राम रहीम का जन्म भारत-पाकिस्तान सीमा के निकट राजस्थान के श्रीगंगानगर के जट सिख परिवार में 15 अगस्त 1967 को हुआ था. राम रहीम के पिता मघर सिंह लंबरदार थे. यहां बड़े जमींदारों को लंबरदार कहते हैं. मघर सिंह के पास 6 मुरबा यानी 150 बीघा जमीन थी. उस वक्त वे इलाके के बड़े दबदबे वाले माने जाते थे मगर मघर सिंह और उनकी पत्नी नसीब कौर को शादी के सात साल बाद भी कोई संतान नही हो रही थी. उस वक्त सिरसा के बाबा सतनाम का प्रभाव इलाके में बढ़ रहा था. गांव वाले अक्सर ट्रैकटरों में 200 किमी. दूर बाबा सतनाम के सिरसा आश्रम में जाते थे. बाबा सतनाम के चमत्कार की बातें सुनकर राम रहीम की मां नसीब कौर भी बाबा सतनाम से जुड़ गईं. उसके बाद मघर सिंह और नसीब कौर के घर उनकी इकलौती संतान गुरमीत पैदा हुआ.
अपने वारिस को पाकर मघर सिंह ने गांव में बड़ा जलसा रखा जिसमें बाबा सतनाम भी आए. बाबा सतनाम ने ही सात साल की उम्र में गुरमीत सिंह को राम रहीम इंसा नाम दिया था. उस वक्त गांव का सरपंच सबको लेकर जाता था जिसका खर्चा रामरहीम के पिता मघर सिंह हीं उठाते थे. रामरहीम भी उनके साथ सिरसा आश्रम में जाने लगा. रामरहीम ने दसवीं तक की पढ़ाई अपने गांव गुरुसर मोड़िया के सरकारी स्कूल में हीं की लेकिन उसके बाद पढ़ाई छोड़ ज्यादा समय बाबा के सतनाम आश्रम में हीं रहने लगा.
बेटे का मन वैराग्य की तरफ न जाए इसलिए पिता ने 18 साल की उम्र में हीं रामरहीम की शादी कर दी लेकिन इसी बीच बाबा सतनाम बिमार पड़ गए. बाबा सतनाम को इलाज के लिए बीकानेर हास्पिटल में लाया गया तब राम रहीम ने पैसे और अपनी मेहनत से बाबा सतनाम की खूब सेवा की. राम रहीम की इसी गुरु सेवा से खुश होकर बाबा सतनाम ने इसे डेरा सच्चा सौदा की गद्दी दी थी. बाबा जब ज्यादा बीमार रहने लगे तो बीकानेर में हीं 1990 में हीं देश भर के सभी अनुयायियों को बुलाकर महज 23 साल की उम्र में...
राम रहीम का जन्म भारत-पाकिस्तान सीमा के निकट राजस्थान के श्रीगंगानगर के जट सिख परिवार में 15 अगस्त 1967 को हुआ था. राम रहीम के पिता मघर सिंह लंबरदार थे. यहां बड़े जमींदारों को लंबरदार कहते हैं. मघर सिंह के पास 6 मुरबा यानी 150 बीघा जमीन थी. उस वक्त वे इलाके के बड़े दबदबे वाले माने जाते थे मगर मघर सिंह और उनकी पत्नी नसीब कौर को शादी के सात साल बाद भी कोई संतान नही हो रही थी. उस वक्त सिरसा के बाबा सतनाम का प्रभाव इलाके में बढ़ रहा था. गांव वाले अक्सर ट्रैकटरों में 200 किमी. दूर बाबा सतनाम के सिरसा आश्रम में जाते थे. बाबा सतनाम के चमत्कार की बातें सुनकर राम रहीम की मां नसीब कौर भी बाबा सतनाम से जुड़ गईं. उसके बाद मघर सिंह और नसीब कौर के घर उनकी इकलौती संतान गुरमीत पैदा हुआ.
अपने वारिस को पाकर मघर सिंह ने गांव में बड़ा जलसा रखा जिसमें बाबा सतनाम भी आए. बाबा सतनाम ने ही सात साल की उम्र में गुरमीत सिंह को राम रहीम इंसा नाम दिया था. उस वक्त गांव का सरपंच सबको लेकर जाता था जिसका खर्चा रामरहीम के पिता मघर सिंह हीं उठाते थे. रामरहीम भी उनके साथ सिरसा आश्रम में जाने लगा. रामरहीम ने दसवीं तक की पढ़ाई अपने गांव गुरुसर मोड़िया के सरकारी स्कूल में हीं की लेकिन उसके बाद पढ़ाई छोड़ ज्यादा समय बाबा के सतनाम आश्रम में हीं रहने लगा.
बेटे का मन वैराग्य की तरफ न जाए इसलिए पिता ने 18 साल की उम्र में हीं रामरहीम की शादी कर दी लेकिन इसी बीच बाबा सतनाम बिमार पड़ गए. बाबा सतनाम को इलाज के लिए बीकानेर हास्पिटल में लाया गया तब राम रहीम ने पैसे और अपनी मेहनत से बाबा सतनाम की खूब सेवा की. राम रहीम की इसी गुरु सेवा से खुश होकर बाबा सतनाम ने इसे डेरा सच्चा सौदा की गद्दी दी थी. बाबा जब ज्यादा बीमार रहने लगे तो बीकानेर में हीं 1990 में हीं देश भर के सभी अनुयायियों को बुलाकर महज 23 साल की उम्र में गुरमीत राम रहीम को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया.
गुरुसर मोड़िया के सरकारी स्कूल में गुरमीत राम रहीम को पढ़ाने वाले टीचर रुप सिंह बुजुर्ग हो चुके हैं लेकिन उन्हें अब भी याद है कि गुरमीत बहुत हीं चंचल बच्चा था. बाबा के बलात्कारी होने पर उनके गुरु कहते हैं हमारी शिक्षा तो ऐसी नहीं थी. फिलहाल इस सेकेंडरी स्कूल में 800 बच्चे पढ़ते हैं. जिन्हें गुरमीत राम रहीम मदद करता है.
राम रहीम के अपने साध्वी के बलात्कार के आरोप में जेल जाने के बाद उनके गांव राजस्थान के श्रीगंगानगर के गुरुसर मोड़िया में सन्नाटा पसरा है. राम रहीम के पैतृक निवास पर उसके चाचा और चाची अकेले बैठे हैं. राम रहीम की चाची रणजीत कौर कह रही हैं कि हमें ये दिन देखना पड़ेगा हमने ऐसा नहीं सोचा था. चाचा गुरुबख्स सिंह बताते हैं कि फैसला सुनने से पहले आस-पास के 800 लोग गांव में आए थे लेकिन जैसे ही हिंसा की खबर आई सब ट्रैक्टर ट्रालियों में भरकर वापस चले गए.
गांव वाले बताते हैं कि राम रहीम अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए 6 महीने पहले गांव आया था. वो पहले अक्सर आता था लेकिन अब कम आता है. गांव में राम रहीम के बचपन का दोस्त लखपत बताता है कि गुरमीत राम रहीम ऐसा नहीं कर सकते हैं, हमें विश्वास है कि वो ऊपरी अदालत से छूट जाएगा. लेकिन गांव के ज्यादा लोग चुप रहना ही बेहतर समझ रहे हैं. कोई भी इस मसले पर ज्यादा नहीं बता रहा है.
उस वक्त पंजाब और हरियाणा में केंद्र सरकार की सिंचाई की योजनाओं की वजह भरपूर पानी की वजह से खेती की बेहद उपजाऊ जमीनें मिल रही थीं. लेकिन समाज का एक वर्ग गरीबी और पिछड़ेपन में था. बाबा सतनाम इन्हें हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई की पहचान से आजाद कर समाज में एक स्वाभिमानी जगह दे रहे थे. इसी बीच सतनाम को टीबी हो गया और बीकानेर के अस्पताल में लाया गया. आश्रम में पैसे और ताकत दो लोगों के पास थी गुरमीत राम रहीम और गुरजंट सिंह के पास. लोग कहते हैं कि रामरहीम ने चालाकी से गुरजंट को आतंकी घोषित करवा दिया और एक दिन उसकी लाश मिली.
यहां से रामरहीम ने आश्रमों के विस्तार की शुरुआत की. शहरों के कच्ची बस्तियों को अपना शिकार बनाया. गरीब, दलित और पिछड़े इसके आजाद होने के ख्यालात के कायल बन गए. कम पढ़े-लिखे इस वर्ग को चमत्त्कार दिखाना और उनपर अपना प्रभाव जमाना राम रहीम के लिए आसान था और इसमें वो सफल भी रहा. गरीबों को मुफ्त शिक्षा, इलाज और खेती के सरकारी नुस्खे जहां फेल हो रहे थे वहीं फेल होते सिस्टम का फायदा राम रहीम ने उठाया और समाज के अंदर की बेचैनी को अपने पक्ष में खूब भुनाया.
अब सवाल है कि जिन्हें लोग बलात्कारी बाबा के गुंडे बता रहे हैं वो आखिर क्यों इस तरह के बाबा के लिए जान दे दे रहे हैं. आपके लिए आपके घरवाले जान दे या न दें राम रहीम के लिए 37 लोगों ने जान दे दी. वो कौन सा गुस्सा था जिसकी आग में बाबा के भक्त सबकुछ जला देना चाह रहे थे. वो कौन सी समूह की ताकत थी जिसने मीडिया के इतनी भारी-भरकम ओबी वैन को पलट डाला. इसके लिए हमें समझना होगा कि चाहे अमेरिका के काले लोगों का आंदोलन हो या फिर यूपी से सहारनपुर के दलितों का, ये लोग हिंसक क्यों हो जाते हैं. ये गुंडे नही है. हम इनकी मानसिक स्थिति का अंदाजा सतही विश्लेषण से नहीं लगा सकते हैं. दरअसल सदियों से शोषित इस वर्ग को अब भी जरा सी आहट पर सबकुछ छिन जाने का डर समा जाता है, जो बड़ी मुश्किल से पाया है. जब एक डर दूसरे डर के विरुद्ध होता है तो ही युद्ध होता है. ताकतवर लोग अक्सर हिंसक नही होते हैं बल्कि कमजोर और असुरक्षित महसूस करनेवाले लोग समूह में हमलावार हो जाते हैं.
डेरा की परंपरा हिंदू धर्म के नाम पर राजनीति करनेवाली बीजेपी और सिखों के नाम पर राजनीति करनेवाली अकालियों की राजनीति के लिए कभी मुफीद नहीं रही. इसका फायदा कांग्रेस को मिला और कांग्रेस ने इस परंपरा को इन इलाकों में काफी पाला पोषा, मगर वक्त के साथ इनका स्वरुप बदलने लगा. पैसा और पावर इनहें करप्ट बनाते चले गए. कहते हैं अपने देश में जस्टिस तभी होता है जब सामने वाला प्रिज्यूडिश होता है. हुआ यही. न जाने कितने गुमनान पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को रोज भेजे जाते हैं मगर इन्हें कौन पढता है. मगर वाजेपयी की अकाली समर्थित एनडीए की सरकार को कांग्रेस के इस झंडाबरदार से हिसाब करने का मौका मिला तो केस सीबीआई को सौंप दिया. सीबीआई ने जांच शुरु की तो रामर हीम को कांग्रेस से राहत की उम्मीद थी. मनमोहन जब अपनी सरकार बचाने वाले अमर सिंह को जेल जाने से नहीं बचा पाए और सोनिया गांधी लालू यादव तक की नेतागिरी हमेशा के लिए छिनवा दी तो बाबा राम रहीम भला क्या करते. सो अमिताभ बच्चन की तरह नाउम्मीद होकर बाबा ने बीजेपी को टटोलना शुरु कर दिया और बीजेपी नेताओं की डेरा शरणम गच्छामि का फेरा शुरु हो गया. इसबीच देश में बीजेपी की लहर चली तो बाबा राम रहीम बीजेपी के कमल पर जा बैठे. मगर बीजेपी की विचारधारा धर्म से मुक्ति की डेरों की विचारधारा कभी रास नहीं आई. डेरों की समाप्ति का सीधा दीर्घ लाभ बीजेपी को ही मिलनेवाला है.
आज भी मैं जगतपुरा के कच्ची बस्ती में गया था और बाबा के भक्तों से मिलता रहता हूं. उनसे अगर आप सवाल करें कि ऐसा क्या है इस बाबा में जो तुम लोग जान देते हो. वो कभी भी कोई सीधा-साफ उत्तर नहीं देते है, मगर उनके भाव देखकर ऐसा लगता है कि मानो कह रहे हों कि हमें कौन सम्मान के साथ विप्रवादियों के अड्डे पर बैठाएगा. इसलिए भक्तों को गुंडा कहने से पहले और उनपर गोली चलाने से पहले हमें अपने समाज को सुधारना होगा वर्ना एक राम रहीम को जेल में ड़ालकर हम इनका कुछ नही उखाड़ सकते हैं.
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