फा आयना तड़ हबून (Fa ayna tadh haboon). बहुत मुश्किल है कुरान के इन शब्दों के पीछे की भावना को समझना, जब अल्लाह इतने प्यार और करुणा के साथ हमसे पूछते हैं, 'तुम किधर जा रहे हो?' जिस चिंता के साथ हमसे हमारे अपनाए रास्ते के बारे में पूछा गया है, अगर इसे सही से सुना और समझा गया तो बड़ी आसानी से हमें यह सही रास्ते पर वापस ला सकता है. दुर्भाग्य से इस दुनिया के लोग, खासकर मुसलमान, बहरे हो गए हैं. आज, वैसी ही चिंता और जबरदस्त पीड़ा के साथ, मैं हर किसी से पूछने के लिए मजबूर हूं, 'आप किधर जा रहे हो? आपने अपने साथी इंसानों के दुखों की तरफ से मुंह क्यों मोड़ लिया है?'
एक तरफ देखें तो पूरे खाड़ी देश और यूरोप में लाखों विस्थापित सीरियाई बच्चे भयंकर संकट से गुजर रहे हैं और मदद की उम्मीद लगाए बैठे हैं. वहीं दूसरी ओर 20 लाख से ज्यादा मुस्लिम इस संकट को अनदेखा कर 1400 साल पुराने कर्मकाण्ड - हज, पर अपनी जिंदगी भर की कमाई को खर्च करने वाले हैं. वो भी यह जाने बगैर कि उनका यह खर्च पहले से ही अकूत धन के भण्डार पर बैठे सऊदी राजा के खजाने में जाने वाला है. यही पैसा अगर सीरियाई शरणार्थियों के लिए दान कर दी जाए तो उनकी कई समस्याओं का हल हो सकता है. इसके अलावा वो सऊदी सरकार, जो पिछले 10 वर्षों में 2.5 करोड़ लोगों तीर्थयात्रियों का स्वागत कर चुकी है, वो हज की मेजबानी में लगाए जाने वाले अपने मानव संसाधन और धन का बेहतर उपयोग कर सकती है - शरणार्थियों को शरण देकर, जिन पर ध्यान देना इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है. हम सब को पता है कि सऊदी सरकार ने अभी तक एक भी शरणार्थी को अपने यहां प्रवेश की अनुमति नहीं दी है (यह और बात है कि उन्होंने जर्मनी को हर 100 शरणार्थियों को जगह देने के लिए एक मस्जिद बनवाने की पेशकश की है).
विशेष रूप से मुस्लिम कौम और सामान्य रूप में मानवता पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है. अल्लाह में विश्वास करके, अपने संघर्षरत भाइयों और बहनों से कट कर, हमने कुछ और नहीं किया है बल्कि खुद की जिम्मेदारी का बोझ अपने से 'बड़ी...
फा आयना तड़ हबून (Fa ayna tadh haboon). बहुत मुश्किल है कुरान के इन शब्दों के पीछे की भावना को समझना, जब अल्लाह इतने प्यार और करुणा के साथ हमसे पूछते हैं, 'तुम किधर जा रहे हो?' जिस चिंता के साथ हमसे हमारे अपनाए रास्ते के बारे में पूछा गया है, अगर इसे सही से सुना और समझा गया तो बड़ी आसानी से हमें यह सही रास्ते पर वापस ला सकता है. दुर्भाग्य से इस दुनिया के लोग, खासकर मुसलमान, बहरे हो गए हैं. आज, वैसी ही चिंता और जबरदस्त पीड़ा के साथ, मैं हर किसी से पूछने के लिए मजबूर हूं, 'आप किधर जा रहे हो? आपने अपने साथी इंसानों के दुखों की तरफ से मुंह क्यों मोड़ लिया है?'
एक तरफ देखें तो पूरे खाड़ी देश और यूरोप में लाखों विस्थापित सीरियाई बच्चे भयंकर संकट से गुजर रहे हैं और मदद की उम्मीद लगाए बैठे हैं. वहीं दूसरी ओर 20 लाख से ज्यादा मुस्लिम इस संकट को अनदेखा कर 1400 साल पुराने कर्मकाण्ड - हज, पर अपनी जिंदगी भर की कमाई को खर्च करने वाले हैं. वो भी यह जाने बगैर कि उनका यह खर्च पहले से ही अकूत धन के भण्डार पर बैठे सऊदी राजा के खजाने में जाने वाला है. यही पैसा अगर सीरियाई शरणार्थियों के लिए दान कर दी जाए तो उनकी कई समस्याओं का हल हो सकता है. इसके अलावा वो सऊदी सरकार, जो पिछले 10 वर्षों में 2.5 करोड़ लोगों तीर्थयात्रियों का स्वागत कर चुकी है, वो हज की मेजबानी में लगाए जाने वाले अपने मानव संसाधन और धन का बेहतर उपयोग कर सकती है - शरणार्थियों को शरण देकर, जिन पर ध्यान देना इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है. हम सब को पता है कि सऊदी सरकार ने अभी तक एक भी शरणार्थी को अपने यहां प्रवेश की अनुमति नहीं दी है (यह और बात है कि उन्होंने जर्मनी को हर 100 शरणार्थियों को जगह देने के लिए एक मस्जिद बनवाने की पेशकश की है).
विशेष रूप से मुस्लिम कौम और सामान्य रूप में मानवता पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है. अल्लाह में विश्वास करके, अपने संघर्षरत भाइयों और बहनों से कट कर, हमने कुछ और नहीं किया है बल्कि खुद की जिम्मेदारी का बोझ अपने से 'बड़ी सत्ता' के पाले में डाल दिया है, जो शायद अस्तित्व में भी नहीं हो. वो समय कब आएगा जब हमें यह अहसास होगा कि कोई 'बड़ी सत्ता' दबे-कुचलों की मदद करने नहीं आएगा बल्कि जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए हमें ही आगे आना होगा? क्या अभी वह सही समय नहीं है, खासकर मुस्लिम कौम के लिए, जो मुस्लिमों की एकता तथा विश्व बंधुत्व का दंभ भरने के लिए कुरान का नाम लेते हैं, विडंबना के साथ मुझे कहना पड़ रहा है कि ये दोनों शब्द सिर्फ हज के दौरान ही देखने को मिलते हैं.
एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार से आने के नाते बाइबल का एकमात्र छंद जो मुझे याद है और जो हमेशा स्मृति में बना रहा है वह है - 'अपने पड़ोसी से प्रेम (Love thy neighbour)'. जरूरतमंदों को सहायता की आग्रह करने के ऐसे सैकड़ों छंदों का उदाहरण मैं कुरान से दे सकता हूं लेकिन हज के महत्व को लेकर बहुत कम (लगभग 9 ही) उदाहरण मेरे दिमाग में आते हैं.
क्या यह हमारा कर्तव्य नहीं होना चाहिए कि हम अपने खर्चों की प्राथमिकता में सीरियाई शरणार्थियों को सबसे ऊपर रखें? क्या यह हमारा कर्तव्य नहीं होना चाहिए कि हम नैतिकता-धर्म पाने की उस लिस्ट में सीरियाई शरणार्थियों को सबसे ऊपर रखें, जिसमें हम कुरान में वर्णित पवित्र स्थान (जो उतनी ही पुरानी है, जितना कि सबसे आखिरी धार्मिक व्यक्ति) में कुछ हफ्ते बिताकर उसे खरीदने की सोच रखते हैं? और ऐसे मुसलमान, जिनका उद्देश्य अल्लाह के दरबार में उच्च स्थान प्राप्त करना होता है, उनके लिए मेरी सलाह है कि वे इस नेक काम के लिए दान दें. ऐसा इसलिए क्योंकि इस हज पर जाने से उन्हें केवल एक हज के बराबर का धर्म मिलेगा जबकि इस तीर्थ पर जाने के लिए बचा कर रखे गए धन को दान करने से उन्हें एक हजार हज के समान धर्म का लाभ होगा. और यदि उन्हें ऐसा लगता है कि 28 साल के इस इंसान की बातें पागलपन हैं तो मेरा उन्हें सुझाव है कि वे जाएं और अपने कुरान को एक बार ठीक से पढ़ें.
हां, मैं एक सच्चा और धर्मनिष्ठ मुस्लिम हूं, लेकिन मैं कभी भी हज पर नहीं जाऊंगा. मुझे लगता है कि इस दुनिया में ऐसे एक हजार बेहतर कारण हैं, जहां इसके लिए खर्च होने वाले पैसे और समय का उपयोग किया जा सकता है. और 21वीं सदी का इंसान होने के नाते मैं एक ऐसे देश को अपनी मेहनत की कमाई देने को तर्कों के साथ तौल नहीं पा रहा हूं, जिसने जरूरत के वक्त सीरियाई शरणार्थियों के लिए कुछ भी नहीं किया.
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