याद कीजिए 2010 में कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन से पहले दुनिया भर से आने वाले मेहमानों के स्वागत के लिए कैसे सज-धज कर दिल्ली अपनी भव्यता दिखाने को तैयार थी. लेकिन एक बात ने सरकार को चिंतित कर रखा था और वह थी शहर में मौजूद हजारों भिखारियों की संख्या. फिर क्या था सरकार ने आनन-फानन में शहर के हजारों भिखारियों को खेलों के आयोजन तक उनके गृह राज्य वापस भेज दिया. सरकार नहीं चाहती थी कि विदेशी मेहमान कॉमनवेल्थ का आयोजन करने वाले इस चमकते शहर के पीछे की गरीबी का सच जान लें.
यह समस्या दिल्ली ही नहीं पूरे देश की है. हाल ही में आए 2011 की जनगणना के डेटा के मुताबिक देश में में कुल 3.72 लाख भिखारी हैं. लेकिन इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है कि उनमें से 21 फीसदी 12वीं पास हैं और कुछ हजार भिखारी तो ग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट भी हैं.
हालांकि ये कह पाना मुश्किल है कि भिखारियों की जो संख्या सरकार बता रही वह कितनी सही है. इसी साल अगस्त में राज्यसभा में सरकार ने कहा था कि देश में भिखारियों की संख्या 4,13,670 है, जिनमें से 2.2 लाख पुरुष और 1.9 लाख महिलाएं शामिल हैं.ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या सरकार देश के इन चार लाख भिखरियों, या कहें नागरिकों या कहें वोटरों का एक योजनाबद्ध भविष्य नहीं तय कर सकती?
कैसे खत्म की जा सकती है यह समस्याः
-जब दिल्ली, मुंबई में खाने-कमाने के लिए लोग पूरे देशभर से आ सकते हैं, क्या कोई ऐसी जगह नहीं बनाई जा सकती जहां देशभर के 4 लाख भिखारियों को लाकर एक सम्मानजनक काम से जोड़ा जा सके.
-यदि 4 लाख में से 65 हजार पढ़े-लिखे हैं तो उन्हें बाकी भिखारियों को पढ़ाने का जिम्मा सौंप दिया जाए.
-जो अनपढ़ हैं, उन्हें किसी कौशल से जोड़कर खाने-कमाने लायक बनाया जा सकता है.
-करोड़ों के खर्च से जारी शिक्षा, स्किल डेवलपमेंट और तमाम योजनाओं में पैसा है. इसके अलावा भिक्षावृत्ति रोकने के नाम पर हो रही करोड़ों रुपए की बर्बादी भी रोकी जा...
याद कीजिए 2010 में कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन से पहले दुनिया भर से आने वाले मेहमानों के स्वागत के लिए कैसे सज-धज कर दिल्ली अपनी भव्यता दिखाने को तैयार थी. लेकिन एक बात ने सरकार को चिंतित कर रखा था और वह थी शहर में मौजूद हजारों भिखारियों की संख्या. फिर क्या था सरकार ने आनन-फानन में शहर के हजारों भिखारियों को खेलों के आयोजन तक उनके गृह राज्य वापस भेज दिया. सरकार नहीं चाहती थी कि विदेशी मेहमान कॉमनवेल्थ का आयोजन करने वाले इस चमकते शहर के पीछे की गरीबी का सच जान लें.
यह समस्या दिल्ली ही नहीं पूरे देश की है. हाल ही में आए 2011 की जनगणना के डेटा के मुताबिक देश में में कुल 3.72 लाख भिखारी हैं. लेकिन इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है कि उनमें से 21 फीसदी 12वीं पास हैं और कुछ हजार भिखारी तो ग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट भी हैं.
हालांकि ये कह पाना मुश्किल है कि भिखारियों की जो संख्या सरकार बता रही वह कितनी सही है. इसी साल अगस्त में राज्यसभा में सरकार ने कहा था कि देश में भिखारियों की संख्या 4,13,670 है, जिनमें से 2.2 लाख पुरुष और 1.9 लाख महिलाएं शामिल हैं.ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या सरकार देश के इन चार लाख भिखरियों, या कहें नागरिकों या कहें वोटरों का एक योजनाबद्ध भविष्य नहीं तय कर सकती?
कैसे खत्म की जा सकती है यह समस्याः
-जब दिल्ली, मुंबई में खाने-कमाने के लिए लोग पूरे देशभर से आ सकते हैं, क्या कोई ऐसी जगह नहीं बनाई जा सकती जहां देशभर के 4 लाख भिखारियों को लाकर एक सम्मानजनक काम से जोड़ा जा सके.
-यदि 4 लाख में से 65 हजार पढ़े-लिखे हैं तो उन्हें बाकी भिखारियों को पढ़ाने का जिम्मा सौंप दिया जाए.
-जो अनपढ़ हैं, उन्हें किसी कौशल से जोड़कर खाने-कमाने लायक बनाया जा सकता है.
-करोड़ों के खर्च से जारी शिक्षा, स्किल डेवलपमेंट और तमाम योजनाओं में पैसा है. इसके अलावा भिक्षावृत्ति रोकने के नाम पर हो रही करोड़ों रुपए की बर्बादी भी रोकी जा सकेगी.-
भीख मांगवाने वाले माफिया से भी निजात मिल जाएगी, यदि किसी एक ही जगह पर ऐसे लोगों को लाकर बसा दिया गया तो.
-गरीबी और शारीरिक अपंगता के कारण भीख मांगने को मजबूर लोगों को राज्यवार ऐसे ही पॉकेट बनाकर स्वावलंबी बनाया जा सकता है.
क्योंकि दंडनीय अपराध बनाने पर भी नहीं रुका है भीख मांगनाः
आपको शायद जानकार हैरानी होगी लेकिन ये सच है. बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग ऐक्ट 1959 के मुताबिक सार्वजनिक जगहों पर भीख मांगना दंडनीय अपराध है. इसमे कहा गया है कि सार्वजनिक जगहों पर नाचकर, गाकर या किसी और तरीके से भीख मांगना अपराध है. इसके तहत पहली बार भीख मांगते हुए पकड़े जाने पर एक वर्ष और दूसरी बार पकड़े जाने पर 3 से 10 वर्ष कैद की सजा हो सकती है. राजधानी दिल्ली में इस ऐक्ट को 1960 में लागू किया गया था. साथ ही देश के कई राज्यों में भी ये एक्ट लागू है.
इस ऐक्ट के मुताबिक किसी भी भिखारी को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है और बिना किसी ट्रायल के ही जेल या मान्यता प्राप्त आश्रय घरों में भेजा जा सकता है.प्रधानमंत्री मोदी कुछ हटकर करने की बात कहते हैं. शायद वे सकारात्मक ढंग से देश को भिक्षावृत्ति से मुक्ति दिलाने का प्रयास भी करेंगे. वैसे ही जैसे एक समयबद्ध कार्यक्रम के तहत गांव गांव बिजली पहुंचाने की बात कही गई है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.