पाकिस्तान में भगतसिंह को लेकर दो धड़े हमेशा से आमने-सामने रहे. एक वह जो भगत सिंह को हिंदू या मुस्लिम नहीं देश के लिए कुर्बान होने वाला शहीद मानता है. और दूसरा धड़ा उन कट्टरपंथियों का है, जो उन्हें सिर्फ सिक्खों का हीरो मानता है. लाहौर सेंट्रल जेल में ही भगतसिंह को 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी. 1961 में वह जेल जमींदोज कर दी गई. जहां फांसी दी जाती थी, वहां अब सादमान चौक है. उसी चौक पर शहीदी दिवस की पूर्व संध्या पर लाहौर के 50 से अधिक युवा पहुंचे. ये सभी पंजाबी नाटकों के लेखक, आलोचक और पॉलिटिकल एक्टिविस्ट थे. उनकी आपसी चर्चाओं में मौटे तौर पर ये 5 बातें सामने आईं...
1. कार्यक्रम के सूत्रधार मामोना अमजद ने कहा कि लोगों को भगतसिंह के संघर्ष और बलिदान के बारे में बहुत कम पता है. इसके बावजूद कि भगत सिंह पाकिस्तान के फैसलाबाद जिले की जारांवाला तहसील के बंगा गांव में जन्मे थे.2. पाकिस्तान में इतिहास की किताबें भगत सिंह को लेकर या तो चुप्पी साधे हैं या फिर उन्हें सिख हीरो के रूप में रेखांकित करती हैं.3. तारीक बिन जियाद कॉलोनी के रहवासी 24 साल के अब्दुल मुकादम कहते हैं कि उन्होंने भगतसिंह का नाम पहली बार सुना. और अब वे महसूस कर रहे हैं कि वे इतिहास के एक अहम चेप्टर से महरूम रहे. 4. चाक की रहने वाली समीना कहती हैं कि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में भगत सिंह बेहद प्रभावशाली और करिश्माई व्यक्तित्व वाले लगते हैं. चे गुआरा की तरह. लेकिन पाकिस्तान में ऐसे किरदार कम्युनिल हिस्ट्री के चलते दफन होकर रह गए.5. लख्त पाशा के मुताबिक भगत सिंह भारत ही नहीं, पाकिस्तान में भी शहीद कहा जाना चाहिए. क्योंकि उनकी शहादत किसी निजी फायदे या धर्म विशेष के लिए नहीं थी. बल्कि वे तो पिछड़े और मजलूम लोगों की खातिर फांसी पर चढ़ गए थे.
अंत में एक प्रस्ताव रखा गया, जिसमें पाकिस्तान की पंजाब सरकार से मांग की गई कि वह सादमान चौक पर क्रांतिकारी भगतसिंह की प्रतिमा लगाए जाने की मांग की गई.
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