लेते हैं. यौन उत्पीड़न केवल युवाओं तक ही सीमित नहीं होता बल्कि बच्चों को भी अपनी जद में ले लेता है. और बच्चों के साथ अत्याचार करने वालों में ज्यादातर उनके जान-पहचान वाले, पड़ोसी या रिश्तेदार ही होते हैं.
दिल्ली की कोर्ट में ऐसा ही बाल यौन शोषण के मामले की सुनवाई हो रही थी. 10 साल की पीड़िता के साथ उसके अंकल अख्तर अहमद ने दो साल पहले कई बार रेप किया. पीड़िता मूलत: कोलकाता की रहने वाली थी, उसका पिता एक शराबी था और मां की मौत हो चुकी थी. बच्ची की आंटी उसे देखभाल के लिए दिल्ली ले आई, उस समय बच्ची की उम्र 8 साल थी. यहीं से बच्ची के बुरे दिनों की शुरूआत हो गई. उसकी आंटी उससे दूसरे घरों में काम करवाने लगी. और चाचा ने कई बार उसका रेप किया. एक दिन मौका देखकर लड़की घर से भाग गई.
पीड़िता के चाचा को जून 2016 में गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद उसके वकील ने कोर्ट में कहा था कि लड़की पर उसके चाचा को फंसाने के लिए दबाव बनाया गया है जिस कारण से उसकी गवाही को सबूत नहीं माना जा सकता. लेकिन बच्ची के बनाए एक स्केच ने कोर्ट को सबूत दे दिया. जी हां बच्ची के बनाए स्केच को कोर्ट ने सबूत माना और अपराधी को 5 साल के कैद की सजा सुनाई.
मामले की सुनवाई के दौरान पीड़िता ने पेपर पर ब्लैक कलर के क्रेयॉन से एक खाली घर को स्केच किया. इसमें एक लड़की हाथ में गुब्बारा लिए खड़ी है और उसके पास एक कपड़ा जमीन पर गिरा हुआ है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने इसे लड़की की गवाही माना. उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा, 'अगर इस ड्रॉइंग को तथ्य और केस की परिस्थिति मानी जाए, इससे यह पता चलता है कि उसके कपड़े को उतारकर उसके साथ यौन शोषण हुआ है, इसका उसके दिमाग पर असर हुआ है जो कि सबूत के रूप में पेश हुआ है.' जज ने कहा कि यह उस घटना की व्याख्या के लिए काफी है, 'अंतः मैं पीड़िता को सक्षम गवाह मानता हूं.'
2016 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने पहली बार इस बात को स्वीकार किया था कि बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण में ज्यादातर अपराधी जान-पहचान वाले ही होते हैं. NCRB के आंकड़ों के मुताबिक देश में पोस्को एक्ट के अंतर्गत 2014 में बाल यौन-शोषण के 8,904, 2015 में 14,913 बाल उत्पीड़न के मामले दर्ज हुए. वहीं 2016 में बाल शोषण के केसों में बढ़ोतरी देखी गई.
बच्चों के खिलाफ अपराध में उत्तर प्रदेश ने 3,078 केसों के साथ पहले नंबर पर है. इसके बाद 1,687 केस के साथ मध्य-प्रदेश दूसरे और 1,544 केस के तमिलनाडु तीसरे नंबर पर है. सबसे दुखद ये है कि 94.8 प्रतिशत रेप केसों में बच्चों का अपराधी कोई अनजाना व्यक्ति नहीं बल्कि जान-पहचान वाला या रिश्तेदार ही होता है. जान-पहचान वालों में सबसे ज्यादा संख्या (3,149) या 35.8 प्रतिशत के साथ पड़ोसियों की है. 10 प्रतिशत केसों में बच्चों का रेप में खुद उनके घरवालों का हाथ होता है.
ऐसा नहीं है कि अपने समाज की ये भयानक तस्वीर हमें पता नहीं थी लेकिन दिल्ली कोर्ट ने बच्ची के स्केच को सबूत मानकर बाल-मनोविज्ञान के प्रति जिस संजीदगी का परिचय दिया है वो काबिले-तारीफ है. आज के समय में जरूरत सिर्फ कोर्ट के संवेदनशील होने की नहीं बल्कि घर परिवार वालों को भी बच्चों की भावनाओं और उनके रोजाना के व्यवहार के प्रति सावधान रहने की है.
ये भी पढ़ें-
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.